कटिहार विधानसभा सीट, डिजाइन फोटो (नवभारत)
Katihar Assembly Constituency Profile: बिहार की राजनीति में कटिहार विधानसभा सीट एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में है। ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से यह सीट हमेशा से निर्णायक रही है। जानिए क्या कहते हैं इस सीट के सियासी आंकड़े।
कटिहार केवल एक राजनीतिक क्षेत्र नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का केंद्र भी है। यह इलाका कभी कोशी अंचल के सबसे बड़े जमींदारों में गिना जाता था, जहां चौधरी परिवार का प्रभाव था। खान बहादुर मोहम्मद बख्श के नाम से जुड़ा यह क्षेत्र महाभारत काल से लेकर मुस्लिम शासन और अंग्रेजी राज तक कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है।
कटिहार की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है। धान, जूट, मखाना, केले और मक्का जैसी फसलें यहां की पहचान हैं। कभी दो बड़े जूट मिल इस क्षेत्र की औद्योगिक ताकत थे, लेकिन अब वे बंद पड़े हैं। हालांकि, मखाना प्रोसेसिंग और धान प्रसंस्करण जैसे छोटे उद्योग धीरे-धीरे उभर रहे हैं। कपड़ा, दवा और साइकिल व्यापार भी स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति दे रहे हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार, कटिहार जिले की आबादी करीब 30.7 लाख है, लेकिन साक्षरता दर मात्र 52.24 फीसदी है। इतने बड़े क्षेत्र में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति अब भी संतोषजनक नहीं है। यह मुद्दे चुनावी बहस में प्रमुखता से शामिल हो सकते हैं, खासकर तब जब युवा वर्ग रोजगार और विकास की मांग कर रहा है।
कटिहार विधानसभा सीट पर 1957 में पहली बार चुनाव हुआ था। तब से लेकर अब तक कई दलों ने यहां अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन पिछले दो दशकों से भाजपा का वर्चस्व बना हुआ है। वर्तमान विधायक तार किशोर प्रसाद ने 2020 में जीत दर्ज की और उपमुख्यमंत्री पद तक पहुंचे। हालांकि, 2022 में महागठबंधन बनने के बाद उन्हें पद छोड़ना पड़ा, लेकिन उनका संगठनात्मक प्रभाव अब भी कायम है।
इस बार भी कटिहार में भाजपा बनाम महागठबंधन का सीधा मुकाबला देखने को मिल सकता है। भाजपा की ओर से तार किशोर प्रसाद को फिर से टिकट मिलने की संभावना है। वहीं, राजद, कांग्रेस और जदयू मिलकर इस सीट पर भाजपा को चुनौती देने की रणनीति बना रहे हैं। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभा सकती है, जिसे विपक्षी दल अपने पक्ष में मोड़ने की कोशिश करेंगे।
बेरोजगारी, बंद मिलों की बहाली, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और किसानों की समस्याएं इस बार चुनावी विमर्श के केंद्र में हैं। यदि विपक्ष इन मुद्दों को सही तरीके से उठाता है और मजबूत उम्मीदवार उतारता है, तो मुकाबला बेहद करीबी हो सकता है। भाजपा को अपने विकास कार्यों और संगठन की ताकत के सहारे जनता का भरोसा फिर से जीतना होगा।
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कटिहार विधानसभा सीट इस बार भी बिहार की सियासी दिशा तय करने वाली साबित हो सकती है। भाजपा जहां अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है, वहीं महागठबंधन इस सीट को जीतकर सीमांचल में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है। जनता का मूड किस ओर जाएगा, यह चुनावी नतीजों में साफ हो जाएगा।