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UP BJP President: उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को नया बॉस मिल चुका है। पंकज चौधरी ने प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल कर दिया है। कोई और नामांकन न होने की वजह से वह निर्विरोध अध्यक्ष भी बन चुके हैं। हालांकि पार्टी की तरफ से आधिकारिक ऐलान कल यानी 14 दिसंबर को किया जाएगा।
पंकज चौधरी को उत्तर प्रदेश अध्यक्ष बनाकर लगातार तीसरी बार प्रदेश में पार्टी की कमान ओबीसी नेता के हाथों में सौंप दी है। जबकि एक वक्त ऐसा था कि यूपी में भारतीय जनता पार्टी की बागडोर सदैव सवर्णों के हाथ में हुआ करती थी। इस बार चर्चा दलित चेहरे की भी थी लेकिन अंतोगत्वा जिम्मेदारी नहीं मिल सकी।
भारतीय जनता पार्टी की स्थापना से अब तक पंकज चौधरी को मिलाकर कुल 16 अध्यक्ष हुए हैं। जिनमें कलराज मिश्र के अलावा कोई ऐसा भी अध्यक्ष नहीं रहा जिसे यह जिम्मेदारी दो बार मिली हो। पहली बार 1980 से लेकर 1984 तक सवर्ण नेता माधो प्रसाद त्रिपाठी ने यूपी में पार्टी की कमान संभाली।
इसके बाद कल्याण सिंह को तौर पर यूपी बीजेपी को पहला ओबीसी प्रदेश अध्यक्ष मिला। कल्याण सिंह लोध जाति से आते थे। वह 1984 से 1990 तक इस पद पर रहे। इसके बाद अगले 12 सालों यानी 1991 से 2002 तक लगातार चार बार सवर्ण नेताओं को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई।
साल 1991 से 1997 तक कलराज मिश्र, 1997 से 2000 तक राजनाथ सिंह, 3 जनवरी 2000 से 17 अगस्त 2000 यानी तकरीबन सात महीने के लिए ओम प्रकाश सिंह प्रदेश अध्यक्ष रहे। इसके बाद अगस्त 2000 से जून 2002 तक कलराज मिश्र को एक बार फिर यूपी बीजेपी की कमान सौंपी गई।
भारतीय जनता पार्टी (सोर्स- सोशल मीडिया)
वर्ष 2004 में एक बार फिर विनय कटियार के रूप में पार्टी ने ओबीसी नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया। लेकिन 2 साल बाद यानी 2004 में यह जिम्मेदारी केशरी नाथ त्रिपाठी को सौंप दी गई। उसके बाद 2007 में डॉ. रमापति राम त्रिपाठी यूपी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बने। 2010 से 2012 के बीच सूर्य प्रताप शाही और 2012 से 2016 तक लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने यह जिम्मेदारी निभाई।
साल 2016 से 2017 तक ओबीसी नेता केशव प्रसाद मौर्य ने यूपी बीजेपी की कमान संभाली। लेकिन 2017 में उनके डिप्टी सीएम बनते ही यह जिम्मेदारी महेन्द्र नाथ पांडेय को सौंप दी गई। पांडेय के बाद 2019 से 2022 तक ओबीसी नेता स्वतंत्र देव सिंह, 2022 से 2025 तक भूपेन्द्र सिंह चौधरी और अब पंकज चौधरी के रूप में लगातार तीसरी बार ओबीसी नेता के हाथों में प्रदेश की कमान है।
इस बार जोर-शोर से चर्चा थी कि भारतीय जनता पार्टी किसी दलित नेता को यूपी में बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाएगा। विनोद सोनकर, विद्यासागर सोनकर, रामशंकर कठेरिया, बेबी रानी मौर्य और असीम अरुण का नाम भी निकलकर सामने आया था। लेकिन बीजेपी ने दलित को जिम्मेदारी न सौंपकर उनका इंतजार बढ़ा दिया है।
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दलित नेता को बीजेपी की कमान न मिलने के बाद यह चर्चा उठने लगी है कि आखिर ऐसा क्या है जिसके चलते भारतीय जनता पार्टी दलितों पर भरोसा नहीं कर पा रही है? पार्टी के सामने ऐसी क्या मजबूरी है। इसके पीछे एक वजह यह बताई जा रही है कि पार्टी के लिए ओबीसी दांव प्रदेश में काम कर रहा है। लेकिन फिर एक सवाल और उठता है कि जिसे आजमाया ही नहीं वह दांव नहीं काम करेगा ऐसा कैसे कहा जा सकता है?