
प्रतीकात्मक तस्वीर (सोर्स: AI)
Indian Oil Sector: अमेरिका द्वारा रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों रॉसनेफ्ट और लुकोइल पर लगाए गए प्रतिबंधों से रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड को बड़ा झटका लग सकता है। एक अनुमान के मुताबिक इससे उसकी आय में 3,000-3,500 करोड़ रुपये तक की गिरावट आ सकती है।
विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका के नए प्रतिबंधों से रिलायंस इंडस्ट्रीज के साथ नयारा एनर्जी पर सबसे अधिक असर पड़ने की संभावना है। इसके बाद सरकारी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन पर असर पड़ेगा।
इन प्रतिबंधों के बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और सरकारी तेल रिफाइनरियां अब रूसी कच्चे तेल का आयात रोकने करने की तैयारी कर रही हैं।
रिलायंस ने कहा कि रूसी तेल आयात का पुनर्संतुलन जारी है और रिलायंस सरकार के दिशानिर्देशों के साथ पूर्ण रूप से तालमेल में रहेगी। आयातक कंपनियों को 21 नवंबर तक पहले से तय अनुबंधों के तहत खेपें प्राप्त करने की अनुमति है।
पहले के प्रतिबंधों के विपरीत इस बार प्रतिबंध प्रत्यक्ष रूप से कंपनियों पर लगाए गए हैं, जिससे निर्धारित तिथि के बाद उनके बैरल प्रतिबंधित माने जाएंगे। अब तक इस वर्ष भारत के कुल कच्चे तेल आयात का 34% रूस से आया है, जिसमें से रॉसनेफ्ट और लुकोइल की हिस्सेदारी लगभग 60% है। इंडियन ऑयल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि रूसी तेल का हिस्सा उसके कुल कच्चे तेल बास्केट का 15-18% है।
मध्य-पूर्वी कच्चे तेल की मूल बिक्री कीमत और कमजोर डाउनस्ट्रीम मार्जिन के कारण इसका असर आंशिक रूप से संतुलित हुआ। सरकारी तेल कंपनियों पर इस बार के प्रतिबंधों असर तय है, क्योंकि उनका मुख्य कारोबार रिफाइनिंग और मार्केटिंग है। हालांकि उनके पास दीर्घकालिक अनुबंध नहीं हैं, लेकिन वे रूस से लगातार कच्चा तेल खरीद रही थीं।
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यदि 30% आपूर्ति प्रभावित होती है और प्रति बैरल 2-3 डॉलर की छूट का भी नुकसान होता है तो उनकी कुल कमाई पर भारी असर पड़ सकता है। प्रति बैरल 1 डॉलर की गिरावट से भी उनकी कुल आय में 9-10% तक की कमी आ सकती है।
नयारा एनर्जी में रॉसनेफ्ट की लगभग 50% हिस्सेदारी है। उसके लिए कच्चे तेल की आपूर्ति सुनिश्चित करना और परिष्कृत उत्पाद बेचना अब और कठिन हो सकता है। गुजरात स्थित वडिनार रिफाइनरी पहले से ही जुलाई में लगाए गए पहले चरण के प्रतिबंधों के बाद 60-70% क्षमता पर काम कर रही है।
विश्लेषकों का कहना है कि ओपेक देशों के पास अतिरिक्त कच्चे तेल की क्षमता है, जिससे आपूर्ति की समस्या कुछ हद तक सुलझ सकती है लेकिन कीमतें बढ़ सकती हैं। ऐतिहासिक रूप से भारत मध्य-पूर्व से ही अधिक तेल आयात करता रहा है, लेकिन 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध और ग्रुप ऑफ सेवन द्वारा रूस के तेल राजस्व को सीमित करने के लिए 60 डॉलर प्रति बैरल की मूल्य सीमा लागू करने के बाद रूस भारत के लिए सस्ता और आकर्षक विकल्प बन गया था।






