प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली: देश के अलग-अलग बैंकों से बैंकिंग सुविधा लेने वाले ग्राहकों के लिए एक राहत की खबर है। दरअसल, हर महीने बैंक खाते में मिनिमम बैलेंस रखने की टेंशन से आपको जल्द ही आजादी मिलने वाली है। पब्लिक सेक्टर के बैंक अब मिनिमम बैलेंस की नियमों को हटाने पर सोच-विचार कर रहे हैं। बैंक ऑफ बड़ोदा, कैनरा बैंक, पंजाब नेशनल बैंक और इंडियन बैंक जैसे दिग्गज सरकारी बैंको ने हाल ही में मिनिमम बैलेंस की अनिवार्यता को हटा दिया था। वित्त मंत्रालय और बैंक के शीर्ष अधिकारियों के बीच हुई एक बैठक में भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी। मंत्रालय ने बैंकों से पूछा कि जब ज्यादातर बैंकिंग सेवाएं ऑनलाइन हो चुकी हैं, तो फिर कस्टमर्स पर न्यूनतम बैलेंस का दबाव क्यों डाला जा रहा है।
मिनिमम बैलेंस का मतलब है किसी बैंक अकाउंट में रखे जानी वह रकम, जिसके न होने पर बैंक ग्राहकों पर जुर्माना लगा सकते हैं। इसको भाषा में समझे तो बैंक चाहता है कि आपके अकाउंट हमेशा कुछ न कुछ बैलेंस रहे, ताकि अकाउंट एक्टिव रहे। सरकारी बैंकों के मुकाबले प्राइवेट बैंकों में मिनिमम बैलेंस को लेकर ज्यादा सख्त नियम हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी आर्थिक स्थिरता रिपोर्ट में संकेत दिए हैं कि अब बैंकों की देनदारी प्रोफाइल बदल रही है। अब बैंक ज्यादा भरोसा फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) और सर्टिफिकेट डिपॉजिट (CDs) पर कर रहे हैं, जो रिटर्न के तौर पर ब्याज भी ज्यादा देते हैं। वहीं, कम लागत वाले करेंट और सेविंग अकाउंट में जमा राशि की रफ्तार में भी कमी आई है।
बैंकों का कहना है कि प्रधानमंत्री जनधन योजना (PMJDY) के तहत खोले गए खातों से एक नई सीख मिली है। शुरुआती दौर में भले ही यह एक्टिव नहीं रहे, लेकिन समय के साथ-साथ इन खातों में राशि जमा होनी शुरू हो गई। इसी के आधार पर अब पॉलिसी में बदलाव को लेकर विचार करने पर मजबूर कर रहा है।
देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने साल 2020 में एक बड़ा फैसला लेते हुए ऐलान किया कि उसने मिनिमम बैलेंस की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है। एक RTI में जब सामने आया की जुर्माने से हुई कमाई बैंक के मुनाफे से ज्यादा थी। इस पर बैंक की काफी आलोचना भी हुई थी।
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बता दें कि प्राइवेट बैंक के ग्राहकों को अभी भी अपने खाते में मिनिमम बैलेंस रखना होगा, क्योंकि निजी बैंक इस नियम को लेकर अभी भी सख्त नजर आ रहे हैं। हालांकि, जनधन और सैलरी अकाउंट पर वे भी छूट देते हैं। इसके अलावा वे उन ग्राहकों को भी छूट देते हैं, जिनके खाते में निवेश, फिक्स्ड डिपॉजिट आदि के रूप में रिलेशनशिप वैल्यू बनी रहती है।