सहरसा विधानसभा सीट (सोर्स- डिजाइन)
Saharsa Assembly Constituency: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मी के बीच सहरसा विधानसभा सीट एक बार फिर राजनीतिक विश्लेषण का केंद्र बन गई है। कोसी नदी के किनारे बसा यह क्षेत्र न केवल भौगोलिक और सांस्कृतिक दृष्टि से विशिष्ट है, बल्कि राजनीतिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। संस्कृत शब्द ‘सहस्रधारा’ से निकला सहरसा, मिथिला की धरती पर अपनी अलग पहचान रखता है।
सहरसा कोसी, बागमती और गंडक नदियों से घिरा हुआ है, जो हर साल बाढ़ की विभीषिका झेलता है। बाढ़ जहां जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर देती है, वहीं यह मिट्टी को उपजाऊ बनाकर कृषि को भी संजीवनी देती है। यही कारण है कि सहरसा मक्का और मखाना उत्पादन का प्रमुख केंद्र बन चुका है, जिससे यहां की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है।
सहरसा मिथिला क्षेत्र का हिस्सा है, जहां मैथिली और हिंदी प्रमुख भाषाएं हैं। यह क्षेत्र न केवल भाषाई विविधता का प्रतीक है, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध है। महिषी में मंडन मिश्र और शंकराचार्य के ऐतिहासिक शास्त्रार्थ की भूमि होने के कारण यह क्षेत्र धार्मिक और बौद्धिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
सहरसा में चंडी मंदिर, कात्यायनी मंदिर, तारा मंदिर, बाबाजी कुटी और मत्स्यगंधा का रक्तकाली मंदिर जैसे धार्मिक स्थल हैं, जो न केवल श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं, बल्कि चुनावी रुझानों पर भी अप्रत्यक्ष प्रभाव डालते हैं। नवरात्रि और अन्य पर्वों के दौरान इन स्थलों पर भारी भीड़ उमड़ती है, जो स्थानीय जनभावनाओं को दर्शाती है।
बिहार का 15वां बड़ा शहर होने के बावजूद सहरसा की साक्षरता दर केवल 54.57% है। यह आंकड़ा इस बात की ओर इशारा करता है कि शिक्षा के क्षेत्र में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। बेहतर स्कूल, कॉलेज और तकनीकी संस्थानों की मांग यहां के युवाओं की प्राथमिकता में शामिल है।
सहरसा विधानसभा सीट पर शुरुआती वर्षों में कांग्रेस का वर्चस्व रहा, लेकिन समय के साथ भाजपा ने यहां अपनी पकड़ मजबूत कर ली। पिछले पांच चुनावों में चार बार भाजपा ने जीत दर्ज की है, जबकि राजद को केवल 2015 में सफलता मिली। जनता दल, जनता पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी भी अतीत में यहां से जीत दर्ज कर चुकी हैं।
2008 में हुए परिसीमन के बाद सहरसा लोकसभा सीट को समाप्त कर इसे मधेपुरा में मिला दिया गया। स्थानीय लोग इसे राजनीतिक प्रतिशोध मानते हैं। इस बदलाव के बाद मधेपुरा जदयू का गढ़ बन गया, जबकि सहरसा विधानसभा में भाजपा और राजद के बीच सीधा मुकाबला कायम रहा है।
कोसी क्षेत्र ईंट निर्माण के लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा जूट, साबुन, बिस्किट, चॉकलेट और प्रिंटिंग उद्योग भी यहां की अर्थव्यवस्था को गति देते हैं। कृषि और लघु उद्योगों के साथ-साथ अब यहां की युवा पीढ़ी कॉर्पोरेट नौकरियों और स्टार्टअप की ओर भी रुख कर रही है, जिससे रोजगार की नई संभावनाएं बन रही हैं।
2024 के चुनाव आयोग के अनुसार, सहरसा की अनुमानित जनसंख्या 6.42 लाख है, जिसमें 3.75 लाख मतदाता शामिल हैं। इनमें पुरुषों की संख्या 1.95 लाख, महिलाओं की 1.80 लाख और थर्ड जेंडर मतदाता 8 हैं। सामाजिक समीकरणों में ब्राह्मण, यादव, दलित और मुस्लिम समुदायों की भागीदारी चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकती है।
भाजपा इस सीट पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है, जबकि राजद अपने सामाजिक आधार को फिर से सक्रिय करने की रणनीति पर काम कर रही है। जदयू का प्रभाव लोकसभा स्तर पर जरूर है, लेकिन विधानसभा में उसकी पकड़ सीमित मानी जाती है। बाढ़ नियंत्रण, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दे इस बार भी चुनावी बहस के केंद्र में हैं।
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सहरसा विधानसभा सीट पर 2025 का चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन की लड़ाई नहीं, बल्कि विकास बनाम परंपरा, और सामाजिक न्याय बनाम संगठनात्मक मजबूती की परीक्षा भी है। यह देखना दिलचस्प होगा कि कोसी की बाढ़ से जूझते इस क्षेत्र की जनता किसे अपना प्रतिनिधि चुनती है और बिहार की राजनीति को कौन-सी नई दिशा मिलती है।