कैंसर से पीड़ित बच्चों की जान बचाने में आर्थिक स्थिति बड़ी बाधा (सोर्स- सोशल मीडिया)
Global Health Care Inequality: दुनिया भर में कैंसर से जूझ रहे बच्चों के लिए उनकी बीमारी से ज्यादा उनके देश की आर्थिक स्थिति मायने रख रही है। एक ताजा रिसर्च के अनुसार, अमीर देशों में जहां कैंसर पीड़ित 80 फीसदी बच्चे ठीक हो जाते हैं, वहीं गरीब देशों में यह आंकड़ा बेहद डरावना है। संसाधनों और इलाज की कमी के कारण हर साल करीब 75 हजार बच्चे दम तोड़ देते हैं। यह आंकड़ा वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली में मौजूद गहरी असमानता को उजागर करता है।
वैश्विक आंकड़े बताते हैं कि 15 साल से कम उम्र के बच्चों में कैंसर से बचने की औसत दर केवल 37 फीसदी है। उच्च आय वाले देशों और कम आय वाले देशों के बीच यह अंतर तीन गुना तक बढ़ जाता है।
इसका अर्थ यह है कि एक ही उम्र और एक ही प्रकार की बीमारी होने के बावजूद, केवल जगह बदलने से बच्चे के बचने की संभावना पूरी तरह बदल जाती है। यह फर्क केवल दवाओं या तकनीक की कमी का नहीं है, बल्कि समय पर पहचान और स्वास्थ्य ढांचे की उपलब्धता का है।
रिसर्च के अनुसार, ल्यूकेमिया जैसे गंभीर कैंसर के मामलों में यह खाई और भी गहरी हो जाती है। उदाहरण के तौर पर केन्या जैसे देशों में कैंसर का पता चलने के तीन साल बाद केवल 30 फीसदी बच्चे जीवित रह पाते हैं।
इसके ठीक विपरीत, प्यूर्टो रिको जैसे क्षेत्रों में यह दर 90 फीसदी तक पहुंच जाती है। इसी तरह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के ट्यूमर के मामलों में भी अमीर देशों की सफलता दर गरीब देशों की तुलना में कहीं अधिक है। ये आंकड़े साबित करते हैं कि विकासशील देशों में स्वास्थ्य सेवाएं अब भी बुनियादी चुनौतियों से जूझ रही हैं।
रिसर्च में एक विरोधाभास भी सामने आया है कि बचपन के कैंसर के सबसे ज्यादा मामले यूरोप और उत्तरी अमेरिका जैसे विकसित क्षेत्रों में दर्ज किए जाते हैं। हालांकि, जब बात मृत्यु दर की आती है, तो अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमेरिका जैसे महाद्वीप सबसे आगे हैं।
23 देशों के हजारों बच्चों के डेटा का विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट होता है कि यह केवल एक स्वास्थ्य समस्या नहीं है। यह अब विकास, सरकारी नीतियों और सामाजिक न्याय से जुड़ा एक गंभीर मानवीय और वैश्विक संकट बन चुका है।
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विशेषज्ञों का मानना है कि कम आय वाले देशों में कैंसर की पहचान अक्सर उस वक्त होती है जब बीमारी अंतिम चरणों में पहुंच चुकी होती है। इसके अलावा, इलाज के साधन सीमित होने और चिकित्सा की गुणवत्ता कमजोर होने के कारण बच्चे पूरी तरह ठीक नहीं हो पाते।
कई मामलों में परिवार आर्थिक तंगी के कारण इलाज को बीच में ही छोड़ देते हैं, जिससे जान बचाने की रही-सही उम्मीद भी खत्म हो जाती है। इस वैश्विक संकट को दूर करने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश और दवाओं की सुलभता बढ़ाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।