वासुवेद गायतोंडे व पेंटिंग (सोर्स: सोशल मीडिया)
Vasudeo Gaitonde Painting News: राजधानी दिल्ली में आयोजित हुई कला नीलामी में भारतीय कलाकारों की कृतियों ने इतिहास रच दिया। इस नीलामी का आयोजन सफ्रनआर्ट कंपनी ने अपनी 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर किया, जिसमें देश-विदेश के कला प्रेमियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इस मौके पर प्रसिद्ध कलाकार वासुदेव संतू गायतोंडे की 1971 में बनाई गई अनटाइटल्ड ऑयल ऑन कैनवास पेंटिंग ने रिकॉर्ड तोड़ते हुए 67.08 करोड़ रुपये में बिक्री दर्ज की।
वासुदेव संतू गायतोंडे की यह अनटाइटल्ड ऑयल ऑन कैनवास पेंटिंग ने भारत की दूसरी सबसे महंगी पेंटिंग भी बन गई है। वहीं यह गायतोंडे की अब तक की सबसे महंगी बिकने वाली पेंटिंग है। इससे पहले गायतोंडे की एक अन्य पेंटिंग 42 करोड़ रुपये में बिकी थी।
वहीं इस साल एम.एफ. हुसैन की मशहूर पेंटिंग ग्राम यात्रा 118 करोड़ रुपये में बिकी थी, जो फिलहाल भारत की सबसे महंगी बिकने वाली पेंटिंग का खिताब अपने नाम रखती है।
वासुदेव गायतोंडे की पेंटिंग का इतनी बड़ी कीमत में बिकना भारतीय आधुनिक कला की बढ़ती लोकप्रियता और कला निवेश के क्षेत्र में लगातार बढ़ते भरोसे को दर्शाता है।
नीलामी में गायतोंडे के अलावा अन्य प्रमुख कलाकारों की कलाकृतियों ने भी खरीदारों का दिल जीता। टायब मेहता की कलाकृतियों को लेकर बोली में गहरी दिलचस्पी देखी गई। वहीं, फ्रांसिस न्यूटन सूजा की पेंटिंग्स ने भी अच्छी कीमत हासिल कीं। आधुनिक कला की जानी-मानी शख्सियत नलिनी मलानी की कृतियों को भी नीलामी में सराहा गया और उनकी पेंटिंग्स ने कलेक्टर्स का ध्यान खींचा।
सफ्रनआर्ट की यह नीलामी कई मायनों में खास रही। कंपनी ने इसे अपनी 25वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित किया और भारतीय कला जगत के लिए यह आयोजन मील का पत्थर साबित हुआ।
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विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय कलाकारों की पेंटिंग्स अब वैश्विक मंच पर लगातार ऊंची पहचान बना रही हैं। अंतरराष्ट्रीय कलेक्टर्स भारतीय कलाकारों के काम में निवेश को एक बड़ी संभावना के रूप में देख रहे हैं।
दिल्ली की यह नीलामी न सिर्फ कला प्रेमियों के लिए रोमांचकारी रही, बल्कि इसने यह भी साबित किया कि भारतीय कला का भविष्य मजबूत है। गायतोंडे और हुसैन जैसे दिग्गज कलाकारों की पेंटिंग्स से प्रेरित होकर नई पीढ़ी के कलाकार भी कला की दुनिया में अपनी अमिट छाप छोड़ने को तैयार हैं।
वासुदेव गायतोंडे का जन्म 2 नवंबर 1924 को महाराष्ट्र के नागपुर में हुआ था। गायतोंडे भारतीय अमूर्त कला के पथप्रदर्शक माने जाते हैं। उन्होंने अपनी कला को ‘नॉन-ऑब्जेक्टिव’ कहा, जिसमें उन्होंने ज़ेन दर्शन और प्राचीन लिपि से प्रेरणा ली। 10 अगस्त 2001 को गुड़गांव में उनका निधन हो गया।