सीएम भूपेंद्र पटेल, पीएम मोदी
Gujarat Politics: बिहार चुनावों के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने मजबूत गढ़ गुजरात में एक बड़ा राजनीतिक दांव चलते हुए मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को छोड़कर अपने सभी मंत्रियों से इस्तीफा ले लिया है। गुरुवार शाम, भूपेंद्र पटेल के मंत्रिमंडल में संभावित फेरबदल और विस्तार की तैयारी के तहत कुल 16 मंत्रियों ने अपने-अपने इस्तीफे सौंप दिए।
गुजरात में ऐसा कदम पहली बार नहीं उठाया गया है। एंटी-इंकंबेंसी से निपटने के लिए भाजपा इस तरह के फॉर्मूले को अपनी राजनीतिक प्रयोगशाला में पहले भी आज़मा चुकी है। वर्ष 2021 में पार्टी ने मुख्यमंत्री समेत पूरे मंत्रिमंडल को हटा दिया था, जिसे ‘नो रिपीट थ्योरी’ कहा गया था।
असल में यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रणनीति का हिस्सा है, जो अभी तक भाजपा के लिए सफल साबित हुआ है। जब 2021 में विजय रूपाणी के नेतृत्व वाली सरकार को हटाया गया था, तब विपक्ष ने इसकी आलोचना की थी, लेकिन भाजपा ने जनता को यह संदेश देने में सफलता पाई कि पीएम मोदी ने एक साहसिक फैसला लिया।
मुख्यमंत्री रहते हुए भी नरेंद्र मोदी ने गुजरात में कई बार ‘नो रिपीट’ और चेहरों को बदलने का प्रयोग किया था। कोविड के बाद भी एक झटके में पूरी सरकार को बदला गया, और उसके एक साल बाद हुए चुनाव में भाजपा ने 182 में से 156 सीटें जीत ली थीं, जो गुजरात के चुनावी इतिहास की सबसे बड़ी जीतों में से एक थी। उस चुनाव में “नरेंद्र-भूपेंद्र” का नारा बेहद चर्चित हुआ था। इस बार विधानसभा चुनाव से दो साल पहले इतनी बड़ी सर्जरी के पीछे कई वजहें हैं।
कुछ मंत्रियों की उम्र अधिक थी, जिससे वे सक्रिय रूप से भूमिका नहीं निभा पा रहे थे। कई मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप थे, जैसे बचुभाई खाबड़, भीखू सिंह परमार और मुकेश पटेल के नाम प्रमुख हैं। अगर पार्टी एक-एक मंत्री को हटाती, तो विपक्ष इसका राजनीतिक लाभ उठा सकता था। इसलिए भाजपा ने एक ही झटके में सभी मंत्रियों से इस्तीफा ले लिया, जिससे मुद्दा उठने से पहले ही शांत हो गया।
अब सबकी नजरें भूपेंद्र पटेल मंत्रिमंडल में होने वाले फेरबदल और नए चेहरों की ताजपोशी पर टिकी हैं। यह अभी स्पष्ट नहीं है कि कुछ पुराने मंत्री दोबारा शामिल होंगे या पूरी तरह से नया मंत्रिमंडल सामने आएगा।
इस बार की सर्जरी का सबसे बड़ा मकसद है नगर निगम चुनाव, जिन्हें ‘मिनी विधानसभा चुनाव’ माना जा रहा है। अहमदाबाद, सूरत, वडोदरा, राजकोट सहित कई शहरों में चुनाव होने हैं, सिर्फ जूनागढ़ और गांधीनगर को छोड़कर। भाजपा जानती है कि वह शहरी मतदाताओं में अधिक मजबूत रही है, इसलिए इन क्षेत्रों में कोई जोखिम नहीं लेना चाहती।
इस निर्णय की अंतिम मुहर रविवार को नई दिल्ली में पीएम मोदी के साथ राज्य के नेताओं की बैठक में लगाई गई थी। इसके साथ ही भाजपा ने प्रदेश संगठन में भी बदलाव करते हुए सीआर पाटिल की जगह जगदीश विश्वकर्मा को कमान सौंपी है, जो अब तक सहकारिता मंत्री थे।
आप (आम आदमी पार्टी) की बढ़ती गतिविधियों के कारण भाजपा की चिंता बढ़ी है, खासतौर पर सौराष्ट्र और आदिवासी बेल्ट में। आप ने हाल ही में विसावदर सीट जीतकर संकेत दे दिया है कि वह राज्य में सक्रिय है।
आदिवासी क्षेत्रों में 27 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं, और कुल मिलाकर इनका प्रभाव 40 सीटों पर है। ऐसे में भाजपा आदिवासी समुदाय को साधने के लिए डिप्टी सीएम का कार्ड भी खेल सकती है। साथ ही, सौराष्ट्र में नाराजगी को दूर करने के लिए लेउवा पटेल विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह दी जा सकती है।
कुल मिलाकर भाजपा इस बार युवा चेहरों और नई पीढ़ी को मंत्रिमंडल में स्थान देकर Gen Z के बीच एक सशक्त संदेश देना चाहती है कि पार्टी बदलाव के लिए तैयार है और युवाओं को नेतृत्व में ला रही है।
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अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि कितने नए चेहरे सामने आते हैं और भाजपा इस राजनीतिक सर्जरी से आगामी चुनावों में क्या फायदा उठाने में सफल रहती है।