सुरसंड विधानसभा सीट (डिजाइन फोटो)
Sursand Assembly Constituency: सुरसंड विधानसभा सीट न केवल अपने सामाजिक-आर्थिक मुद्दों के लिए जानी जाती है, बल्कि यहां का चुनावी इतिहास भी दलों की रणनीति को प्रभावित करता रहा है।
सुरसंड विधानसभा सीट पर जदयू का प्रभाव लंबे समय से बना हुआ है। बीते तीन विधानसभा चुनावों में जदयू ने दो बार जीत दर्ज की है। 2010 में जदयू ने राजद को हराया था, हालांकि जीत का अंतर बहुत कम वोटों का रहा। 2015 में नीतीश कुमार ने राजद के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा और इस सीट से राजद के उम्मीदवार को जीत मिली। लेकिन 2020 में जदयू ने एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और फिर से इस सीट पर जीत हासिल की।
यह सिलसिला दर्शाता है कि सुरसंड में जदयू की पकड़ मजबूत रही है, लेकिन राजद भी यहां अपनी मौजूदगी बनाए रखने में सफल रहा है। आगामी चुनाव में जदयू जहां अपनी जीत की लय बरकरार रखने की कोशिश करेगा, वहीं राजद एक ऐसे उम्मीदवार को मैदान में उतार सकता है जो स्थानीय मुद्दों को समझता हो और जनता की नब्ज पकड़ सके।
सुरसंड विधानसभा क्षेत्र पूरी तरह से ग्रामीण और कृषि आधारित है। यहां की अधिकांश आबादी खेती पर निर्भर है। धान, गेहूं, मक्का, गन्ना और दालें इस क्षेत्र की प्रमुख फसलें हैं। कुछ किसान सब्जी और फल उत्पादन में भी लगे हैं। हालांकि, सिंचाई की सुविधाओं की कमी के कारण किसानों को कई बार कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। यह क्षेत्र बाढ़-प्रभावित है, जिससे हर साल फसलें नष्ट होती हैं और लोगों का जीवन प्रभावित होता है। बाढ़ के कारण न केवल कृषि बल्कि आवागमन और स्वास्थ्य सेवाएं भी बाधित होती हैं।
सुरसंड की सबसे बड़ी समस्याओं में सड़क, बिजली और स्वच्छ पानी की आपूर्ति की कमी शामिल है। ग्रामीण इलाकों में कनेक्टिविटी और परिवहन सुविधाएं बेहद कमजोर हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति भी चिंताजनक है । यहां के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सकों और दवाओं की कमी आम बात है। शिक्षा के क्षेत्र में भी स्थिति बेहतर नहीं है। प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में शिक्षकों की कमी और आधारभूत सुविधाओं का अभाव बच्चों की पढ़ाई को प्रभावित करता है।
सुरसंड विधानसभा की कुल जनसंख्या 5,70,103 है, जिसमें पुरुषों की संख्या 2,96,617 और महिलाओं की संख्या 2,73,486 है। चुनाव आयोग के 1 जनवरी 2024 के आंकड़ों के अनुसार, इस क्षेत्र में कुल मतदाता 3,27,651 हैं। इनमें पुरुष मतदाता 1,72,956, महिला मतदाता 1,54,685 और थर्ड जेंडर मतदाता 10 हैं। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि महिला मतदाताओं की संख्या भी निर्णायक भूमिका निभा सकती है, खासकर जब चुनावी मुद्दे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार से जुड़े हों।
सुरसंड में रोजगार के अवसर सीमित हैं, जिसके कारण युवाओं को दिल्ली, मुंबई और अन्य बड़े शहरों में काम करने जाना पड़ता है। यह पलायन न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने पर भी असर डालता है। बेरोजगारी का मुद्दा आगामी चुनाव में एक बड़ा विषय बन सकता है।
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सुरसंड विधानसभा सीट पर जदयू का दबदबा जरूर रहा है, लेकिन चुनावी समीकरण हर बार बदलते रहे हैं। 2025 के चुनाव में जदयू अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखने की कोशिश करेगा, जबकि राजद एक बार फिर वापसी की राह तलाशेगा। स्थानीय मुद्दे, जातीय समीकरण और विकास की मांग इस बार चुनाव को और भी रोचक बना सकते हैं। अब देखना यह है कि क्या सुरसंड में जदयू की लय बरकरार रहेगी या राजद एक बार फिर जनता का विश्वास जीतने में सफल होगा।