पाकिस्तान पर हिंदू और सिख समुदायों की धार्मिक विरासत की उपेक्षा का आरोप (सोर्स- सोशल मीडिया)
Neglect of Religious Sites: एक प्रमुख अल्पसंख्यक अधिकार संगठन (वॉइस ऑफ पाकिस्तान माइनॉरिटी) ने पाकिस्तान सरकार पर एक गंभीर आरोप लगाया है। संगठन का कहना है कि सरकार जानबूझकर हिंदू और सिख समुदायों की धार्मिक विरासत की उपेक्षा कर रही है। आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, देश के अधिकांश मंदिरों और गुरुद्वारों की सुरक्षा और देखभाल में सरकार बुरी तरह विफल रही है। यह स्थिति पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदायों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है।
वॉइस ऑफ पाकिस्तान माइनॉरिटी (वीओपीएम) नामक एक प्रमुख अल्पसंख्यक अधिकार संगठन ने पाकिस्तान सरकार पर हिंदू और सिख समुदायों की धार्मिक विरासत को जानबूझकर नजरअंदाज करने का गंभीर आरोप लगाया है। संगठन का कहना है कि सरकार कई सालों से देश भर के मंदिरों और गुरुद्वारों की रक्षा करने की अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाने में असफल रही है।
वीओपीएम के अनुसार, पाकिस्तान में मौजूद हिंदू और सिख धर्मस्थलों में से लगभग 98 फीसदी या तो बंद पड़े हैं, उन पर गैरकानूनी कब्जा है या वे धीरे-धीरे नष्ट हो रहे हैं। संगठन ने जोर देकर कहा कि यह केवल साधारण लापरवाही नहीं है, बल्कि यह पूरे प्रशासनिक ढांचे की सोच और भेदभावपूर्ण रवैये को दर्शाता है।
ताजा जानकारी के अनुसार, पाकिस्तान की संसद की अल्पसंख्यक समिति में जो आंकड़े पेश किए गए हैं, वे स्थिति की गंभीरता को दर्शाते हैं। समिति को बताया गया कि कागजों पर दर्ज 1,285 हिन्दू मंदिरों और 532 गुरुद्वारों में से, यानी कुल 1,817 धर्मस्थलों में से, केवल 37 ही अभी सही तरीके से चल रहे हैं।
संगठन ने कहा कि यह स्थिति और भी दुखद इसलिए है, क्योंकि इसके पीछे एक व्यवस्थित भेदभाव दिखाई देता है। जहां धार्मिक ढांचे टूट रहे हैं, वहीं स्कूलों की किताबों में भी अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभावपूर्ण सामग्री मौजूद है। इसके अलावा, अल्पसंख्यक छात्रों को मुस्लिम छात्रों को मिलने वाले छात्रवृत्ति या कोटा लाभ के बराबर कोई लाभ नहीं मिलता है।
वीओपीएम ने इस बात पर जोर दिया कि पाकिस्तान दुनिया को करतारपुर कॉरिडोर जैसे स्थल दिखाकर गर्व महसूस करता है, लेकिन देशभर में सैकड़ों मंदिर और गुरुद्वारे खंडहर बने पड़े हैं, जिनकी कोई सुध नहीं ली जा रही। संगठन का मानना है कि एक अकेला, अच्छी तरह से रखा गया तीर्थस्थल उन सैकड़ों टूटी हुई इमारतों की सच्चाई को नहीं छिपा सकता, जहां कभी लोग पूजा करते थे।
कई जगह तो पौधों-झाड़ियों ने मंदिरों को पूरी तरह से ढक लिया है या उन पर निजी लोगों ने कब्जा कर लिया है। संगठन ने चेतावनी दी कि यह नुकसान सिर्फ अल्पसंख्यकों का नहीं है, बल्कि यह पाकिस्तान की विश्वसनीयता और उसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का भी नुकसान है।
वीओपीएम का कहना है कि किसी देश का मूल्यांकन इस बात से होता है कि वह अपने सबसे छोटे और कमजोर समुदायों के साथ कैसा व्यवहार करता है। आज पाकिस्तान के सामने यह स्पष्ट आंकड़ा है कि 1,817 धार्मिक स्थलों में से सिर्फ 37 ही चल रहे हैं।
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संगठन ने कहा कि ये इमारतें सिर्फ ढांचे नहीं हैं, बल्कि वे पाकिस्तान के उस बहुलवादी अतीत की अंतिम आवाजें हैं, जिसकी रक्षा करने का वादा देश ने किया था। हर बंद पड़ा मंदिर और हर टूटता गुरुद्वारा यही याद दिलाता है कि राज्य अपने संविधान में दिए गए समानता, न्याय और धार्मिक स्वतंत्रता के वादों को निभाने में असफल रहा है।