डॉ. सिध्दार्थ देवले व शाम खोडे (सोर्स-सोशल मीडिया)
वाशिम: जिले के इस विधानसभा क्षेत्र में 20 नवंबर को हुए मतदान के बाद विधायक पद की विजयमाला किस उम्मीदवार के गले में होगी इसका अनुमान लगाया जा रहा है। स्थानीय नेता व कार्यकर्ता जिन दलों में रहे हैं। वे अपने अपने दल के प्रति समीकरण लगाकर अपने ही उम्मीदवार की विजय का विश्वास प्रकट कर रहे हैं।
दूसरी ओर मतदाता भी अपने अनुमान व्यक्त करते हुए चुनाव परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे है। इसमें अनेक लोग जाति समीकरण, उम्मीदवार का तगड़ा जनसंपर्क तथा उनके संबंध के आधार पर भी गणित जोड़ते नजर आ रहे हैं। आइए जानते हैं चर्चाओं में क्या कुछ चल रहा है।
शहर में हरेक चौराहों पर, होटल में अथवा जहां पर चार लोग जमा हो रहे है। इनमें केवल 23 नवंबर को होने जा रहे चुनावी मतगणना का ही विषय पर चर्चा होकर कौन सा उम्मीदवार कितने वोटों से जीतेगा इस के लिए अपना अपना अंदाज व्यक्त कर रहे है। इस मर्तबा वाशिम में मुख्यतः शिवसेना (यूबीटी) के डॉ. सिध्दार्थ देवले तो भाजपा के शाम खोडे में सीधी टक्कर हुई़ शुरुआत में डा़। देवले का प्रचार जोरों पर रहा जिसे उनके विजय का गणित लगाया जा रहा है। लेकिन चुनाव के तीन पहले से चुनाव तिथि तक भाजपा ने चुनाव प्रचार में जोर पकड़ा जिसे लेकर दोनों में हुई कांटे की टक्कर हुई।
वाशिम में गत तीन टर्म से भाजपा के लखन मलिक का वर्चस्व रहा था। लेकिन इस बार लखन मलिक का टिकट काटकर भाजपा ने नया चेहरा शाम खोडे को अपना उम्मीदवार बनाया है। तो उधर डा। देवले ने पिछला चुनाव वंचित बहुजन आघाड़ी से लड़कर करीब 52 हजार वोट लिए थे। जिससे उनको अच्छा खासा चुनाव अनुभव के आधार पर यह चुनाव जीतना उन्हें उतना मुश्किल नहीं लगा जितना अन्य दलों के नेता, कार्यकर्ताओं को जोर लगाना पड़ा।
इस बार यूपी के मुख्यमंत्री योगी की व उद्धव बालासाहब ठाकरे की सभा हुई। ठाकरे की सभा के बाद यहां पर का वातावरण शिवसेना मय बन गया था। कांग्रेस के वोट, शिवसेना (यूबीटी) के वोट मुस्लिम समाज के गठ्ठा वोट, उनके सहयोगी दल के वोट, शरद पवार के नेतृत्व माननेवाले पाटिल समाज के वोट, कांग्रेस के वोट, तथा उनके संबंधों से प्राप्त मतों को जोड़कर शिवसेना खेमे के कार्यकर्ता, स्थानीय नेता अपनी विजय निश्चित समझ रहे हैं। उधर भाजपा ने भी यहां पर कमजोर न रहने का दावा किया है।
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भाजपा के बाहर का नया उम्मीदवार, स्थानीय नेताओं के दावेदार को टिकट नहीं देना के मुद्दे के बावजूद भी भाजपा के गठ्ठा वोट, उनके सहयोगी दल के वोट, अजीत पवार का नेतृत्व माननेवालो के वोट तथा हिंदुत्व का मुद्दे को लेकर उनके मिलने वाले वोटों को जोड़कर उनका विजय निश्चित बता रहे है। इस बार यहां पर एक विशेष बात देखने में आयी कि यह चुनाव जाति, धर्म पर आधारित नहीं होते हुए शिक्षित उम्मीदवार, जिले का विकास जैसे मुद्दों पर रहा है। जिस से अब कौन से उम्मीदवार को विधायक के रूप में जनता चुनती है यह तो 23 नवंबर के मतगणना के बाद ही सामने आने वाला है।