अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (फोटो- सोशल मीडिया)
America Iran Conflict: अमेरिका ने पिछले महीने 21 जून को ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर हवाई हमला किया था। इसे लेकर अब नया खुलासा हुए है। अमेरिकी सेना का इरादा ईरान पर कम से कम एक हफ्ते तक बमबारी करने का इरादा था। लेकिन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आखिरी समय में इस योजना से इनकार कर दिया था।
अमेरिकी न्यूज एजेंसी एनबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिकी सेंट्रल कमांड (CENTCOM) के प्रमुख जनरल एरिक ने ईरान के छह परमाणु ठिकानों को बार-बार निशाना बनाने की विस्तृत योजना तैयार की थी। रिपोर्ट के अनुसार, इस योजना में कई हफ्तों तक चलने वाली सैन्य कार्रवाई शामिल थी, जो “ऑपरेशन मिडनाइट हैमर” से कहीं अधिक व्यापक और बड़े पैमाने की थी।
एनबीसी ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि,एनबीसी ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि, इस मिशन का मकसद ईरान के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह से बर्बाद करना था। इसमें ईरान के डिफेंस सिस्टम और बैलिस्टिक मिसाइल की क्षमताओं पर हवाई हमला करना थी। अमेरिका के इस हमले में बड़ी संख्या में आम नागरिकों की भी हताहत होने की आशंका थी। साथ ही अमेरिका को डर था कि इस हमले के जवाब में ईरान सीरिया और इराक में मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर हमला कर सकता है। इसके चलते ट्रंप ने इस मिशन के लिए इनकार कर दिया था।
डोनाल्ड ट्रंप का मानना था कि यह कदम एक दीर्घकालिक संघर्ष को जन्म दे सकता था, जिससे क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता पर खतरा मंडरा सकता था। उन्होंने अपनी विदेश नीति में अमेरिका को विदेशी विवादों से दूर रखने और ऐसे संघर्षों में गहराई से उलझने से बचने पर ज़ोर दिया। इस योजना से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि, “हम सभी विकल्पों पर गंभीरता से विचार करने को तैयार थे, लेकिन राष्ट्रपति की मंशा कुछ और थी।”
यह योजना जो बाइडेन प्रशासन के कार्यकाल के अंत में तैयार की गई थी। इसे अमेरिकी सेंट्रल कमांड के प्रमुख जनरल एरिक कुरिल्ला ने तैयार किया था। इस योजना के तहत कुरिल्ला ने ईरान पर “पूर्ण पैमाने पर” हमला करने की रूपरेखा बनाई थी।
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अमेरिका का उद्देश्य ईरान की परमाणु क्षमताओं को पूरी तरह नष्ट करना था। इसके लिए ईरान के छह परमाणु ठिकानों पर बार-बार हमले की योजना बनाई गई थी। हालांकि, इसका मतलब यह भी था कि ईरान की वायु रक्षा प्रणाली और बैलिस्टिक मिसाइल क्षमताओं पर व्यापक हमले किए जाते, जिससे बड़ी संख्या में ईरानी नागरिकों की जान जा सकती थी। इसके बाद इसमें बदलाव करते हुए छह की जगह तीन परमाणु ठिकानों पर हमला किया गया।