रक्सौल विधानसभा सीट, डिजाइन फोटो (नवभारत)
Raxaul Assembly Constituency Profile: रक्सौल नेपाल के बीरगंज शहर से सटा हुआ है। दोनों शहरों की जीवनशैली इतनी एकरूप हो चुकी है कि यह क्षेत्र एक संयुक्त नगर जैसा प्रतीत होता है। यहां भारतीय और नेपाली नागरिकों की आवाजाही बिना किसी रोक-टोक के होती है, जिससे यह क्षेत्र सांस्कृतिक और व्यापारिक आदान-प्रदान का प्रमुख द्वार बन गया है।
1814-16 के एंग्लो-नेपाल युद्ध के बाद हुई सुगौली संधि ने भारत-नेपाल सीमा को परिभाषित किया। इसी संधि के तहत रक्सौल भारत का हिस्सा बना। पहले इसे फलेजरगंज कहा जाता था, हालांकि इसका नाम कब और कैसे बदलकर रक्सौल पड़ा, यह स्पष्ट नहीं है। यह ऐतिहासिक पृष्ठभूमि आज भी इस क्षेत्र की पहचान को गहराई देती है।
1952 से 1985 तक रक्सौल कांग्रेस का गढ़ रहा। नौ चुनावों में से आठ बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की। 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने इसे छीन लिया। 90 के दशक में जनता दल ने दो बार जीत हासिल की, लेकिन 2000 के बाद से यह सीट भाजपा के कब्जे में रही। अजय कुमार सिंह ने 2000 से 2015 तक लगातार पांच बार भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की।
2020 में भाजपा ने अजय कुमार सिंह को टिकट नहीं दिया और जदयू से आए प्रमोद कुमार सिन्हा को उम्मीदवार बनाया। स्थानीय स्तर पर विरोध के बावजूद सिन्हा ने 36 हजार से अधिक मतों के अंतर से जीत दर्ज की। यह साबित करता है कि रक्सौल में भाजपा की जीत किसी व्यक्ति पर नहीं, बल्कि संगठन की मजबूती पर आधारित है।
2020 के विधानसभा चुनाव में रक्सौल में 2,78,018 मतदाता पंजीकृत थे और मतदान प्रतिशत 64.03 रहा। 2024 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं की संख्या बढ़कर 2,87,287 हो गई, हालांकि मतदान केंद्रों की संख्या घटकर 289 रह गई। यह बदलाव चुनावी प्रबंधन और रणनीति को प्रभावित कर सकता है।
रक्सौल को सामान्यतः ग्रामीण सीट माना जाता है, जहां 87 प्रतिशत से अधिक मतदाता ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं। शहरी वोटरों की हिस्सेदारी मात्र 13 प्रतिशत है। इसके बावजूद भाजपा ने यहां लगातार जीत दर्ज कर यह धारणा तोड़ दी है कि वह केवल शहरी और मध्यम वर्ग की पार्टी है।
2008 में हुए परिसीमन के बाद रक्सौल पश्चिम चंपारण लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा बना। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इस संसदीय क्षेत्र की सभी छह विधानसभा सीटों पर बढ़त बनाई। यह संकेत है कि पार्टी की पकड़ इस क्षेत्र में मजबूत बनी हुई है और आगामी विधानसभा चुनाव में भी उसे लाभ मिल सकता है।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि रक्सौल में एनडीए की स्थिति मजबूत है, लेकिन स्थानीय मुद्दे, उम्मीदवार चयन और संगठन की सक्रियता चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं। सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण सुरक्षा, व्यापार और सांस्कृतिक संबंध भी चुनावी विमर्श का हिस्सा बन सकते हैं।
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रक्सौल विधानसभा चुनाव 2025 में एक बार फिर यह देखने लायक होगा कि क्या भाजपा अपनी संगठनात्मक मजबूती और रणनीतिक पकड़ के दम पर जीत दोहराएगी, या विपक्ष कोई नया समीकरण गढ़ने में सफल होगा। सीमा पर बसे इस क्षेत्र की सियासी तस्वीर पूरे बिहार की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभा सकती है।