तालिबान को मान्यता देना चाहते थे बिल क्लिंटन (फोटो- सोशल मीडिया)
Bill Clinton Birthday: 24 दिसंबर 1999, अचानक के पूरी दुनिया की नजर भारत के आसमान पर टिक गई थी। ये वो दिन था जब भारत के आकाश में आतंकी साया पड़ा था। जिसने आने वाले सालों भारत को कभी न भरने वाले घाव दिया। 24 दिसंबर 1999 वो दिन था जब इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट IC-814, जो काठमांडू से दिल्ली आ रही थी, को बीच रास्ते में हाइजैक कर लिया गया।
सात दिनों तक यात्री अफगानिस्तान के कंधार एयरपोर्ट पर, तालिबान के कब्जे वाले क्षेत्र में, बंधक बने रहे। लोकिन ये सिर्फ एक हाईजैक नहीं थी, बल्कि इसके पीछे थी बड़ी कहानी आकार ले रही थी तेल, आतंक और अमेरिका की भू-राजनीति। जिसके सबसे एक अहम खिलाड़ी थे अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन।
अमेरिका उस समय सार्वजनिक रूप से तालिबान को चरमपंथी और आतंकवाद का समर्थक बताता था। लेकिन अफगानिस्तान की रणनीतिक स्थिति और ऊर्जा संसाधनों की संभावनाओं ने वाशिंगटन को एक अलग दिशा में सोचने पर मजबूर कर दिया था। मध्य एशिया के ऊर्जा-समृद्ध क्षेत्रों से तेल और गैस पाइपलाइन लाने का सपना अमेरिकी कंपनी यूनोकल (Unocal) जैसी कंपनियां देख रही थीं। अफगानिस्तान, विशेषकर तालिबान-नियंत्रित क्षेत्र, इस सपने को साकार करने के लिए एक महत्वपूर्ण गलियारा था।
IC-814 की पहरेदारी करते तालिबानी सैनिक (फोटो- सोशल मीडिया)
इसी रणनीतिक सोच के तहत, अमेरिकी प्रशासन तालिबान को औपचारिक मान्यता देने पर विचार कर रहा था। क्लिंटन प्रशासन इस संभावना को गंभीरता से देख रहा था, चाहे अमेरिकी विदेश विभाग का एक वर्ग इसे आतंकवाद को “इनाम” देना ही क्यों न मानता रहा हो।
हाईजैक की इस घटना ने तालिबान की असलियत एक बार फिर उजागर कर दी। भारत लगातार तालिबान से बातचीत करता रहा, लेकिन तालिबान का रवैया स्पष्ट रूप से अपहरणकर्ताओं के समर्थन में था। भारतीय एजेंसियों ने जब CIA से सैन्य मदद मांगी, तो अमेरिका ने साफ इनकार कर दिया। दरअसल, उस समय अमेरिकी प्रशासन अफगानिस्तान में अपने आर्थिक हितों के चलते तालिबान से टकराव नहीं चाहता था।
भारतीय प्रतिनिधिमंडल के साथ तालिबानी नेता (फोटो- सोशल मीडिया)
हालांकि, जैसे ही कंधार से हथियारबंद तालिबान लड़ाकों की तस्वीरें अमेरिकी मीडिया में छाईं, क्लिंटन प्रशासन पर घरेलू दबाव बढ़ गया। इससे अमेरिका की तेल-आधारित भू-राजनीतिक रणनीति को झटका लगा और तालिबान को मान्यता देने की योजना ठंडे बस्ते में डाल दी गई।
भारत द्वारा छोड़े गए आतंकी (फोटो- सोशल मीडिया)
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इस अपहरण संकट का सबसे बड़ा खामियाजा भारत को भुगतना पड़ा। यात्रियों की रिहाई के बदले भारत को मसूद अजहर, उमर शेख और अहमद ज़रगारी जैसे कुख्यात आतंकियों को छोड़ना पड़ा। यही मसूद अजहर बाद में जैश-ए-मोहम्मद का संस्थापक बना और 2001 के भारतीय संसद पर हमले सहित कई बड़े आतंकी हमलों का मास्टरमाइंड बना। उमर शेख, 2002 में पत्रकार डैनियल पर्ल की हत्या में शामिल पाया गया।