अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (फोटो- सोशल मीडिया)
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर दुनिया को चौंकाते हुए मैक्सिको और यूरोपीय संघ से आयातित वस्तुओं पर 30 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी है। यह टैरिफ 1 अगस्त से प्रभाव में लाया जाएगा। इस कदम से वैश्विक व्यापार संबंधों में तनाव और बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। ये फैसला उन व्यापारिक चर्चाओं के असफल होने के बाद लिया गया है, जिनका उद्देश्य अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच जीरो टैरिफ समझौते को लागू करना था।
ट्रंप ने शनिवार को इस फैसले की जानकारी सोशल मीडिया पर बताते हुए यूरोपीय संघ और मैक्सिको को पत्र भी लिखा। इससे पहले अमेरिका ने जापान, दक्षिण कोरिया, कनाडा और ब्राजील से इंपोर्टेड तांबे पर भी 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया था। विशेषज्ञों का मानना है कि यह नीति अमेरिकी बाजार को सुरक्षित करने के लिए ट्रंप की रणनीति का हिस्सा है, लेकिन इसके चलते वैश्विक व्यापार में अस्थिरता और महंगाई की आशंका तेज हो गई है।
व्यापार वार्ता विफल, टैरिफ का रास्ता अपनाया
यूरोपीय संघ ने शुरू में अमेरिका से औद्योगिक वस्तुओं पर शून्य टैरिफ की मांग की थी, लेकिन महीनों की बातचीत के बाद भी कोई समझौता नहीं हो पाया। जर्मनी जैसे देशों ने समझौते का समर्थन किया, जबकि फ्रांस जैसे देश अमेरिका के प्रस्ताव को एकतरफा मानते हुए इसका विरोध करते रहे। नतीजतन, यूरोपीय संघ अब आंतरिक मतभेदों के बीच एक अंतरिम समाधान की तलाश में है, जबकि अमेरिका ने टैरिफ लागू करने का रास्ता चुन लिया है।
खजाने को राहत, सहयोगियों को झटका
ट्रंप प्रशासन की आक्रामक टैरिफ नीति से अमेरिकी ट्रेजरी को बड़ा फायदा हुआ है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस साल जून तक सीमा शुल्क के जरिए 100 अरब डॉलर से अधिक की कमाई हुई है। हालांकि, सहयोगी देशों के लिए यह फैसला एक बड़ा झटका है, जिससे व्यापारिक रिश्तों में दूरियां भी बढ़ सकती हैं। ट्रंप इसे अमेरिका फर्स्ट की नीति का हिस्सा बताते हुए घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए जरूरी मानते हैं।
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डोनाल्ड ट्रंप का य फैसला न सिर्फ वैश्विक व्यापार के समीकरणों को झकझोर सकता है, बल्कि अमेरिका के सहयोगियों के साथ रिश्तों को भी चुनौती देगा। आने वाले समय में इस नीति के दूरगामी प्रभाव देखने को मिल सकते हैं।