भारत-अमेरिका संबंधों का सबसे मजबूत स्तंभ होगी रक्षा साझेदारी (सोर्स-सोशल मीडिया)
Emerging Space Cooperation 2026: भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी अब एक ऐसे मोड़ पर पहुंच गई है, जहां तकनीक और सुरक्षा सबसे ऊपर हैं। पॉलिसी एक्सपर्ट ध्रुव जयशंकर के अनुसार, रक्षा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) दोनों देशों के रिश्तों के अगले चरण को आकार देंगे।
राजनीतिक और व्यापारिक चुनौतियों के बावजूद, प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच लगातार हो रहे संवाद ने एक मजबूत नींव रखी है। आने वाले समय में दोनों देशों का ध्यान केवल व्यापार पर नहीं, बल्कि अत्याधुनिक सैन्य तकनीक और ऊर्जा समझौतों पर केंद्रित रहेगा।
भारत-अमेरिका संबंधों का सबसे मजबूत स्तंभ रक्षा साझेदारी रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि अब समय केवल हथियारों की खरीद-फरोख्त का नहीं, बल्कि ‘सह-उत्पादन’ (Co-production) का है।
भारत अब पुरानी प्रणालियों के बजाय अत्याधुनिक क्षमताओं जैसे स्वायत्त पानी के नीचे की प्रणालियों (Underwater Autonomous Systems) और काउंटर-ड्रोन टेक्नोलॉजी में निवेश करना चाहता है। इसमें सरकार से ज्यादा निजी क्षेत्र (Private Sector) की भूमिका अहम होगी।
AI के क्षेत्र में दोनों देशों की प्राथमिकताएं थोड़ी अलग हैं, लेकिन सहयोग की अपार संभावनाएं हैं। भारत का मुख्य जोर AI के उन उपयोगों पर है जो आम लोगों के जीवन को बेहतर बना सकें और सार्वजनिक लाभ (Public Benefit) प्रदान करें।
इसके विपरीत, अमेरिका AI के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व और रणनीतिक प्रतिस्पर्धा पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और OpenAI जैसी कंपनियों का भारत में निवेश इस बात का प्रमाण है कि भारत का डिजिटल टैलेंट अमेरिका के लिए कितना महत्वपूर्ण है।
राजनीतिक स्तर पर भले ही कभी-कभी सुस्ती दिखे, लेकिन ऊर्जा (Energy) के क्षेत्र में व्यावहारिक समझौते लगातार नतीजे दे रहे हैं। स्वच्छ ऊर्जा से लेकर एलएनजी (LNG) आपूर्ति तक, दोनों देशों ने राजनीतिक तनाव के समय भी अपने हितों को प्राथमिकता दी है। जयशंकर के अनुसार, ऊर्जा सहयोग एक ऐसा क्षेत्र है जो 2026 में द्विपक्षीय संबंधों को और अधिक स्थिरता प्रदान करेगा।
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विशेषज्ञों का कहना है कि भारत-अमेरिका संबंधों में कुछ राजनीतिक ‘ब्रेक’ के बाद अब फिर से कैबिनेट स्तर के संपर्क शुरू हो गए हैं। ऐतिहासिक रूप से सबसे बड़ी चुनौती टेक्नोलॉजी ट्रांसफर (Tech Transfer) को लेकर रही है। अगर अमेरिका अत्याधुनिक तकनीक साझा करने में लचीलापन दिखाता है, तो यह साझेदारी सदी की सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक धुरी बन सकती है।