RSS संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के चित्र का अनावरण करते यूपी विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना (फोटो- सोशल मीडिया)
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक ऐतिहासिक क्षण तब दर्ज हुआ जब राज्य विधान सभा के पुस्तकालय कक्ष में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का चित्र विधिवत रूप से स्थापित किया गया। इस मौके पर विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने चित्र का अनावरण करते हुए उन्हें राष्ट्रसेवा का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि डॉ. हेडगेवार ने अपना संपूर्ण जीवन देश और समाज के हित में समर्पित किया। यह चित्र सिर्फ एक श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि उनकी विचारधारा को नई पीढ़ी से जोड़ने का माध्यम है।
चित्र स्थापना कार्यक्रम के दौरान कई जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की उपस्थिति ने इसे और भी विशेष बना दिया। कार्यक्रम में विधानसभा के प्रमुख सचिव और अन्य गणमान्य अतिथि शामिल हुए। आयोजन को केवल एक राजनीतिक प्रतीक नहीं, बल्कि वैचारिक सम्मान के रूप में देखा गया। यह प्रतीक अब विधान भवन के पुस्तकालय कक्ष की शोभा बढ़ाएगा और वहां आने वाले जनप्रतिनिधियों को प्रेरणा देने का कार्य करेगा।
VIDEO | Lucknow: Uttar Pradesh Vidhan Sabha Speaker Satish Mahana unveiled the statue of RSS founder Dr. Keshav Baliram Hedgewar at the State Legislative Assembly. He said, “Dr. Keshav Baliram Hedgewar’s photo has been placed in the Assembly in his memory. He dedicated his life… pic.twitter.com/1BbsNmlyWh
— Press Trust of India (@PTI_News) June 5, 2025
डॉ. हेडगेवार को दी गई वैचारिक श्रद्धांजलि
विधानसभा अध्यक्ष ने अपने संबोधन में कहा कि डॉ. हेडगेवार केवल एक संगठन के संस्थापक नहीं, बल्कि एक ऐसे विचारधारा के वाहक थे जिन्होंने राष्ट्रसेवा को जीवन का लक्ष्य बनाया। उन्होंने युवाओं को संगठित कर देशभक्ति और सेवा की भावना को जागृत किया। उनका जीवन, सिद्धांत और तपस्या हर जनप्रतिनिधि के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।
बंगाल BJP का बड़ा दावा, कहा- PM मोदी ने सिंदूर के पौधे से दुनिया को सांस्कृतिक संदेश दिया
संविधानिक स्थल पर वैचारिक उपस्थिति
उत्तर प्रदेश विधान सभा में पहली बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक का चित्र स्थापित किया गया है। यह कदम राज्य की वैचारिक विविधता को भी दर्शाता है। पुस्तकालय कक्ष, जहां विचारों की गूंज होती है, अब उस विचारधारा से भी जुड़ गया है जिसने देश में संगठन और सेवा को एक नई पहचान दी। यह बदलाव बताता है कि अब इतिहास और विचारधारा को सार्वजनिक संस्थानों में नया स्थान मिल रहा है।