अमेरिकी टैरिफ पर भारत रूख (फोटो- सोशल मीडिया)
Trump Tariffs Policy: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ट ट्रंप ने जब से अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत की है। उन्होंने टैरिफ को हथियार की तरह इस्तेमाल करने का फैसला किया है। उन्होंने दुनियाभर के करीब 150 से ज्यादा देशों पर ये कहते हुए टैरिफ लगाया कि इससे वो अमेरिका की दूसरे देशों पर निर्भरता खत्म करना चाहते हैं।
हालांकि, मैक्सिको और ब्राजील जैसे कुछ देश हैं जिन्होंने ट्रंप के फैसले पर करारा जवाब दिया है। लेकिन चीन ने इस मामले में बाकी देशों से दो कदम आगे निकाल गया और उन्होंने न सिर्फ ट्रंप को अपनी शर्तों के आगे झुकने पर मजबूर किया। साथ ही टैरिफ में भी रियायत प्राप्त की।
अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ को लेकर तनातनी 2018 से चल रही है। अमेरिका ने चीन पर आरोप लगाया कि वह बौद्धिक संपदा की चोरी करता है और व्यापार में अनुचित लाभ उठाता है। इसके बाद ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में चीन से आयात होने वाले अरबों डॉलर के सामान पर 10% से 25% तक टैरिफ लगाए। इसके जवाब में चीन सोया, स्टील, टेक्नोलॉजी प्रोडक्ट्स पर टैरिफ लगाया। हालांकि, 2019 में जो बाइडेन का राष्ट्रपति बनने के बाद दोनों देशों के रिश्ते में सुधार हुआ। लेकिन जैसे ही 2024 में ट्रंप दोबारा राष्ट्रपति बने हालात बिगड़ने लगे।
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ट्रंप ने राष्ट्रपति बनते ही चीन पर 34% से बढ़ाकर 125% तक टैरिफ लगाए गए। इसके जवाब में चीन ने भी अमेरिका पर 125% का टैरिफ लगाया। इसके अलावा चीन ने ऐसे रणनीतिक कदम उठाए कि अमेरिका को आखिरकार कई टैरिफ में ढील देनी पड़ी।
चीन ने अमेरिकी कृषि उत्पादों, खासकर सोयाबीन, मक्का और सूअर के मांस पर भारी टैरिफ लगा दिए। इससे अमेरिका के फार्मिंग सेक्टर में भारी विरोध हुआ और राजनीतिक दबाव बढ़ा। इसके अलावा चीन ने वैक्लिपिक बाजारों पर भी ध्यान केंद्रित किया। चीन ने ब्राजील, रूस, और दक्षिण एशियाई देशों की ओर अपना आयात मोड़ना शुरू कर दिया, जिससे अमेरिका को अपना मार्केट शेयर खोना पड़ा।
चीन की सरकार ने इसके बाद Apple, Tesla, और GM जैसी अमेरिकी कंपनियों को चीन में काम करने में बाधाएं आने लगीं, जिससे अमेरिका को अपने कॉर्पोरेट लॉबी से दबाव झेलना पड़ा। साथ ही रेयर अर्थ मिनरल्स के निर्यात पर पूरी तरह से रोक लगा दिया। जिसके चलते डोनाल्ड ट्रंप को हारकर चीन पर लगाए 125 प्रतिशत टैरिफ को घटाकर 30 प्रतिशत करना पड़ा। साथ ही चीन को टैरिफ से 90 दिन तक छूट भी दी।
भारत की स्थिति कुछ मामलों में भिन्न है, लेकिन कुछ रणनीतियाँ अपनाकर समाधान निकाला जा सकता है। आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देकर भारत को अमेरिकी उत्पादों पर निर्भरता कम करनी होगी। इस दिशा में ‘मेक इन इंडिया’ और ‘PLI स्कीम’ जैसी पहलें सहायक हो सकती हैं, हालांकि इनमें समय लग सकता है। इसलिए, भारत को चीन की तरह अमेरिका के अतिरिक्त अन्य वैकल्पिक साझेदारों की भी तलाश करनी होगी।
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इसके अलावा भारत टैरिफ का इस्तेमाल केवल जवाबी कदम के रूप में करे, ताकि यह विश्व व्यापार संगठन (WTO) नियमों के अंतर्गत रहे। साथ ही चीन की तरह भारत को भी तकनीकी और विनिर्माण क्षेत्र में अपनी क्षमताएं बढ़ानी होंगी ताकि विदेशी कंपनियां भारत पर निर्भर रहें।
इसके अलावा सबसे जरूरी चीज भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थिति मजबूती से रखनी होगी और अमेरिकी लॉबियों को प्रभावित करने के लिए रणनीतिक साझेदारी बनानी होगी। चीन ने अपनी आर्थिक ताकत, बाजार की क्षमता और रणनीति से अमेरिका को टैरिफ नीति में पीछे हटने पर मजबूर किया। भारत अगर दीर्घकालिक रणनीति के साथ आगे बढ़े, तो वह भी वैश्विक टैरिफ राजनीति में मजबूत भूमिका निभा सकता है।