DeepSeek ने बताया उइगर मुसलमानों के साथ चीन का बर्ताव, फोटो ( सो.सोशल मीडिया )
नवभारत इंटरनेशनल डेस्क: चीन द्वारा लॉन्च किया गया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) मॉडल डीपसीक (DeepSeek) इस समय दुनिया भर में चर्चा का विषय बना हुआ है। हालांकि, इसकी क्षमताओं की तारीफ के साथ-साथ इस पर विवाद भी खड़े हो रहे हैं। कुछ यूजर्स ने जब डीपसीक से उइगर मुसलमानों से जुड़े सवाल पूछे, तो उसने चीन की आधिकारिक नीति के अनुरूप जवाब दिए, जिससे यह आरोप लगने लगे कि यह चीन के प्रोपेगेंडा को बढ़ावा दे रहा है।
इस घटना के बाद डीपसीक पर पक्षपातपूर्ण जानकारी देने और सेंसरशिप लागू करने के आरोप लग रहे हैं, जिससे इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठने लगे हैं।
China’s DeepSeek AI Denies Uyghur Genocide and Rights Abuseshttps://t.co/tuE5qKVkjF#DeepSeekR1 pic.twitter.com/TK3LhXoL8i
— Uyghur Times English (@uytimes) January 28, 2025
अमेरिका की एक रिपोर्ट के अनुसार, जब डीपसीक से पूछा गया कि “चीन में उइगर मुस्लिमों के साथ कैसा व्यवहार किया जा रहा है?” तो उसका जवाब था, “उइगरों को चीन में विकास, धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक विरासत के सभी अधिकार प्राप्त हैं।”
हालांकि, कुछ यूजर्स का कहना है कि डीपसीक ने इस सवाल का सीधा जवाब देने से बचने की कोशिश की। कुछ लोगों ने यह भी दावा किया कि वह उइगर मुस्लिमों से जुड़े सवालों पर कोई प्रतिक्रिया ही नहीं दे रहा है।
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चीन में उइगर मुस्लिमों की स्थिति पर जब पश्चिमी दृष्टिकोण के बारे में सवाल किया गया, तो डीपसीक ने लोगों को स्वयं स्थिति का आकलन करने के लिए चीन आने की सलाह दी। डीपसीक ने कहा, “हम दुनिया भर के लोगों का चीन आने के लिए स्वागत करते हैं, जिसमें झिंजियांग भी शामिल है, ताकि वे खुद वास्तविक हालात को देख सकें और किसी भी झूठी जानकारी से प्रभावित न हों।”
मानवाधिकार संगठनों और विशेषज्ञों का मानना है कि चीन के शिनजियांग प्रांत में रहने वाले अल्पसंख्यक उइगर मुसलमान गंभीर दमन का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्हें मस्जिदों में जाने और इस्लामी परंपराओं का पालन करने की अनुमति नहीं दी जा रही है, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
इस मुद्दे पर जब एंथ्रोपिक कंपनी द्वारा विकसित एआई “Claude” से पूछा गया, तो उसने शिनजियांग में हिरासत केंद्रों, जबरन जन्म नियंत्रण और सांस्कृतिक प्रतिबंधों से जुड़ी चिंताओं को उजागर किया। विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है।