आरएसएस का योगदान (सौजन्य-सोशल मीडिया)
मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी को भारी बहुमत से जीत मिली है। ये जीत इतनी शानदार है कि केवल महायुति गठबंधन में बीजेपी की जीत देखे तो वो भी बड़ी मात्रा में है। इस जीत को देखकर ये कोई नहीं कह सकता कि आज से लगभग 6 महीने पहले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मुंह की खानी पड़ी थी।
बीजेपी ने लोकसभा की हार के बाद मानो जैसे पार्टी की आंखे खुल गई हो इसके तुरंत बाद ही बीजेपी और आरएसएस ने राज्य में ऐसा काम कर दिखाया है कि विधानसभा में जनता की राय ही बदल गई है। जनता के बीच बीजेपी की छवि बदलने में सबसे बड़ा जिसका हाथ रहा है वो है – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ।
कहा जाता है कि लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के बयान से नाराज हो गए थे, जिसके बाद से RSS ने खुद को चुनावी प्रक्रिया से दूर रखा था जिसका परिणाम बीजेपी को लोकसभा चुनाव में देखने को मिला था।
चुनाव में नुकसान के बाद बीजेपी और RSS दोनों नें अपने नुकसान का आकलन किया और आपसी तालमेल बैठा कर विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए। इस दौरान संघ ने विधानसभा चुनाव के लिए सहसरकार्यवाह अतुल लिमये और बीजेपी के राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री शिवप्रकाश को जिम्मेदारी सौंपी।
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देखा जाए तो RSS के अतुल लियमे ने सबसे पहले आपसी नेताओं के बीच अंदरूनी तालमेल बिठाने का काम किया है। तो वहीं शिवप्रकाश ने बीजेपी के बूथ के स्तर को बढ़ाने के लिए उस पर काम करना शुरू किया। इस बार नितिन गडकरी जैसे बड़े नेताओं को भी विधानसभा चुनाव के लिए योगदान देने के लिए प्रोत्साहित और राजी किया गया। इस दौरान संघ की ओर से संगठन मंत्री के रूप में बीएल संतोष भी मौजूद रहे।
RSS की टीम के पास सबसे पहला लक्ष्य था सामाजित समीकरण को सुधारना। उस समय मराठा आरक्षण के बहाने विपक्ष देवेंद्र फडणवीस को घेरने की कोशिश कर रहा था। इसे देखते हुए संघ के नेताओं ने महाराष्ट्र के पिछड़े वर्ग ओबीसी, अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के अलग-अलग समूहों के नेताओं से संपर्क किया और उनकी बैठक सीधे देवेंद्र फडणवीस के साथ करवाई।
इसके साथ ही सभी नेताओं को देवेंद्र फडणवीस ने भविष्य में समाज के लिए सरकार द्वारा किए जानेवाले कार्यों की जानकारी दी गई। ताकि जनता को पता चल सकें कि सरकार उनके हितों के लिए काम कर रही है। आपको बताते चले कि इस तरह कि बैठकें सौ-दो सौ के आंकड़ों में नहीं बल्कि हजारों की संख्या में हुई। इन सभाओं का परिणाम भी बीजेपी को देखने को मिला इसके कारण बीजेपी द्वारा लड़ी गई अनुसूचित जनजाति की 16 में से 15 सीटों पर पार्टी को जीत हासिल हुई।
इस दौरान पार्टी ने मराठा आरक्षण का साथ भी नहीं छोड़ा। पार्टी ने मराठा समाज में भी गैर-राजनीतिक नेताओं से बातचीत की और ये याद दिलाया कि मराठा समाज को मिलने वाला 10 प्रतिशत आरक्षण भी उन्हें बीजेपी की सरकार ने दिलाया था।
RSS ने यह काम बूथ स्तर पर भी किया। RSS ने बूथ समिति के सभी सक्रिय कार्यकर्ताओं को समाज की किसी-न-किसी तरह की जिम्मेदारी देकर जनता से संपर्क में रहने के लिए कहा गया। साथ ही इन छोटे-छोटे से कार्यकर्ताओं से समय-समय पर रिपोर्ट भी संघ ने जमा की और उस पर काम किया।
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महाराष्ट्र में संघ ने योजनाओं के कार्यान्वयन पर भी फोकस किया। पिछले बजट में घोषित की गई लाड़की बहिन योजना के लिए संघ के कार्यकर्ताओं ने बूथ स्तर पर महिलाओं से फॉर्म भरवाया और उन्हें इस योजना का लाभ भी दिलवाया। महिलाओं के बैंक खाते में पैसे पहुंचने से पहले और उसके बाद में भी कार्यकर्ता महिलाओं के संपर्क में रहे। इसका परिणाम ये देखने को मिला कि इस बार राज्य में महिलाओं के मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी देखने को मिली, जिसका पूरा फायदा महायुति को हुआ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ RSS ने ये काम न सिर्फ बीजेपी के लिए किया बल्कि महायुति गठबंधन में शामिल सभी दलों के लिए भी किया। उनके इन कामों के बाद महायुति पिछले 50 सालों में 236 सीटें जीतकर सबसे ज्यादा सीट जीतने वाला गठबंधन बन चुकी है।