एकमा विधानसभा, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Ekma Assembly Constituency: बिहार की एकमा विधानसभा सीट (Ekma Assembly Seat) को हमेशा से राजनीतिक दृष्टि से एक अहम सीट के तौर पर देखा जाता रहा है। सारण जिले में स्थित और महाराजगंज लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा यह सामान्य श्रेणी की सीट, हर चुनाव में कड़ा और बेहद दिलचस्प मुकाबला प्रस्तुत करती है।
इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में भी सभी प्रमुख राजनीतिक दलों की नजरें यहाँ की जटिल जातीय संरचना और विकास से जुड़ी चुनौतियों पर टिकी हुई हैं।
एकमा सीट का गठन पहली बार 1951 में हुआ था, लेकिन जल्द ही इसे समाप्त कर दिया गया। इसकी वास्तविक राजनीतिक यात्रा 2008 के परिसीमन के बाद शुरू हुई, जब यह सीट फिर से अस्तित्व में आई:
JDU का प्रभुत्व: 2010 में हुए पहले चुनाव में मनोरंजन सिंह (धूमल सिंह) विधायक बने और 2015 में भी उन्होंने यह जीत दोहराई, जिससे इस सीट पर जनता दल (यूनाइटेड) का मजबूत प्रभाव स्थापित हुआ।
2020 का उलटफेर: 2020 के विधानसभा चुनाव में, JDU ने जब मनोरंजन सिंह का टिकट काटा, तो इसका सीधा फायदा राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को मिला। राजद के श्रीकांत यादव ने चुनाव जीतकर यह सीट अपने नाम की, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि यहाँ का जनादेश आसानी से बदल सकता है।
एकमा विधानसभा सीट पर ब्राह्मण, राजपूत और यादव समुदायों का प्रभाव निर्णायक माना जाता है।
राजपूत/ब्राह्मण: ये दोनों समुदाय पारंपरिक रूप से बीजेपी/जेडीयू गठबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण वोट बैंक रहे हैं। मनोरंजन सिंह की पिछली जीत में राजपूत समुदाय की बड़ी भूमिका थी।
यादव: यह समुदाय राजद का कोर वोट बैंक है, जिसने श्रीकांत यादव की जीत में अहम भूमिका निभाई।
इस त्रिकोणीय जातीय समीकरण के कारण ही मुकाबला हर बार बेहद कड़ा और अप्रत्याशित होता है, जहाँ उम्मीदवार की पकड़ से ज्यादा, जातीय गोलबंदी मायने रखती है।
एकमा क्षेत्र घाघरा और गंडक नदियों के उपजाऊ मैदान में स्थित है, जहाँ कृषि प्रमुख आर्थिक गतिविधि है।
आर्थिक चुनौती: यहाँ कुछ लघु स्तर की चावल मिलें और ईंट भट्टे ही मौजूद हैं। बड़े पैमाने पर औद्योगिक विकास न होने के कारण, रोजगार के सीमित अवसर और युवाओं का पलायन एक बड़ा चुनावी मुद्दा है।
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सांस्कृतिक पहचान: यहाँ के भोरोहोपुर गांव में हर साल आयोजित होने वाला महावीरी झंडा मेला स्थानीय ग्रामीण संस्कृति और सामाजिक एकता का प्रमुख प्रतीक है।
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मद्देनजर, राजद के सामने अपनी सीट को बरकरार रखने की चुनौती होगी, जबकि एनडीए गठबंधन इसे वापस पाने के लिए पूरी ताकत लगाएगा। मतदाता इस बार किसे अपना जनप्रतिनिधि चुनते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा क्या जातीय समीकरण जीत का फैसला करेंगे या क्षेत्र के लोग अंततः विकास की नई राह चुनने के लिए वोट करेंगे।