बरूराज विधानसभा सीट: 2020 में मिली भाजपा को पहली ऐतिहासिक जीत, क्या इस बार कायम रहेगी 'कमल' की पकड़?
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के अंतर्गत आने वाला बरूराज विधानसभा क्षेत्र उत्तर बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वैशाली लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाली यह सीट, भौगोलिक रूप से मोतीपुर सामुदायिक विकास खंड और पारू प्रखंड के कुछ हिस्सों को सम्मिलित करती है। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में, यह सीट एक बार फिर से सुर्खियों में है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सामने अपनी पहली ऐतिहासिक जीत की पकड़ को बनाए रखने की एक बड़ी चुनौती है।
1951 में बरूराज विधानसभा सीट के गठन के बाद से, यहाँ 17 बार चुनाव हो चुके हैं और सीट पर किसी एक दल का स्थाई प्रभुत्व नहीं रहा है।
प्रारंभिक दबदबा: शुरुआती दौर में कांग्रेस ने 5 बार जीत दर्ज की।
जातीय राजनीति का उदय: बाद के दशकों में राजद (3 बार), जनता दल (2 बार) और जदयू (2 बार) ने भी सफलता प्राप्त की। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और लोक दल जैसे दलों को भी एक-एक बार सफलता मिली।
2020 का बदलाव: 2015 में राजद के नंदकुमार राय ने भाजपा के अरुण कुमार सिंह को हराया था। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में, भाजपा उम्मीदवार अरुण कुमार सिंह ने इतिहास रचते हुए बरूराज सीट पर पहली बार कब्जा जमाया।
इस बार के चुनाव में भाजपा के सामने जहाँ अपनी सीट को बरकरार रखते हुए जीत की हैट्रिक की ओर कदम बढ़ाने की चुनौती है, वहीं महागठबंधन की ओर से विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) अपनी पहली जीत के लिए जोर लगाएगी।
बरूराज विधानसभा चुनाव 2025 के लिए मुख्य दलों ने अपने उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है:
भाजपा (BJP): पार्टी ने एक बार फिर वर्तमान विधायक अरुण कुमार सिंह पर भरोसा जताया है।
विकासशील इंसान पार्टी (VIP): महागठबंधन के घटक दल वीआईपी ने राकेश कुमार को मैदान में उतारा है, जो भाजपा को कड़ी चुनौती देंगे।
जन सुराज: इस बार जन सुराज पार्टी ने भी हीरालाल खारिया को प्रत्याशी बनाया है।
कुल मिलाकर, 12 उम्मीदवार इस बार चुनाव मैदान में हैं, जिससे मुकाबला त्रिकोणीय या बहुकोणीय होने की संभावना है।
बरूराज विधानसभा क्षेत्र में यादव और मुस्लिम मतदाता हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। ये दोनों वर्ग पारंपरिक रूप से राजद और उसके सहयोगियों की ओर झुकाव रखते हैं। इसके अलावा, राजपूत, नोनिया और वैश्य जाति के वोट भी चुनाव परिणाम को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
हालांकि, जानकार मानते हैं कि इस सीट पर भूमिहार जाति का वोट अंतिम नतीजे में निर्णायक साबित हो सकता है। सभी दलों की रणनीति इन प्रमुख जातीय समूहों को साधने पर केंद्रित होगी ताकि अपनी चुनावी संभावनाओं को मजबूत किया जा सके।
बरूराज ऐतिहासिक रूप से गंडक बेसिन का हिस्सा रहा है। यहाँ की उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी कृषि के लिए अत्यंत अनुकूल मानी जाती है। क्षेत्र में मुख्य रूप से गन्ना, धान और मक्का जैसी फसलें उगाई जाती हैं, जिससे कृषि ही यहाँ की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। हालांकि, हाल के वर्षों में पर्यावरणीय समस्याओं (जैसे अनियमित बाढ़ और सिंचाई की कमी) ने किसानों के सामने नई चुनौतियां खड़ी की हैं, जो चुनाव में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन सकती हैं।
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भाजपा के सामने इस बार अपनी पहली ऐतिहासिक जीत को दोहराने की चुनौती है, वहीं विपक्षी दल यादव-मुस्लिम समीकरण और कृषि संकट को भुनाने की पूरी कोशिश करेंगे। बरूराज सीट पर इस बार कड़ा और दिलचस्प मुकाबला देखने को मिल सकता है।