भिवंडी ग्रामीण विधानसभा सीट (डिजाइन फोटो)
ठाणे: महाराष्ट्र में चुनावी शतरंज की बिसात पर जंग होने वाली है। महायुति और महाविकास अघाड़ी के बीच शह और मात का खेल खेला जाने वाला है। इस खेल में कौन किसे शिकस्त देगा यह अभी भविष्य की गर्त में छिपा हुआ है लेकिन सबने हर एक खानें में गोटियां बिछा दी हैं। उच्चकोटि के पैदल सैनिकों की तलाश की जा रही है बाकी महारथी उनके पीछे खड़े हुए हैं। कौन किस खाने में कितना मजबूत है हम भी लगातार इसके विश्लेषण में लगे हुए हैं।
सीट वाइज विश्लेषण की इस कड़ी में हम आज भिवंडी ग्रामीण विधानसभा सीट की बात करने वाले हैं। इस सीट का अतीत उतना बहुत बड़ा नहीं है। क्योंकि यह सीट 2009 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले परिसीमन के चलते अस्तित्व में आई है। 2009 में पहली बार यहां भाजपा को विजयश्री मिली। लेकिन 2014 और 2019 में यहां पर शिवसेना के उम्मीदवार बाजी मारने में कामयाब रहे हैं।
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2009 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सवर विष्णु राम ने एनसीपी के संतराम दुंदाराम पाटिल को लगभग 2 हजार वोटों से मात देते हुए कब्जा जमा लिया। लेकिन इसके बाद 2014 में संतराम दुंदाराम पाटिल बीजेपी में आ गए और उन्हें फिर से हार का सामना करना पड़ा। तब शिवसेना उम्मीदवार संतराम तुकाराम मोरे ने करीब 10 हजार के अंतर से शिकस्त दे दी। इसके बाद 2019 में भाजपा और शिवसेना ने एक साथ चुनाव लड़ा। यह सीट शिवसेना के खाते में आई, और यहां संतराम तुकाराम मोरे ने मनसे उम्मीदवार को शुभांगी रमेश गोवारी को लगभग 44 हजार वोटों से शिकस्त दे दी।
वर्ष | प्रत्याशी | पार्टी | कुल वोट |
2019 | शांताराम तुकाराम मोरे | शिवसेना | 83567 |
2014 | शांताराम तुकाराम मोरे | शिवसेना | 57082 |
2009 | विष्णु राम सावरे | भाजपा | 46996 |
भिवंडी ग्रामीण विधानसभा सीट एसटी कैटेगरी के लिए आरक्षित है। इसके पीछे यहां आदिवासी वोटर्स का डॉमिनेशन ही माना जाता है। 2019 के आंकड़ों के मुताबिक कुल 2 लाख 99 हजार वोट का 26.36 प्रतिशत वोटर्स आदिवासी समुदाय से आते हैं। इसके बाद दूसरे नंबर पर यहां पाटिल आते हैं जिनकी संख्या करीब 20 फीसदी है। कहा यही जाता है कि यहां जिस उम्मीदवार या पार्टी ने आदिवासी पाटिल को साध लिया उसे जनादेश मिल जाता है क्योंकि 46 फीसदी वोट विधानसभा चुनाव हार जीत तय कर देता है।
पिछले 5 साल में महाराष्ट्र की राजनीति में कई उतार चढ़ाव देखने को मिली है। शिवसेना और एनसीपी का धड़ों में बंट जाना उनमें से एक है। पिछले 2 चुनावों से यहां शिवसेना बाजी मारती आ रही है। इस बार हो सकता है यहां शिवसेना (यूबीटी) और शिवसेना (एकनाथ शिंदे) दोनों ही पार्टियों से उम्मीदवार उतारे जा सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो इस बार भिवंडी ग्रामीण विधानसभा सीट में लड़ाई रोचक होने वाली है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प रहेगा कि जनता सही मायनों में असली का तमगा किसे देती है।
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