किशोरी लाल शर्मा, राहुल गांधी, स्मृति ईरानी (फोटो- नवभारत डिजाइन)
अमेठीः देश की चुनावी राजनीति का यूपी महत्वपूर्ण प्रदेश है। दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर निकलता है। इसलिए चुनाव हो या न हो हमेशा राजनीतिक के केंद्र में उत्तर प्रदेश बना रहता है। लोकसभा चुनाव में जिन सीटों को सबसे हॉट माना गया उसमें से एक अमेठी भी है। इस सीट पर स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को 2019 के चुनाव में हराकर अपनी जबरदस्त सियासी उपस्थिति दिल्ली में दर्ज करवाई थी। वहीं 2024 के चुनाव में पासा पलट गया, कांग्रेस पार्टी के किशोरी लाल ने स्मृति ईरानी उगते सियासी सूरज को ग्रहण लगा दिया।
अमेठी में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद स्मृति ईरानी ने बड़े-बड़े वादे किए। अमेठी की जनता से दिल का रिश्ता बताते हुए उन्होंने एक घर भी खऱीदा था, लेकिन अब ऐसी चर्चाएं चौंक-चौराहों पर चल रही कि स्मृति ईरानी अपना घर बेंचने वाली हैं। 2024 की हार काफी कुछ बदल दिया है।
लोगों ने सांसद नहीं, दीदी को चुना है: स्मृति ईरानी
दैनिक भाष्कर की रिपोर्ट के मुताबिक स्मृति ईरानी अमेठी अंतिम बार 4 जून 2024 को चुनाव परिणाम के दिन दिखी थीं, इसके बाद उन्होंने अमेठी की तरफ झांका भी नहीं। जिले के गांव मवई में पूर्व सांसद का बड़ा सा घर सूना पड़ा है। स्मृति 2014 में पहली अमेठी में लोकसभा का चुनाव लड़ने आईं थी, लेकिन राहुल गांधी उन्हें हरा दिया था। हार के बाद भी स्मृति ने अमेठी को नहीं छोड़ा। 2019 के लोकसभा चुनाव में इसका असर दिखा और स्मृति ईरानी गांधी परिवार के गढ़ रहे अमेठी में राहुल गांधी को हराकर पहली बार सांसद चुनी गईं। बोलीं- ‘अमेठी को मैं अपना घर मानती हूं। लोगों ने सांसद नहीं, दीदी को चुना है।’
‘हार के बाद अमेठी की तरफ झांका भी नहीं’
अमेठी वाला घर अब वीरान पड़ा है। BJP वर्कर्स दीदी का इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि चुनाव हारने के बाद से वे कभी अमेठी नहीं आईं। लोग कह रहे हैं कि राहुल गांधी लोगों से नहीं मिलते थे, इसलिए हार गए। स्मृति ईरानी ने राहुल की हार से भी कुछ नहीं सीखा। दैनिक भाष्कर से बातचीत में स्मृति ईरानी के घर की देखभाल करने वाले ध्रुवराज ने बताया कि चुनाव के वक्त दीदी एक महीनें यहां रहीं, चुनाव परिणाम वाले दिन के बाद वह यहां नहीं आई हैं। उन्होंने घऱ में एक मंदिर है, उसमें पूजा पाठ के लिए पंडित जी आते हैं और साफ सफाई वाला घर की सफाई करने आता है। इसके अलावा कोई नहीं आता है।
‘अमेठी पूछ रही कब आओगी दीदी’
शीतला प्रसाद मेदन मवई गांव में रहते हैं। स्मृति ईरानी के लिए चुनाव प्रचार कर चुके हैं। उनकी बहू ग्राम प्रधान हैं। शीतला प्रसाद कहते हैं, ‘दीदी चुनाव भले हार गईं, लेकिन हमारे बूथ से तो जीती थीं। वे यहां आतीं, तो हमारी भी हिम्मत बनी रहती। उन्होंने न कभी फोन किया, न खुद आईं। लोग हमसे पूछते हैं। समझ नहीं आता उन्हें क्या जवाब दें। हम तो लोगों को लेकर दिल्ली नहीं जा सकते। मिलने तो उन्हें ही आना पड़ेगा।’
‘राहुल पुराने रिश्ते बचा नहीं पाए, स्मृति ईरानी तो बना ही नहीं पाईं’
अमेठी और सुल्तानपुर के राजनीतिक परिवार संबध रखने वाले उमाकांत का मानना है कि ‘राहुल गांधी को अमेठी की जनता ने इसलिए हराया क्योंकि वे पारिवारिक संबंध निभा नहीं पाए। स्मृति ईरानी को तो रिश्ते खुद बनाना था, लेकिन वे अमेठी से जुड़ नहीं पाईं। वे कार्यकर्ता और जनता दोनों से मेलजोल बना नहीं पाईं।’
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अमेठी छोड़ रहीं स्मृति ईरानी?
स्मृति ईरानी न केवल आम जनता से कटी हुई हैं, बल्कि भाजपा नेताओं से भी संपर्क कट गया है। चर्चा ऐसी है कि अब वह अमेठी के बजाय कोई दूसरी सुरक्षित सीट अपने लिए ढूढ़ रही हैं। भाजपा कार्यकर्ता नौगिरवा के रहने वाले महेंद्र सिंह कहते हैं, ‘लगता नहीं कि वे दोबारा यहां से चुनाव लड़ने का मन बना रही हैं या यहां की राजनीति में भविष्य देख रही हैं।’