पिपरा विधानसभा सीट: BJP मारेगी जीत की हैट्रिक या होगा बदलाव? जानें पूर्वी चंपारण की इस सीट का समीकरण
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार के पूर्वी चंपारण जिले में स्थित पिपरा विधानसभा क्षेत्र आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में काफी चर्चा का केंद्र बनने वाला है। यह सीट अपने अस्थिर चुनावी इतिहास और जटिल जातीय समीकरणों के कारण हर बार एक संघर्षपूर्ण मुकाबले की गारंटी देती है। पिपरा, पूर्वी चंपारण लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है और यह मेहसी, चकिया (पिपरा) और टेकटारिया प्रखंडों को समाहित करता है।
पिपरा सीट का गठन 1957 में हुआ था। शुरुआत में इस सीट पर कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) का जबरदस्त दबदबा रहा। कांग्रेस ने यहाँ पाँच बार जीत दर्ज की, जबकि सीपीआई को तीन बार सफलता मिली।
1990 का दशक: समय के साथ दोनों पार्टियों की पकड़ कमजोर हुई और 1990 और 1995 में जनता दल ने जीत हासिल की।
2000 के बाद: 2000 में राजद ने सीट पर कब्जा जमाया। 2005 के विधानसभा चुनावों में दो बार भाजपा ने जीत दर्ज की। 2010 में जदयू ने इसे अपने नाम किया।
वर्तमान परिदृश्य: 2015 से भाजपा के श्यामबाबू प्रसाद यादव इस सीट के विधायक हैं, जिन्होंने 2020 में सीपीएम के राजमंगल प्रसाद को 8,177 वोटों के कम अंतर से हराया था। यह तथ्य दर्शाता है कि लगातार दो जीत के बावजूद, भाजपा की बढ़त हमेशा कम और अस्थिर रही है।
2020 के पिछले विधानसभा चुनाव में पिपरा में 3,39,434 पंजीकृत मतदाता थे, और मतदान प्रतिशत 59.08% रहा था।
ग्रामीण प्रभाव: पिपरा पूरी तरह से ग्रामीण क्षेत्र है, जहाँ लगभग 90.52% मतदाता गाँवों में रहते हैं। ये ग्रामीण मतदाता ही चुनाव का रुख तय करते हैं।
जातीय संरचना: क्षेत्र की जातीय संरचना जटिल है। यहाँ अनुसूचित जाति के मतदाता लगभग 15.89% और मुस्लिम मतदाता 12.10% हैं, जो राजद गठबंधन (महागठबंधन) के लिए संभावित मौके पैदा करते हैं। मतदाता सूची में संभावित बदलाव से आगामी चुनाव में राजनीतिक परिदृश्य और अधिक बदल सकता है।
नेपाल सीमा के पास होने के कारण यह क्षेत्र व्यापार और संपर्क के लिहाज से महत्वपूर्ण है। गंगा मैदानी क्षेत्र में आने वाली यह सीट गंडक और बुढ़ी गंडक नदियों से उपजाऊ भूमि पाती है, जिससे अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है।
फसलें और उद्योग: धान, मक्का, गन्ना, गेहूं और दालों के अलावा कुछ जगह पटसन की खेती भी होती है। ग्रामीण लघु उद्योग जैसे मोती के बटन का निर्माण और बकरी पालन स्थानीय आय के सहायक साधन हैं। नेपाल के रक्सौल और सुगौली से निकटता व्यापार को और मजबूत बनाती है।
चुनौतियां: क्षेत्र में बाढ़ नियंत्रण और सिंचाई जैसी मूलभूत चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं, जो हर चुनाव में चुनावी मुद्दा बनती हैं।
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जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव 2025 नजदीक आ रहे हैं, पिपरा एक संघर्षपूर्ण और निर्णायक सीट के रूप में उभर रही है। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए का दबदबा बरकरार है, लेकिन लगातार घटती बढ़त और जटिल मतदाता संरचना इसे किसी भी पार्टी के लिए चुनौतीपूर्ण बनाते हैं। राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों के चलते पिपरा से इस बार एक बड़ा चुनावी उलटफेर होने की उम्मीद की जा रही है।