कुचायकोट विधानसभा सीट: 2008 के बाद से JDU का अभेद्य गढ़! ब्राह्मण, यादव-मुस्लिम वोटर हैं गेमचेंजर
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में स्थित कुचायकोट विधानसभा सीट गोपालगंज जिले का एक महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र है। गोपालगंज लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली यह सीट, कुचायकोट और मांझा जैसे दो प्रमुख सामुदायिक विकास खंडों को समाहित करती है। यह सीट एक अनूठा राजनीतिक समीकरण प्रस्तुत करती है, जहाँ रोजगार और विकास जैसे बड़े मुद्दे स्थानीय जातीय पहचान के साथ मिलकर चुनाव की दिशा तय करते हैं।
कुचायकोट विधानसभा क्षेत्र की स्थापना 1951 में हुई थी, हालाँकि 1976 के परिसीमन में इसे समाप्त कर दिया गया था। 2008 के परिसीमन में जब इसे फिर से बहाल किया गया, तो इसका राजनीतिक मिजाज बदल चुका था।
पुनर्बहाली से पूर्व: 1952 से 1972 तक के छह चुनावों में यहाँ कांग्रेस का दबदबा रहा, जिसने चार बार जीत दर्ज की। नगीना राय यहाँ के एक ऐतिहासिक नेता रहे, जिन्होंने निर्दलीय, जनता पार्टी और कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर लगातार तीन बार (1967, 1969, 1972) जीत हासिल की और इंदिरा गांधी की सरकार में मंत्री भी बने।
2008 के बाद: सीट के दोबारा बहाल होने के बाद से यह लगातार जदयू के पास बनी हुई है। अमरेंद्र कुमार पांडे (अमरेन्द्र कुमार पांडेय) ने इस क्षेत्र में मजबूत पकड़ बनाई है। जदयू के टिकट पर उन्होंने 2010, 2015 और 2020 के चुनाव में लगातार तीन बार जीत हासिल करके सीट पर पार्टी के दबदबे को स्थापित किया है।
कुचायकोट की राजनीति में कुछ प्रमुख जातीय समूह निर्णायक भूमिका निभाते हैं। ब्राह्मण, यादव और मुस्लिम मतदाता यहाँ की राजनीति की दिशा तय करते हैं।
ब्राह्मणों का वर्चस्व: दिलचस्प बात यह है कि नगीना राय को छोड़कर, इस सीट के अब तक के सभी निर्वाचित विधायक ब्राह्मण समुदाय से रहे हैं। यह समुदाय यहाँ राजनीति में सबसे अधिक प्रभावी है। पारंपरिक रूप से भाजपा समर्थक माने जाने वाले इस वर्ग में अमरेंद्र कुमार पांडे के नेतृत्व में जदयू ने गहरी पैठ बना ली है।
राजद का आधार: दूसरी तरफ, यादव और मुस्लिम मतदाता क्षेत्र में राजद के परंपरागत समर्थन आधार माने जाते हैं, जिससे हर चुनाव में दिलचस्प त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है।
कुचायकोट की पहचान मुख्य रूप से कृषि प्रधान क्षेत्र के रूप में है। यहाँ के किसान धान, गेहूं और गन्ने जैसी प्रमुख फसलें उगाते हैं। गंडक नहर प्रणाली इस इलाके की कृषि का जीवनदायिनी स्रोत है।
पलायन की समस्या: जहाँ स्थानीय ग्रामीण मतदाता जातीय पहचान के साथ-साथ सड़क, सिंचाई और शिक्षा जैसे मूलभूत विकास के मुद्दों पर वोट करते हैं, वहीं क्षेत्र का सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार की कमी और इसके चलते होने वाला पलायन है।
विकास बनाम रोजगार: सड़कों, बिजली और मोबाइल नेटवर्क के विस्तार से गांवों में विकास की रफ्तार तेज हुई है, लेकिन रोजगार के स्थानीय अवसरों की कमी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, जिसे प्रवासी मजदूरों का बड़ा वर्ग चुनाव में प्रमुख मुद्दा मानता है।
यह भी पढ़ें: Mokama में ललन सिंह की दबंगई! वायरल हुआ VIDEO…तो RJD ने किया EC पर अटैक, अब हो गया तगड़ा एक्शन
आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में, जदयू को इस सीट पर अपनी जीत की हैट्रिक को बरकरार रखने के लिए स्थानीय विकास के मुद्दों और प्रभावी जातीय संतुलन दोनों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।