डोनाल्ड ट्रंप (फोटो- सोशल मीडिया)
Trump Administration on H-1B Visa: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा की फीस को एक हजार डॉलर से बढ़ाकर अब 100,000 डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) कर दिया है। यह फैसला भारत के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है क्योंकि अमेरिका में करीब 4 लाख भारतीय H-1B वीजा पर काम कर रहे हैं।
इस फैसले से बड़ी कंपनियों जैसेएप्पल, माइक्रोसॉफ्ट और टेस्ला की काम करने की क्षमता पर असर पड़ सकता है। ट्रंप सरकार को इस निर्णय पर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है, लेकिन उन्होंने इसका बचाव करते हुए 9 कारण बताए हैं। आइए जानते हैं वो कारण क्या हैं।
सरकार का कहना है कि 2003 में आईटी सेक्टर की 32% नौकरियां H-1B वीजा वालों के पास थीं, लेकिन 2025 तक ये संख्या 65% से ज्यादा हो सकती है। इससे अमेरिका की विदेशी कर्मचारियों पर निर्भरता बढ़ रही है।
रिपोर्ट्स के अनुसार कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग जैसे विषयों के अमेरिकी ग्रेजुएट्स की बेरोजगारी दर 6% से ज्यादा है, जो कि अन्य विषयों के मुकाबले काफी अधिक है। इसका कारण H-1B वीजा से आई विदेशी वर्कफोर्स को माना जा रहा है।
2000 से 2019 के बीच STEM क्षेत्रों में विदेशियों की संख्या दोगुनी हो गई, जबकि कुल रोजगार में केवल 44% की वृद्धि हुई। इससे अमेरिकी युवाओं को कम मौके मिले हैं।
सरकार का मानना है कि विदेशी वर्कर्स पर निर्भरता से टेक्नोलॉजी और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे अहम क्षेत्रों में राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
कुछ कंपनियां अमेरिकी कर्मचारियों को ही H-1B वीजा पर आए नए कर्मचारियों को ट्रेनिंग देने को मजबूर करती हैं, जिससे यह प्रोग्राम आउटसोर्सिंग का जरिया बन गया है।
डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि श्रम विभाग अब यह सुनिश्चित करेगा कि H-1B वीजा धारकों को बहुत कम वेतन न मिले। साथ ही, उच्च वेतन और कुशल लोगों को वीजा में प्राथमिकता दी जाएगी।
कुछ कंपनियों ने 2025 में 16,000 अमेरिकियों की नौकरी छीन ली और उनकी जगह H-1B वीजा धारकों को कम पैसे में रख लिया।
सरकार का कहना है कि H-1B वीजा के कारण अमेरिकी नागरिकों की नौकरी के मौके घट रहे हैं और युवा कम वेतन से परेशान हैं।
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ट्रंप सरकार का दावा है कि उन्होंने ज्यादातर नौकरियां अमेरिकी नागरिकों को दी हैं और अवैध अप्रवासियों को बाहर रखा है ताकि सरकारी ट्रेनिंग और संसाधन सिर्फ अमेरिकियों के लिए रहें।