हुमायूं कबीर, फोटो- नवभारत डिजाइन
West Bengal Politics: पश्चिम बंगाल में सत्ता की जंग अब त्रिकोणीय होने की कगार पर है। एक तरफ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपनी सत्ता बचाने की चुनौती का सामना कर रही हैं, वहीं दूसरी तरफ भाजपा पहली बार बंगाल फतह का सपना देख रही है। इन सबके बीच, ममता के बागी विधायक हुमायूं कबीर ने मुस्लिम नेतृत्व वाली नई तिकड़ी बनाकर राज्य की राजनीति में भूचाल ला दिया है।
तीन मुस्लिम नेताओं का साथ आना और टीएमसी की चुनौती पश्चिम बंगाल की राजनीति में मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका निर्णायक रही है, जिनकी आबादी करीब 30 प्रतिशत है। यह बड़ा वर्ग पारंपरिक रूप से तृणमूल कांग्रेस (TMC) का अभेद्य किला माना जाता रहा है। हालांकि, अब इस किले की दीवारें दरकती नजर आ रही हैं। बागी विधायक हुमायूं कबीर ने एआईएमआईएम (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और आईएसएफ (ISF) के प्रमुख पीरजादा अब्बास सिद्दीकी से संपर्क साधा है। हांलाकि अभी तक इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं सामने आई है।
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, यदि ये तीन प्रमुख मुस्लिम चेहरे एक मंच पर आते हैं, तो वे राज्य की कई विधानसभा सीटों पर चुनावी समीकरणों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। बिहार में ओवैसी की पार्टी की हालिया सफलता और पिछले बंगाल चुनाव में आईएसएफ द्वारा एक सीट पर जीत दर्ज करना यह साबित करता है कि मुस्लिम मतदाताओं ने अब इन नए विकल्पों को स्वीकार करना शुरू कर दिया है।
इस संभावित नए मोर्चे से सबसे बड़ी चिंता ममता बनर्जी के खेमे में है। हुमायूं कबीर जिस तरह से ध्रुवीकरण का माहौल बना रहे हैं, यदि वे मुस्लिम मतों के एक छोटे हिस्से को भी टीएमसी से अलग करने में सफल रहते हैं, तो इसका सीधा खामियाजा मुख्यमंत्री को भुगतना पड़ सकता है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि मुस्लिम मतों का यह बिखराव भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए वरदान साबित हो सकता है। वर्तमान में बंगाल में भाजपा और टीएमसी के बीच सीधा मुकाबला है, क्योंकि माकपा (CPIM) और कांग्रेस जैसे दल अब हाशिए पर चले गए हैं। ऐसी स्थिति में वोटों का कोई भी बंटवारा भाजपा की राह को आसान बना सकता है।
वहीं दूसरी ओर, भाजपा ने भी अपनी रणनीति में बड़े बदलाव किए हैं। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पार्टी ने राज्य में अपने कैडर का विस्तार किया है। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व अब और अधिक आक्रामक रुख अपनाते हुए ममता बनर्जी की घेराबंदी कर रहा है। पिछली हार से सबक लेते हुए, पार्टी ने इस बार अपना पूरा ध्यान ‘बूथ प्रबंधन’ (Booth Management) पर केंद्रित किया है, जो पिछले चुनावों में उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बनकर उभरा था।
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फिलहाल एक क्षेत्र विशेष तक सीमित नजर आते हैं, लेकिन असदुद्दीन ओवैसी और सिद्दीकी का साथ उन्हें राज्यव्यापी पहचान दिला सकता है। यह तिकड़ी खुद को बंगाल में एक ‘तीसरी ताकत’ के रूप में पेश करने की कोशिश में है, जो न केवल टीएमसी के लिए सिरदर्द बनेगी, बल्कि 2026 के विधानसभा चुनाव के परिणाम को भी अप्रत्याशित बना सकती है।