विश्व ध्यान दिवस पर संयुक्त राष्ट्र में Sri Sri Ravi Shankar (सोर्स- सोशल मीडिया)
Meditation for Global Peace: दुनिया के सबसे बड़े कूटनीतिक मंच संयुक्त राष्ट्र में एक अनोखी शांति और गहन मौन का वातावरण देखने को मिला। आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक गुरुदेव श्रीश्री रवि शंकर के सानिध्य में यहां दूसरा विश्व ध्यान दिवस बड़े उत्साह के साथ मनाया गया।
इस कार्यक्रम में प्राचीन भारतीय विरासत और आधुनिक कूटनीति का एक अद्भुत संगम देखने को मिला जहां शांति की चर्चा हुई। वैश्विक राजदूतों और नेताओं ने माना कि वर्तमान के युद्ध और तनावपूर्ण समय में ध्यान ही मानसिक स्थिरता का एकमात्र सेतु है।
संबोधन के दौरान गुरुदेव ने एक मर्मस्पर्शी कथा के माध्यम से ध्यान के महत्व को समझाया। उन्होंने बताया कि विभिन्न दर्शन शास्त्र अक्सर मन को नए विचारों और तर्कों से भर देते हैं, लेकिन ध्यान वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति को विचारों के बोझ से मुक्त करती है।
गुरुदेव ने कहा कि जब हम अपने मन के कटोरे को खाली करते हैं, तभी हम उस साझा शांति के क्षेत्र में प्रवेश कर पाते हैं जहां से जीवन में स्पष्टता और करुणा का जन्म होता है। उनके मार्गदर्शन में आयोजित 20 मिनट के ध्यान सत्र ने दुनिया भर के प्रतिनिधियों को एक सूत्र में पिरो दिया।
गुरुदेव ने ध्यान को केवल आध्यात्मिक क्रिया न बताकर इसे एक व्यावहारिक शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने उल्लेख किया कि किस प्रकार लगभग 8,000 यूक्रेनी सैनिकों ने युद्ध के गहरे मानसिक आघात और तनाव से उबरने के लिए ध्यान का सहारा लिया है।
यह इस बात का प्रमाण है कि ध्यान कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी मानवीय चेतना को संतुलित रखने में सहायक है। इसके अलावा उन्होंने बताया कि दुनिया भर के 500 से अधिक विश्वविद्यालय अब छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने के लिए ध्यान को अपने पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बना रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पी हरीश ने इस आयोजन का स्वागत करते हुए कहा कि आज की आर्थिक और राजनीतिक अस्थिरता के दौर में ध्यान एक आवश्यक ह्यूमन स्किल बन गया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि एक शांत मन ही संतुलित और सही निर्णय लेने में सक्षम होता है। इस अवसर पर अंडोरा, मैक्सिको और नेपाल जैसे देशों के प्रतिनिधियों ने भी अपने अनुभव साझा किए और बताया कि कैसे उनके समाजों में ध्यान के जरिए सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं।
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कार्यक्रम के अंत में सभी वैश्विक एजेंसियों ने एक सुर में स्वीकार किया कि शांति केवल कागजों पर हस्ताक्षर करने से नहीं, बल्कि व्यक्तिगत शांति से आती है। गुरुदेव के संदेश ने यह स्पष्ट कर दिया कि जब तक व्यक्ति के भीतर शांति नहीं होगी, तब तक बाहरी दुनिया में स्थिरता लाना कठिन है।
विश्व ध्यान दिवस के इस सफल आयोजन ने यह साबित कर दिया कि भारतीय योग और ध्यान परंपरा आज पूरी मानवता के लिए एक वरदान साबित हो रही है, जो देशों के बीच की दूरियों को कम कर उन्हें मानवता के धरातल पर जोड़ती है।