ईरान के सुप्रीम लीडरअली खामेनेई और बेंजामिन नेतन्याहू (फोटो- सोशल मीडिया)
तेहरान: इजराइल के साथ युद्ध खत्म होने बाद ईरान ने अब अपनी सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करने का फैसला किया है। इसके तहत ईरान ने बड़ा कदम उठाते हुए अपने कुछ सैन्य संगठनों में प्रमुखों की नियुक्ति नहीं करने का निर्णय लिया है। यह फैसला इजराइल द्वारा ईरानी कमांडरों की टारगेट किलिंग के बाद लिया गया है।
इजराइल ने युद्ध के दौरान ईरान के 10 कमांडरों को टारगेट बनाते हुए उन पर हमला करके उन्हें मार डाला था। इससे ईरान को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। यही कारण है कि ईरान सीजफायर के बाद से ही अपनी सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है। यह उसी दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है।
जानकारी के मुताबिक, ईरान अब अपने कमांडरों के नाम सार्वजनिक नहीं करेगा। हाल ही में ईरानी सरकार ने खतम अल-अनबिया के नए प्रमुख की घोषणा नहीं की है, हालांकि उस पद की जिम्मेदारी पहले ही किसी व्यक्ति को सौंप दी गई है। लेकिन उसका नाम सार्वजनिक नहीं किया गया। इज़राइल ने युद्ध की शुरुआत में खतम अल-अनबिया के पूर्व प्रमुख अली शादमानी की हत्या कर दी थी। शादमानी के बाद जो कमांडर नियुक्त हुआ था, उसे भी इज़राइल ने मार गिराया था।
ईरान के सैन्य ढांचे में यह एक प्रमुख ब्रिगेड है, जिसका नाम “पैगंबरों की मुहर” (खतम अल-अनबिया) है। यह एक ईरानी इंजीनियरिंग फर्म भी है, जिसे GHORB के नाम से जाना जाता है और इसका संचालन इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के तहत होता है। इसका प्रमुख काम मिसाइल निर्माण, हथियारों की निगरानी और सैन्य बुनियादी ढांचे को मजबूत करना है। 1980 से 1988 तक चले ईरान-इराक युद्ध के दौरान, खतम अल-अनबिया को देश के पुनर्निर्माण कार्यों में सहायता के लिए स्थापित किया गया था।
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ईरान से पहले हमास ने भी इसी प्रकार की तरकीब का उपयोग किया था। इसलिए लोग यह सवाल कर रहे हैं कि क्या ईरान ने भी हमास वाला फार्मूला अपनाया है। दरअसल, इजराइली अटैक से बचने के लिए हमास ने याह्या सिनवार की हत्या के बाद किसी भी कमांडर नियुक्त नहीं किया।