भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर की रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात (फोटो- सोशल मीडिया)
India Russia Relations: भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर इन दिनों रूस की यात्रा पर हैं और इस दौरान उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की है। जयशंकर का यह दौरा ऐसे समय पर हुआ है जब अमेरिका ने रूस से कच्चा तेल खरीदने की वजह से भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाने का ऐलान किया है। इसके बावजूद जयशंकर ने साफ कर दिया है कि भारत ट्रंप की टैरिफ नीतियों के दबाव में नहीं आएगा और भारत-रूस संबंधों में कोई दूरी नहीं डाली जा सकती।
जयशंकर ने अपनी यात्रा के दौरान रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव से भी मुलाकात की। इस बैठक में दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार को संतुलित और टिकाऊ तरीके से बढ़ाने पर जोर दिया। भारत और रूस ने टैरिफ संबंधी बाधाओं को तेजी से दूर करने की बात कही। जयशंकर ने कहा कि भारत और रूस के रिश्ते द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण साझेदारियों में से रहे हैं और आने वाले समय में यह साझेदारी और गहरी होगी।
Honored to call on President Putin at the Kremlin today. Conveyed the warm greetings of President Droupadi Murmu & Prime Minister @narendramodi.
Apprised him of my discussions with First DPM Denis Manturov & FM Sergey Lavrov. The preparations for the Annual Leaders Summit are… pic.twitter.com/jJuqynYrlX
— Dr. S. Jaishankar (@DrSJaishankar) August 21, 2025
जयशंकर ने मॉस्को में हुई संयुक्त प्रेस वार्ता में कहा कि भारत और रूस के रिश्ते सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह भू-राजनीतिक परिस्थितियों, जन भावनाओं और नेतृत्व स्तर पर आपसी संपर्क से मजबूत बने हुए हैं। उन्होंने पुतिन से मुलाकात में इस साल के अंत में उनकी भारत यात्रा की तैयारियों पर भी चर्चा की। जयशंकर ने स्पष्ट किया कि भारत अपने हितों और रणनीतिक साझेदारियों से समझौता नहीं करेगा।
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एक सवाल के जवाब में जयशंकर ने अमेरिका को सीधा जवाब देते हुए कहा कि भारत रूस का सबसे बड़ा तेल आयातक नहीं है। उन्होंने बताया कि चीन और यूरोपीय संघ रूस से कहीं ज्यादा तेल और LNG खरीदते हैं। जयशंकर ने यह भी याद दिलाया कि अमेरिका ने खुद बीते वर्षों में भारत को रूसी तेल खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया था ताकि वैश्विक ऊर्जा बाजार स्थिर रहे। उन्होंने कहा कि भारत अमेरिका से भी तेल खरीदता है और उसकी मात्रा लगातार बढ़ रही है, ऐसे में वॉशिंगटन के तर्कों का कोई आधार नहीं बनता।