महाराष्ट्र विधानसभा चुना (डिजाइन फोटो)
मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का गठबंधन चर्चा में है। भाजपा के लिए आरएसएस और उसके 37 सहयोगी संगठनों ने पूरी ताकत झोंक दी है। इस बार आरएसएस ने अपनी चुनावी भूमिका में नए आयाम जोड़ते हुए मतदाताओं तक सीधे पहुंचने की रणनीति अपनाई है।
आरएसएस ने जुलाई से ही अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया था। संघ के सह-सरकार्यवाह अतुल लिमये को भाजपा के चुनाव अभियान के समन्वय की जिम्मेदारी दी गई थी। उन्होंने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ कई बैठकें कीं।
गडकरी और फडणवीस ने पूरे राज्य में 70 से ज्यादा जनसभाओं को संबोधित किया। आरएसएस की महिला शाखा राष्ट्रीय सेविका समिति भी चुनाव प्रचार में पीछे नहीं रही। समिति की कार्यकर्ता दिन-रात प्रचार में जुटी रहीं। सभी वर्गों तक पहुंचने की कोशिश में आरएसएस ने मराठा, कुनबी और माली जैसे विभिन्न समुदायों के नेताओं से संवाद स्थापित किया। इसके साथ ही युवाओं और शहरी मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए खास इंतजाम किए गए। आईटी सेक्टर और अन्य व्यवसायों में काम करने वाले युवा मतदाताओं को उनके गृह जिलों में मतदान करने के लिए बसों और मुफ्त भोजन की व्यवस्था की गई थी।
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आरएसएस ने 100 प्रतिशत मतदान सुनिश्चित करने के लिए कई योजनाएं बनाई हैं। नागपुर जैसे प्रमुख क्षेत्रों में डोर-टू-डोर प्रचार किया गया। रामनगर जैसे क्षेत्रों में, आरएसएस कार्यकर्ताओं ने दो बार मतदाताओं से संपर्क किया। क्या संयुक्त रणनीति का असर होगा? इस चुनाव में आरएसएस और भाजपा के बीच समन्वय पहले से ज्यादा मजबूत दिख रहा है।
टिकट वितरण से लेकर बूथ प्रबंधन तक, संघ ने हर पहलू में गहरी भूमिका निभाई। संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता दिलीप देवधर ने दावा किया कि यह पहली बार है जब आरएसएस ने किसी चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। महाराष्ट्र में 20 तारीख को चुनाव होने हैं, जबकि चुनाव का नतीजा 23 तारीख को घोषित किया जाएगा। मतगणना के बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि संघ और भाजपा की यह रणनीति कितनी सफल रही, क्या आरएसएस और भाजपा के संयुक्त प्रयासों ने चुनावी माहौल को नई दिशा दी या नहीं।