विवेक अग्निहोत्री ने शेयर किया नोआखली का काला अध्याय
The Bengal Files Story: फिल्म निर्माता और निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री की आगामी फिल्म ‘द बंगाल फाइल्स: राइट टू लाइफ’ अपने रिलीज़ से पहले ही सुर्खियों में है। यह फिल्म भारतीय इतिहास के उस काले अध्याय पर आधारित है, जिसे मुख्यधारा की कहानियों में शायद ही कभी जगह मिली हो। अग्निहोत्री सोशल मीडिया पर लगातार फिल्म से जुड़ी जानकारियां साझा कर रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने 7 सितंबर 1946 को हुई एक घटना का जिक्र किया, जिसने बंगाल ही नहीं, पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था।
फिल्ममेकर ने इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा कि 7 सितंबर 1946 को लक्ष्मी पूजा के दिन, नोआखली (तत्कालीन पूर्वी बंगाल, अब बांग्लादेश) में गुलाम सरवर और उनके भाई चोटोमिया ने एक भीड़ का नेतृत्व किया और हिंदुओं के खिलाफ हिंसा, हत्या, बलात्कार और जबरन धर्मांतरण की भयावह मुहिम चलाई। अग्निहोत्री के अनुसार, यह नोआखली नरसंहार का सबसे काला अध्याय था, जिसे उन्होंने “हिंदू नरसंहार” के रूप में परिभाषित किया।
इतिहासकारों के अनुसार, 1946 का साल बंगाल में सांप्रदायिक तनाव और हिंसा का प्रतीक था। डायरेक्ट एक्शन डे 16 अगस्त 1946 से शुरू हुई दंगों की लहर नोआखली और त्रिपुरा तक फैली, जहां बड़े पैमाने पर जनसंहार, आगजनी और लूटपाट हुई। लाखों हिंदू परिवारों को घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। महात्मा गांधी को शांति स्थापना के लिए खुद नोआखली जाना पड़ा और उन्होंने गांव-गांव घूमकर हिंसा पीड़ितों से संवाद किया।
‘द बंगाल फाइल्स’ अग्निहोत्री की ‘फाइल्स ट्रिलॉजी’ का तीसरा और अंतिम भाग है। इससे पहले वे ‘द ताशकंद फाइल्स’ (2019) और ‘द कश्मीर फाइल्स’ (2022) बना चुके हैं, जिनमें ऐतिहासिक और राजनीतिक विवादित घटनाओं को परदे पर उतारा गया था। इस बार वे बंगाल के ऐतिहासिक योगदान और उसकी अनसुनी त्रासदी को प्रस्तुत कर रहे हैं। फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती, अनुपम खेर, पल्लवी जोशी और दर्शन कुमार जैसे कलाकार अहम भूमिकाओं में नजर आएंगे।
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हाल ही में फिल्म को सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) से ‘ए’ सर्टिफिकेट मिला है। दिलचस्प बात यह है कि इस फिल्म का नाम पहले ‘द दिल्ली फाइल्स: द बंगाल चैप्टर’ रखा गया था। अग्निहोत्री का मानना था कि भारत का भाग्य दिल्ली में लिखा जाता है, न कि बंगाल में। लेकिन दर्शकों की मांग पर इसका नाम बदलकर ‘द बंगाल फाइल्स’ कर दिया गया। निर्माताओं का कहना है कि यह फिल्म सिर्फ इतिहास को नहीं दोहराएगी, बल्कि दर्शकों को सोचने पर मजबूर करेगी कि किस तरह देश के कुछ महत्वपूर्ण अध्यायों को भुला दिया गया।