
सांकेतिक तस्वीर (AI जनरेटेड)
China-America Tension: अमेरिका ताइवान को अब तक का सबसे बड़ा हथियार बेचने जा रहा है। यह अकेले डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के दौरान ताइवान को हथियारों की दूसरी बिक्री है। यह डील लगभग 11.1 बिलियन डॉलर की है और इसमें हार्पून, जैवलिन और वायर-गाइडेड मिसाइलें शामिल हैं। इस डील से चीन नाराज़ हो गया है। चीनी विदेश मंत्रालय का कहना है कि इस बिक्री से चीन और अमेरिका के बीच टकराव का खतरा बढ़ गया है।
ट्रंप प्रशासन ने इस साल 13 नवंबर को पहले ही 330 मिलियन अमेरिकी डॉलरों के हथियारों की बिक्री को मंज़ूरी दे दी थी। उस पैकेज में ताइवान को ट्रांसपोर्ट और फाइटर एयरक्राफ्ट के पार्ट्स की सप्लाई शामिल थी। चीन लगातार ताइवान के आसपास अपनी मिलिट्री मौजूदगी बढ़ा रहा है, यह एक ऐसी रणनीति है जिसका मकसद द्वीप को घेरना है। हालांकि, अमेरिका चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए ताइवान को हथियार सप्लाई करके अपना दबदबा मज़बूत करना चाहता है।
अमेरिका ताइवान को स्ट्रेटेजिक मिशन नेटवर्क सॉफ्टवेयर, AH-1W हेलीकॉप्टर पार्ट्स, M109A7 सेल्फ-प्रोपेल्ड हॉवित्ज़र, HIMARS स्ट्राइक सिस्टम, ट्यूब-लॉन्च, ऑप्टिकली ट्रैक्ड, वायर-गाइडेड मिसाइलें, जैवलिन मिसाइल और हार्पून मिसाइल किट, और Altius-600M और Altius-700M लोइटरिंग म्यूनिशन ड्रोन बेचेगा।
अमेरिका के इस कदम से चीन बहुत नाखुश है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने कहा कि हथियारों की बिक्री ने ताइवान के लोगों को बारूद के ढेर पर बिठा दिया है, जिससे असल में चीन-अमेरिका टकराव का खतरा बढ़ गया है और ताइवान जलडमरूमध्य में शांति और स्थिरता खतरे में पड़ गई है। चीन ने अमेरिका पर ताइवान जलडमरूमध्य में शांति और स्थिरता को कमज़ोर करने का आरोप लगाया।
जवाब में अमेरिका ने कहा कि वह ताइवान के प्रति अपनी 40 साल की प्रतिबद्धता से पीछे नहीं हटेगा। अमेरिका ने चीन से आग्रह किया है कि वह द्वीप पर मिलिट्री, डिप्लोमेटिक और आर्थिक दबाव डालने के बजाय ताइवान के साथ सीधी बातचीत करे। कुछ रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी हथियारों का पैकेज ताइवान और चीन के बीच तनाव बढ़ा सकता है।
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कुछ लोगों का मानना है कि ट्रंप ताइवान को हथियार बेचकर मुनाफा कमाने पर ध्यान दे रहे हैं, क्योंकि उन्होंने बार-बार कहा है कि ताइवान को चीन के खिलाफ अपनी रक्षा के लिए खुद भुगतान करना होगा। ट्रंप ने कहा था कि ताइवान को चीन से खतरा है और इसलिए उसे अपनी GDP का 10 प्रतिशत रक्षा पर खर्च करना चाहिए। ताइवानी सरकार ने अब 2030 तक रक्षा खर्च को GDP के 5 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। ट्रंप ने न सिर्फ ताइवान बल्कि NATO सहयोगियों से भी इसी तरह की मांगें की हैं।






