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Bihar Politics: बीते 22 दिसंबर को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का दिल्ली दौरा न केवल प्रशासनिक बल्कि सियासी नजरिए से भी बेहद अहम रहा। चुनावी जीत के महज एक महीने बाद एनडीए के शीर्ष नेतृत्व के साथ हुई इस बैठक ने बिहार की राजनीति में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है। दिल्ली के सियासी गलियारों में यह खबर आग की तरह फैल गई है कि बैठक का असली मुद्दा बिहार के लिए फंड या कैबिनेट विस्तार नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री की कुर्सी का भविष्य और उनके उत्तराधिकारी का चयन था।
नवंबर में मिली शानदार जीत के बाद यह पहला मौका था जब मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से अलग-अलग मुलाकात की। वैसे तो सरकारी तौर पर इसे एक शिष्टाचार भेंट बताया जा रहा है, लेकिन वर्तमान राजनीति में कोई भी मुलाकात शिष्टाचार के लिए नहीं होती, वरन् सभी मुलाकातों के कुछ न कुछ मायने होते हैं।
अंदरखाने की खबर यह है कि इस मुलाकात में बिहार के अगले सियासी रोडमैप की पटकथा लिखी जा चुकी है। मुख्यमंत्री के साथ डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और केंद्रीय मंत्री लल्लन सिंह की मौजूदगी इस बात का संकेत दे रही थी कि एनडीए गठबंधन अब अपनी 243 सीटों की जीत को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए एक ठोस रणनीति पर काम कर रहा है।
राजनीतिक विश्लेषक इस बात पर जोर दे रहे हैं कि नीतीश कुमार का यह दौरा सामान्य नहीं था। 22 दिसंबर 2025 को जब वे दिल्ली पहुंचे, तो माहौल में एक अलग ही गंभीरता थी। अमूमन प्रधानमंत्री से मुलाकात के दौरान मुख्यमंत्री अकेले होते हैं, लेकिन इस बार उनके साथ पार्टी और गठबंधन के अन्य बड़े नेताओं का होना यह बताता है कि बात सिर्फ सरकारी योजनाओं तक सीमित नहीं थी। जेडीयू के सूत्रों की मानें तो टेबल पर तीन मुख्य फाइलें थीं। पहली बिहार के विकास के लिए विशेष पैकेज की मांग, दूसरी राज्य मंत्रिमंडल का विस्तार और तीसरी राज्यसभा की पांच सीटों का गणित।
सीएम नीतीश कुमार और पीएम मोदी की मुलाकात (सोर्स- सोशल मीडिया)
लेकिन इन फाइलों के नीचे जो सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा दबा हुआ था, वह था नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार की राजनीति में एंट्री। पटना से लेकर दिल्ली तक अब यही चर्चा है कि क्या नीतीश कुमार अपनी विरासत अपने बेटे को सौंपने की तैयारी कर चुके हैं? 74 वर्ष के हो चुके नीतीश कुमार अपनी उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए अब भविष्य की चिंता से मुक्त होना चाहते हैं। इसके साथ ही विपक्ष भी उनकी उम्र को लेकर निशाना साधता रहता है। यही वजह है कि इस दौरे को उनकी एग्जिट प्लानिंग के तौर पर देखा जा रहा है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कार्यशैली को करीब से जानने वाले लोग इस बात से हैरान हैं कि दिल्ली दौरे के दौरान उन्होंने मीडिया से पूरी तरह दूरी बनाए रखी। यह उनका पुराना अंदाज नहीं है। हाल के दिनों में अपने बयानों के चलते सुर्खियों में रहने वाले नीतीश कुमार इस बार पत्रकारों के सवालों से बचकर निकल गए। जानकारों का कहना है कि यह खामोशी एक रणनीति का हिस्सा है। जब भी कोई बड़ा फैसला होने वाला होता है, तो अक्सर बड़े नेता इसी तरह की चुप्पी साध लेते हैं।
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सूत्रों का दावा है कि प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह के साथ हुई बैठक में विकास के साथ-साथ उत्तराधिकार पर बहुत खुलकर बात हुई है। चर्चा है कि नीतीश कुमार अपने बेटे निशांत कुमार को पहले कैबिनेट मंत्री बनाकर मुख्यधारा की राजनीति में लाना चाहते हैं, ताकि उनकी प्रशासनिक क्षमता को परखा जा सके और आगे की दावेदारी मजबूत की जा सके। वहीं, बीजेपी भी चाहती है कि एनडीए गठबंधन में स्थिरता बनी रहे और नीतीश कुमार को एक सम्मानजनक विदाई मिले, ताकि सत्ता का हस्तांतरण बिना किसी विवाद के हो सके।
इस पूरे सियासी घटनाक्रम में एक और पहलू है जो बहुत महत्वपूर्ण है, और वह है डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी की भूमिका। राजनीतिक गलियारों में यह बात किसी से छिपी नहीं है कि सम्राट चौधरी भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में शामिल हैं और उनकी अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। ऐसे में अगर निशांत कुमार को आगे बढ़ाया जाता है, तो गठबंधन के भीतर शक्ति संतुलन कैसे बनाया जाएगा, यह एक बड़ा सवाल है। दिल्ली की बैठक में इसी संतुलन को बनाने पर चर्चा हुई है। लेकिन बात कहां तक पहुंची यह कह पाना मुश्किल है।
अमित शाह व नितीश कुमार की मुलाकात (सोर्स- सोशल मीडिया)
नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री के सामने बिहार के सात निश्चय योजना को पूरा करने के लिए केंद्र से फंड की मांग रखी, जिस पर प्रधानमंत्री ने उन्हें आश्वस्त किया कि विकास कार्यों में पैसों की कोई कमी नहीं आने दी जाएगी। प्रधानमंत्री का यह कहना कि आप आगे बढ़िए, इस बात का संकेत है कि केंद्र सरकार नीतीश कुमार के फैसलों के साथ खड़ी है। हालांकि, सियासी पंडित यह भी मान रहे हैं कि राज्यसभा की पांच सीटों का बंटवारा और कैबिनेट विस्तार ही वह पहला कदम होगा जिससे पता चलेगा कि ऊंट किस करवट बैठेगा।
वैसे तो सियासत क्रिकेट से भी कही अधिक अनिश्चितताओं का खेल है। लेकिन अगर निशांत कुमार को बड़ी जिम्मेदारी मिलती है, तो यह मान लिया जाएगा कि नीतीश कुमार ने अपने संन्यास की तारीख तय कर ली है। फिलहाल, बिहार की राजनीति में इस दौरे के बाद से कयासों का बाजार गर्म है और हर किसी की नजर अब पटना में होने वाले अगले बड़े फैसले पर टिकी है।