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ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट: नक्सलवाद पर लगाम की ओर तेजी से बढ़ते कदम, घटते जा रहे नक्सल प्रभावित क्षेत्र

ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से नक्सलवाद पर लगाम लगाने के लिए उठाया गया महत्वपूर्ण कदम है। इसके तहत नक्सलवाद का खात्मा होता जा रहा है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र भी घटते जा रहे हैं।

  • By यतीश श्रीवास्तव
Updated On: May 29, 2025 | 10:46 PM

नक्सलवाद के खिलाफ बढ़ते कदम

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रायपुर: नक्सलवाद के खिलाफ सुरक्षा बलों के संघर्ष में बीते 21 मई को नया इतिहास रचा गया। छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ के जंगल में सुरक्षा बलों ने सीपीआई (माओवादी) के महासचिव और सर्वोच्च कमांडर नंबाला केशव राव उर्फ बासवराजू को मार गिराया। उसके साथ 26 और नक्सली मारे गए। इसके कुछ दिन बाद झारखंड में भी तीन नक्सली मारे गए। केंद्र सरकार ने मार्च 2026 के अंत तक नक्सलवाद के देश से सफाये का लक्ष्य रखा है। नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बलों के लगातार कसते शिकंजे का संकेत भी कुछ ऐसा ही है।

नक्सलवाद के उभार के बाद से यह पहला मौका है, जब कोई सर्वोच्च नक्सली कमांडर और महासचिव स्तर का व्यक्ति मारा गया हो। गृहमंत्री अमित शाह ने इसे अपने बयान में रेखांकित भी किया। इस घटना के तुरंत बाद एक बयान में अमित शाह ने इस मुठभेड़ को नक्सलवाद खत्म करने की लड़ाई में ऐतिहासिक उपलब्धि बताने में हिचक नहीं दिखाई। उन्होंने कहा कि नक्सलवाद के खिलाफ तीन दशकों की लड़ाई में महासचिव स्तर के नेता को हमारे सुरक्षा बलों ने मार गिराया है। केशव राव उर्फ बासवराजू को जिस ऑपरेशन के जरिए केंद्रीय रिजर्व पुलिस औ छत्तीसगढ़ पुलिस ने मार गिराया, उसे सुरक्षा बलों ने ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट नाम दिया है।

54 नक्सली गिरफ्तार, 84 ने किया आत्मसमर्पण

छत्तीसगढ़, तेलंगाना और महाराष्ट्र तक फैले जंगलों में जारी इस ऑपरेशन के तहत जहां 54 नक्सली गिरफ्तार किए जा चुके हैं, वहीं 84 नक्सलियों ने समर्पण किया है। जिस तरह धड़ाधड़ सफल मुठभेड़ हो रही है, नक्सली समर्पण कर रहे हैं या फिर गिरफ्तार किए जा रहे हैं, उससे अमित शाह का उम्मीद रखना बेमानी भी नहीं है।

मोदी सरकार के चुनाव घोषणा पत्र में था नक्सलवाद का मुद्दा

मोदी सरकार ने साल 2014 में जब सत्ता संभाली थी, तब देश के 70 जिलों में नक्सलवाद का बड़ा असर था। भारतीय जनता पार्टी ने साल 2014 के चुनाव घोषणा पत्र में नक्सलवाद पर लगाम को अपने प्रमुख कार्यक्रम में शामिल किया था। इसके एक साल पहले ही 25 मई 2013 को छत्तीसगढ़ की झीरम घाटी में राज्य कांग्रेस के तकरीबन समूचे नेतृत्व को नक्सलियों ने निशाना बना दिया था। उससे उपजा क्षोभ ताजा था। वैसे भी सैद्धांतिक रूप से भारतीय जनता पार्टी माओवादी हिंसा के खिलाफ कठोर कार्रवाई की हमेशा से पक्षधर रही है। कह सकते हैं कि इसी वजह से साल 2014 के चुनाव घोषणा पत्र में नक्सलवाद पर लगाम को पार्टी ने अपना प्रमुख कार्यक्रम घोषित कर रखा था।

जंगल और आदिवासी क्षेत्रों में तेजी से बढ़ा नक्सलवाद

गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि नक्सलवाद का प्रभाव उन इलाकों में ज्यादा तेजी से बढ़ा, जहां जंगल थे, जहां आदिवासी समुदाय का निवास ज्यादा था, जहां शिक्षा का प्रसार कम था। यह सच है कि आधुनिक सभ्यता की सहयोगी आधुनिक व्यवस्था की निगाह जल-जंगल आदि प्राकृतिक संसाधनों के जरिए मुनाफाखोरी पर रही है। इस वैचारिकी का स्थानीय लोगों में प्रचार के जरिए नक्सलवाद ने अपनी गहरी पैठ बनाई।

चीन के संस्थापक माओत्से तुंग की विचारधारा से प्रेरित

नक्सलवाद बुनियादी रूप से आधुनिक चीन के संस्थापक माओत्से तुंग की विचारधारा से प्रेरित है। उनकी मान्यता थी कि सत्ता बारूद से निकलती है। नक्सलवाद या माओवादी सोच के मूल में हिंसा की अवधारणा है। जिसके अनुसार बदलाव भी हिंसा के जरिए ही आता है। वैचारिकी तक अगर माओवाद सीमित रहता तो गनीमत थी। लेकिन माओवादी कमांडरों ने बाद में अपने प्रभाव वाले इलाकों में अपनी ताकत का इस्तेमाल वसूली और मोटी कमाई के लिए करना शुरू कर दिया। तब से उनके प्रति समर्थन घटने लगा।

रेलवे लाइन, स्टेशन, डाकघर, स्कूल को बनाते रहे निशाना

नक्सली अपने प्रभाव क्षेत्र में अक्सर विकास के आधुनिक माध्यमों और प्रतीकों मसलन रेलवे लाइन, स्टेशन, डाकघर, स्कूल आदि को निशाना बनाते रहे। धीरे-धीरे उनके इस कृत्य को स्थानीय निवासी विकास विरोधी मानने लगे। जैसे-जैसे स्थानीय लोगों की यह समझ बढ़ी, नक्सलियों का समर्थक आधार कमजोर होता गया। उनके समर्थक आधार को कमजोर करने में उनके द्वारा व्यापक स्तर पर किए गए नरसंहारों ने भी बड़ी भूमिका निभाई।

2010 में नक्सली हमले 75 जवानों की मौत के बाद उठे सवाल

झीरम घाटी के नक्सली हमले में जहां तीस से ज्यादा लोग मारे गए थे, 6 अप्रैल 2010 को छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के ताड़मेटला के जंगलों में नक्सलियों ने घात लगाकर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 75 और जिला बल के एक जवान को बारूदी सुरंग में उड़ा दिया था। इन हत्याओं के बाद नक्सली हिंसा को लेकर सवाल उठने लगा। नक्सलियों के समर्थक बौद्धिक तबके के लिए उनके बचाव में बोलना आसान नहीं रह गया। ताड़मेटला कांड के बाद तो उनके खिलाफ वायुसेना की कार्रवाई की मांग उठी थी, तब नक्सलियों के बौद्धिक समर्थकों ने इसका विरोध किया था। इस विरोध के चलते तत्कालीन मनमोहन सरकार ने नक्सली हिंसा को काबू करने के लिए सैनिक कार्रवाई को टाल दिया था।

मोदी सरकार में नक्सल विरोधी खुफिया तंत्र मजबूत हुआ

मोदी सरकार की नजर में माओवादी हिंसा आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा थी। वैसे मोदी सरकार को पता था कि नक्सलियों पर ऐसी कार्रवाई का एक बड़ा बौद्धिक वर्ग विरोध करेगा। इसलिए नक्सली हिंसा पर लगाम के लिए दोतरफा कार्रवाई शुरू की। एक तरफ नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए सुरक्षा बलों के बीच तालमेल बढ़ाने और नक्सल विरोधी खुफिया तंत्र को मजबूत बनाने पर जोर दिया गया। वहीं दूसरी तरफ समावेशी विकास का पहिया तेजी से दौड़ाने की कोशिश की गई। इसमें सामुदायिक भागीदारी को भी बढ़ावा दिया गया। इस रणनीति के जरिए माओवादी आंदोलन को सुनियोजित तरीके से कमजोर करने में कामयाबी मिली। इससे माओवादियों के हाथों होने वाली हिंसा में कमी आई। लोगों में भय का माहौल कम हुआ।

उग्रवाद से प्रभावित जिलों को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास

माओवादी उग्रवाद से प्रभावित कई जिलों को मुख्यधारा में शामिल करने में तेजी आई। इसकी वजह से स्थानीय निवासी नक्सलवाद दूरवर्ती इलाकों एवं जनजातीय गांवों के विकास में सबसे बड़ी बाधा के रूप में देखने लगे। उन्हें यह भरोसा होने लगा कि माओवादी हिंसा और सोच शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार, बैंकिंग और डाक सेवाओं को उनके गांवों तक पहुंचने से रोकती है। नक्सलियों के समर्पण और उसके बाद उनके पुनर्वास पर जोर दिया गया। उन्हें हिंसा छोड़ने के बाद मुख्यधारा में शामिल होने और सामान्य जिंदगी बिताने के लिए सरकारी स्तर पर मदद दी जाने लगी।

नक्सल प्रभावित जिलों के लिए सरकार की विशेष योजना

भारत सरकार की ओर से बुनियादी ढांचे की कमी दूर करने के लिए नक्सल प्रभावित जिलों के लिए विशेष योजना के तहत विशेष केन्द्रीय सहायता दी जा रही है। इसके तहत नक्सलवाद से सबसे अधिक प्रभावित और चिंतित करने वाले जिलों को 30 और10 करोड़ रुपये की मदद दी जा रही है। इसके अलावा, जरूरत के मुताबिक, इन जिलों के लिए विशेष परियोजनाएं भी दी जा रही हैं। इसकी वजह से पिछले 10 वर्षों के दौरान, 8,000 से अधिक नक्सलियों ने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया है।

नक्सली या तो मारे जा रहे या आत्मसमर्पण कर रहे

सरकार की योजना का असर यह होगा कि माओवादियों के खिलाफ उनकी कार्रवाई कहीं ज्यादा सटीक होगी। इसका असर भी अब दिखने लगा है। अब जहां खूंखार नक्सली या तो मारे जा रहे हैं या फिर समर्पण कर रहे हैं, वहीं जनजातीय इलाकों में नई सड़कें और रेल लाइनें बनाई जा रही हैं। छत्तीसगढ़ ‘खरसिया-नया रायपुर-परमलकसा मार्ग से बलौदा बाजार जैसे नए क्षेत्रों को सीधा रेल संपर्क मिलने जा रहा है। इस इलाके में 278 किलोमीटर नई रेल लाइन बिछाई जा रही है।

केंद्रीय बलों का मानना सरकार ने मुफीद माहौल दिया

माओवाद विरोधी कार्रवाई की कमान संभालने वाले केंद्रीय बलों के अधिकारियों का मानना है कि मौजूदा सरकार ने उनके लिए मुफीद माहौल मुहैया कराया है। छत्तीसगढ़ में जब भूपेश बघेल की सरकार की हार के बाद सुरक्षा बलों के कुछ अधिकारियों का मानना था कि नई सरकार की नीति बदलेगी। इसकी वजह से स्थानीय पुलिस और प्रशासन माओवादी हिंसा के खिलाफ उनके कदमों के प्रति सहयोगी रूख रखेगा। नक्सलवाद पर नकेल के उपायों का असर ही कहा जाएगा कि साल 2014 में जहां नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 70 थी, जो अब घटकर 38 रह गई है।

नक्सलवाद खत्म हो, विकास की गाड़ी दौड़ती रहे और जनजातीय समूह के लोगों को भी विकास में भागीदार बनाया जाए, इससे शायद ही किसी को इनकार होगा। लेकिन साथ ही व्यवस्था को यह भी देखना होगा कि फिर ऐसे हालात न बनें, जिससे स्थानीय निवासियों को बरगलाना आसान हो और वे हथियार उठाने के लिए मजबूर हों।

-वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक समीक्षक उमेश चतुर्वेदी की कलम से

Operation black forest narendra modi government steps to curb naxalism

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Published On: May 29, 2025 | 10:46 PM

Topics:  

  • Chhattisgarh Naxalites
  • Chhattisgarh News
  • Modi government

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