सांकेतिक तस्वीर
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दूसरे चरण का प्रचार अभियान आज शाम समाप्त होने वाला है। इस चरण में बिहार के सीमांचल, मिथिला, और अंग क्षेत्र में मतदान होगा, और माना जा रहा है कि इस चरण में जो गठबंधन लोगों का विश्वास जीतेगा, वही बिहार की सत्ता पर काबिज होगा। हालांकि, सीमांचल में मुस्लिम वोटरों में बिखराव के संकेत मिल रहे हैं, जो बिहार के सत्ता समीकरणों को उलट-पलट कर सकते हैं।
सीमांचल क्षेत्र बिहार के चार जिलों— किशनगंज, पूर्णिया, अररिया, और कटिहार— पर आधारित है। इन जिलों में मुस्लिम आबादी का खासा प्रभाव है, जिससे यह क्षेत्र चुनावी परिणामों पर सीधा असर डालता है। माइनॉरिटी कमीशन के आंकड़ों के अनुसार:
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि सीमांचल में मुस्लिम मतदाताओं का वोट बैंक काफी बड़ा है और चुनावी परिणामों को प्रभावित कर सकता है।
2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन) ने सीमांचल में अप्रत्याशित सफलता हासिल की थी। ओवैसी की पार्टी ने अमौर, बहादुरगंज, बायसी, जोकीहाट, और कोचाधामन जैसी सीटों पर जीत दर्ज कर परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगाई थी। अब 2025 के चुनाव में ओवैसी फिर से सीमांचल में उसी रणनीति के साथ मैदान में हैं, लेकिन इस बार उन्हें प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी से चुनौती मिल रही है। जनसुराज पार्टी सीमांचल में विकास और शासन सुधार के मुद्दों पर सक्रिय है, और उनकी पार्टी का लक्ष्य मुस्लिम वोट बैंक को तोड़कर महागठबंधन को नुकसान पहुंचाना है।
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, जनसुराज और AIMIM दोनों का मुख्य उद्देश्य महागठबंधन (RJD-कांग्रेस) के वोट बैंक को कमजोर करना है। ओवैसी जहां धार्मिक पहचान के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण कर रहे हैं, वहीं प्रशांत किशोर ग्रामीण इलाकों और युवाओं के बीच अपने गांव-गांव जनसंवाद अभियान के जरिए वैकल्पिक राजनीति का विकल्प पेश कर रहे हैं।
महागठबंधन के लिए मुख्य चुनौती मुस्लिम-यादव (MY) गठबंधन को बनाए रखना है, जो बिहार की राजनीति में हमेशा अहम रहा है। वहीं, NDA (BJP-जदयू) सीमांचल में “विकास बनाम पहचान” की राजनीति पर जोर दे रही है। भाजपा और जदयू ने सड़क, शिक्षा, रोजगार, और सुरक्षा जैसे स्थानीय मुद्दों के माध्यम से अल्पसंख्यक मतदाताओं तक अपनी पहुंच बनाने की कोशिश की है।
2025 के विधानसभा चुनाव में सीमांचल का राजनीतिक परिदृश्य अब त्रिकोणीय नहीं बल्कि चतुष्कोणीय हो चुका है। महागठबंधन, NDA, AIMIM, और जनसुराज, ये चारों राजनीतिक दल और गठबंधन अब अपनी-अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटे हैं। तेजस्वी यादव के लिए चुनौती मुस्लिम-यादव गठजोड़ को बनाए रखना है, जबकि नीतीश कुमार अपने विकास एजेंडे को बढ़ावा दे रहे हैं। इस बार ओवैसी और प्रशांत किशोर का प्रभाव भी सत्ता के समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।
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राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार, सीमांचल की 24 सीटें बिहार की सत्ता का बैरोमीटर मानी जाती हैं। 2020 में महागठबंधन यहां से पिछड़ गया था, और अब 2025 में भी यही इलाका सत्ता परिवर्तन का निर्णायक कारक बन सकता है। सीमांचल की सीटों पर होने वाली लड़ाई की दिशा और तेज होगी, क्योंकि यह इलाका बिहार के चुनावी परिदृश्य में हमेशा अहम रहा है।