नई दिल्ली : लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम सामने आ चुके हैं। नतीजों में एनडीए को पूर्ण बहुमत ज़रूर मिला है। लेकिन इस बार उसे करारा नुकसान झेलना पड़ा है। एनडीए और बीजेपी को हुए इस नुकसान के पीछे सबसे बड़ा कारण उत्तर प्रदेश है। यहां सपा-और कांग्रेस ने बेहतरीन प्रदर्शन किया और एनडीए को महज 36 सीटों पर रोक दिया है। इसके पीछे क्या कारण रहे हैं? सपा ने कैसे इस बार इतनी लंबी छलांग लगा दी है? आइए जानते हैं–
लोकसभा चुनाव 2024 में के नतीजे सामने आ चुके हैं। केन्द्र में एक बार फिर से भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की सरकार बनती हुई दिखाई दे रही है। लेकिन इस बार विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ने भी धमाकेदार प्रदर्शन किया है। एक तरफ एनडीए को जहां इस चुनाव में 292 सीटें हासिल हुई हैं, तो वहीं दूसरी तरफ ‘इंडिया’ को भी 234 सीटों पर जीत मिली है। चुनाव नतीजों के मुताबिक दिल्ली की कुर्सी भले ही एनडीए को मिलती हुई दिखाई दे रही है, लेकिन पिछले दो चुनाव की तरह बीजेपी अकेले अपने दम पर बहुमत हासिल करने में नाकाम रही है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में हुआ नुकसान है।
उत्तर प्रदेश में बीजेपी को इन चुनावों में सबसे बड़ा नुकसान झेलना पड़ा है। 2014 की मोदी लहर में एनडीए को यहां 73 सीटें मिली थी। जिसमें 71 सीटें अकेले भाजपा ने जीती थीं और 2 सीटों पर अपना दल ने बाजी मारी थी। 2019 में एनडीए को थोड़ा सा नुकसान हुआ लेकिन फिर भी वह 64 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रहा था। तब बीजेपी ने अकेल 62 सीटें हासिल की थी जबकि अपना दल अपनी दो सीटें बचानें में कामयाब रहा था। इन दोनों चुनाव की तुलना में देखा जाए तो इस बार यानी 2024 में यहां अर्श से फर्श पर आ गिरी है।
लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए को यूपी में कुल 36 सीटों पर ही जनादेश मिला है। जिसमें 33 पर बीजेपी, दो पर राष्ट्रीय लोकदल और एक सीट पर अपना दल को जीत मिली है। दूसरी तरफ इस बार सपा ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 37 सीटों पर बाजी मारी है जबकि 2019 में उसे 5 सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी। कांग्रेस भी 2019 के मुकाबले 1 से 6 सीटों पर पहुंच गई है। इस लिहाज से देखा देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई है। जबकि पूरे देश में वह बीजेपी और कांग्रेस के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।
2024 लोकसभा चुनाव में सपा की इस अप्रत्याशित सफलता की चर्चा चारों ओर हो रही है। राजनीति रणनीति के साथ-साथ नैरेटिव का भी खेल है। कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव संविधान बचाओ और आरक्षण बचाओ का नैरेटिव निचले स्तर तक पहुंचाने में कामयाब रहे हैं। जिसका उसे फायदा भी मिला है। इसके अलावा राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक अखिलेश यादव पिता मुलायम सिंह यादव की तरह परिपक्व होते नज़र आ रहे हैं। अखिलेश यादव ने चुनाव के दौरान जब कई सीटों पर अंतिम समय में उम्मीदवार बदले तो उनकी आलोचना हुई। लेकिन राजनीति के अच्छे जानकार इसे गुगली करार दे रहे हैं। जिसने कई सीटों पर बीजेपी को क्लीन बोल्ड करने का काम किया है।
माना जाता है कि कोई भी पदयात्रा या और सड़क पर किया गया संघर्ष कभी खाली नहीं जाता। इसका ताज़ा उदाहरण भी 2024 को लोकसभा चुनाव में देखने को मिला। कांग्रेस व राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ और ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ निकाली। चुनाव से पहले यह यात्रा यूपी से होकर गुज़री, सामाजिक न्याय, संविधान बचाओ और आरक्षण बचाओ का नैरेटिव जनता के बीच में गया। सपा और कांग्रेस का गठबंधन हुआ और दोनों ही दलों को फायदा भी हुआ।