प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली: मिडिल ईस्ट में ईरान और इजरायल के बीच 12 दिनों तक युद्ध भले ही समाप्त हो चुका है, लेकिन इससे भारत को बड़ी सबक मिली है। यही वजह है कि उर्जा सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए सरकार देश के छह अन्य लोकेशन पर पेट्रोलियम रिजर्व बनाने जा रही है। इसे बनाने में हजारों करोड़ का खर्चा आएगा, लेकिन पश्चिम एशिया में बढ़ते तनाव को देखते हुए इस तरह का कदम उठाना बेहद जरूरी है। फिलहाल देश में केवल 9 दिनों की जरूरत पूरी करने जितना ही तेल भंडार की जगह है, जिसे अब बढ़ाकर 90 दिन करने की योजना है।
केंद सरकार ने इस रणनीति पर अमल करने के लिए इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड को प्रस्तावित रिजर्व तैयार करने के लिए एक रिपोर्ट बनाने को कहा है। इसके मुख्य उद्देशय देश की क्रूड ऑयल स्टोरेज क्षमता को बढ़ाना है। हाल ही में पश्चिमी एशिया में उभरते तनाव को देखते हुए सरकार ने यह फैसला किया है। मीडिया रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि देश की 6 अलग-अलग जगहों पर यह ऑयल रिजर्व बनाया जाएगा।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक के मैंगलोर स्थित स्पेशल इकोनामिक जोन (SEZ) में एक रिजर्व बनाने पर विचार किया जा रहा है, जबकि राजस्थान के बीकानेर जिले में दूसरा रिजर्व बनाने की तैयारी चल रही है। अन्य 4 ऑयल रिजर्व भी समुद्र तट के आसपास या रिफाइनरीज के नजदीक बनाई जाएंगी, ताकि यहां तक पहुंच और ट्रासपोर्टेशन आसान हो जाए। रिपोर्ट को इस साल के आखिरी तक पेश करने का आदेश भी दिया गया है, ताकि बिना किसी देरी इसपर जल्द से जल्द काम शुरू किया जा सके।
सरकारी तेल भंडार के अलावा अगर तेल कंपनियों की भंडार क्षमता को भी शामिल किया जाए तो देश के पास महज 77 दिन के इस्तेमाल का ही तेल बचेगा। अंतरराष्ट्रीय एनर्जी एजेंसी के मानक को भी देखें तो सभी देशों को कम से कम 90 दिन का तेल भंडार बनाना जरूरी कर दिया गया है। अभी सरकार ओडिशा के चंडीकोल में 65 लाख टन तेल स्टोर करने की फैसिलिटी तैयार की है। इसके अलावा पदूर में तेल भंडार की क्षमता को भी बढ़ाया जा रहा है।
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भारत ने अपनी तेल क्षमता को बढ़ाने के लिए दुनिया के तमाम एनर्जी कंपनियों से संपर्क साधना शुरू कर दिया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 10 लाख टन रिजर्व तैयार करने के लिए करीब 2,500 करोड़ रुपये का खर्चा आता है। इससे पहले भी भारत कई बार तेल भंडार की कमी का सामना कर चुका है। नवंबर, 2021 में कोविड के समय सरकार को अपने भंडार में से 50 लाख टन तेल देना पड़ा था, ताकि कीमतों पर लगाम लगाई जा सके। हालांकि, बाद में ग्लोबल कीमतें कम होने पर भारत ने 19 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर तेल खरीदकर 69 करोड़ डॉलर की बचत की थी।