बिहार विधानसभा चुनाव 2025, (फाइल फोटो)
Bihar Assembly Elections 2025: बिहार में विपक्षी महागठबंधन के भीतर सीटों के बंटवारे को लेकर शुरू हुई आपसी तकरार अब साझा चुनाव प्रचार अभियान (Joint Election Campaign) और संयुक्त घोषणा पत्र (Joint Common Manifesto) पर भी संकट के रूप में मंडरा रही है। कई विधानसभा सीटों पर ‘फ्रेंडली फाइट’ होने के कारण राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के बीच दूरी स्पष्ट रूप से बढ़ती जा रही है, जिसके चलते गठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़े हो गए हैं। महागठबंधन के नेताओं के बीच मतभेद इतना गहरा चुका है कि साझा घोषणा पत्र को अंतिम रूप देने की बातचीत भी आगे नहीं बढ़ पा रही है।
बिहार महागठबंधन में कुल 12 विधानसभा सीटों के बंटवारे को लेकर गंभीर विवाद है, जिसके कारण गठबंधन में तनाव बढ़ गया है। सबसे बड़ा टकराव राजद और कांग्रेस के बीच है, जो छह सीटों पर सीधी टक्कर में हैं। इसके अतिरिक्त, चार सीटों पर कांग्रेस और सीपीआईएम (CPIM) आमने-सामने हैं, जबकि दो सीटों पर राजद और विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के उम्मीदवार एक-दूसरे के ख़िलाफ़ खड़े हैं।
विवादित सीटों में बेल्दौर सीट भी शामिल है। यह सीट आधिकारिक तौर पर कांग्रेस के खाते में है और कांग्रेस ने यहां से मिथिलेश कुमार निषाद को अपना उम्मीदवार बनाया है। हालांकि, राजद ने यह सीट आईआईपी पार्टी को आवंटित कर दी है, जिससे यहां भी सहयोगी दलों के बीच टकराव की स्थिति बन गई है। गठबंधन के अन्य दल इस गतिरोध को जल्द से जल्द ख़त्म करने और एकजुट होकर चुनाव लड़ने के लिए मध्यस्थता करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर विवाद बढ़ता दिख रहा है।
सीट बंटवारे पर सहमति न बनने के बावजूद, सहयोगी दलों ने आधिकारिक रूप से तय संख्या से ज्यादा उम्मीदवार मैदान में उतार दिए हैं। राजद ने जहां 143 उम्मीदवारों की सूची जारी की है, वहीं कांग्रेस ने 61 उम्मीदवार घोषित किए हैं। हालांकि, छोटे सहयोगी दलों ने अधिक उम्मीदवार उतारकर गठबंधन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। वीआईपी को बंटवारे में कुल नौ सीटें मिली थीं, लेकिन उसने 15 उम्मीदवारों के नाम जारी किए। इसी प्रकार, सीपीआई को छह सीटें मिली थीं, लेकिन उसने नौ उम्मीदवारों को मैदान में उतार दिया,और सीपीएम को चार सीटें मिली थीं, लेकिन उसने छह उम्मीदवार उतारे।
इस तरह, महागठबंधन में कुल उम्मीदवारों की संख्या 243 से बढ़कर 254 हो गई है। नेताओं द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि से पहले यह स्थिति साफ़ हो जाएगी, लेकिन अभी तक ज़मीनी स्तर पर कोई ठोस सुलह नहीं दिख रही है।
राजद और कांग्रेस के बीच साझा चुनाव प्रचार और संयुक्त घोषणा पत्र को लेकर मतभेद बढ़ गए हैं। कई सीटों पर ‘फ्रेंडली फाइट’ के कारण दोनों दलों के शीर्ष नेतृत्व के बीच दूरी बढ़ी है, जिससे समन्वय प्रभावित हुआ है। महागठबंधन की मेनिफेस्टो ड्राफ्ट कमेटी अब तक किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुँच पाई है। राजद और कांग्रेस दोनों के अपने-अपने चुनावी वादे और घोषणाएँ हैं, जो कई मायनों में एक जैसी हैं, लेकिन उनके साझा प्रारूप पर सहमति बनना अभी बाकी है। इस आंतरिक संघर्ष के कारण साझा चुनाव प्रचार शुरू होने पर गंभीर सवाल खड़ा हो गया है।
सूत्रों के मुताबिक, राजद के साथ इस गतिरोध को समाप्त करने के लिए कांग्रेस के बड़े नेताओं को सक्रिय किया जा रहा है। इसी क्रम में, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत का पटना दौरा संभावित है, जहाँ उनकी तेजस्वी यादव से मुलाकात हो सकती है। राजद से रिश्ते में आई खटास के बाद, बिहार कांग्रेस प्रभारी कृष्ण अल्लावारु को कांग्रेस ने पीछे हटा दिया है, जो सुलह की कोशिश का संकेत है।
महागठबंधन के इस आंतरिक संकट पर बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने तंज कसते हुए कहा कि लालू प्रसाद यादव ही एकमात्र नेता हैं और अन्य पार्टियाँ महत्वहीन हैं। उन्होंने एक नेता पर कटाक्ष करते हुए कहा कि कोई ‘SIR’ के दौरान घूम रहा था। वह ‘SIR’ नेता अब बिहार या देश में कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। बेचारा अपने हनीमून पीरियड में है।
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महागठबंधन के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह नामांकन वापसी की समय सीमा से पहले अपने आपसी मतभेदों को सुलझाकर मतदाताओं के सामने एक मज़बूत और एकजुट चेहरा पेश कर पाए।