दादाराव केचे व सुमित वानखेड़े (सोर्स: सोशल मीडिया)
वर्धा: आर्वी विधानसभा क्षेत्र राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील रहा है। बीते दो चुनाव से भाजपा की सीट को लेकर संघर्ष की स्थिति बनी है। इस बार भी वर्तमान विधायक दादाराव केचे की सीट रोकी गई है। परिणामवश आने वाले दिनों में इस सीट को लेकर भाजपा में घमासान होने वाला है। जिला कांग्रेस का यह गढ़ माना गया है। 2009 में जिले में पहली बार आर्वी विधानसभा क्षेत्र में दादाराव केचे ने कमल खिलाया था। 2014 में मोदी लहर के बावजूद दादाराव केचे की हार हुई थी। जिसके बाद नितिन गडकरी के करीबी सुधीर दिवे आर्वी की राजनीति में सक्रिय हुए।
सुधीर दिवे की सक्रियता के कारण दादाराव केचे व सुधीर दिवे के बीच तलवारें खींच गई थी। तब देवेंद्र फडणवीस ने मध्यस्थता कर केचे को फिर अवसर दिया। परंतु बीते तीन वर्ष से देवेंद्र फडणवीस के करीबी सुमित वानखेड़े आर्वी की राजनीति में सक्रिय होने के कारण केचे व वानखेड़े में निरंतर संघर्ष की स्थिति बनी। यह विवाद हाईकमान तक पहुंचा था।
बीते कुछ माह से दोनों नेताओं ने टिकट पर अपना हक जताते हुए टिकट मिलने का दावा भी किया। भाजपा ने रविवार को अपनी पहली सूची जारी की है। जिसमें जिले के चार में से तीन निर्वाचन क्षेत्र से प्रत्याशी घोषित किए गए। वर्धा से विधायक पंकज भोयर व हिंगणघाट से विधायक समीर कुणावार को फिर मौका दिया गया। वहीं देवली से बीजेपी ने राजेश बकाने को अपना उम्मीदवार बनाया है। लेकिन इस सूची में दो बार विधायक रहे दादाराव केचे का नाम नहीं होने से आर्वी की राजनीति गरमा गई है।
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पार्टी की पहली सूची में नाम नहीं होने तथा सुमित वानखेडे का नाम चर्चा में आने के कारण दादाराव केचे ने मुंबई का रुख किया है। सोमवार को केचे मुंबई की और रवाना हुए है। मंगलवार को केचे भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से भेंट करेंगे यह जानकारी मिली है।
पहली सूची में नाम नहीं होने तथा मुंबई में कोई प्रतिसाद नहीं मिलने पर केचे व उनके समर्थक 24 अक्टूबर को आर्वी में शक्ति प्रदर्शन कर सकते हैं। इस तरह आर्वी भाजपा में दो फाड़ होने की संभावना तेज हो गई है। केचे कौन सी भूमिका लेते है। तथा पार्टी के वरिष्ठ नेता उन्हें कैसे हैंडल करते है इस पर सब कुछ निर्भर होगा। इस संदर्भ में दादाराव केचे से संपर्क करने पर उन्होंने मुंबई रवाना होने की जानकारी देते हुए गुरुवार को समर्थकों का सम्मेलन बुलाने की जानकारी दी।
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