
केशव प्रसाद मौर्य, फोटो- सोशल मीडिया
Magh Mela 2025 Preparations: संगम नगरी प्रयागराज में माघ मेले की तैयारियों को लेकर प्रशासनिक हलकों में उस समय खलबली मच गई, जब यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य औचक निरीक्षण पर पहुंचे। संगम तट पर अधूरे स्नान घाटों और बदइंतजामी को देखकर डिप्टी सीएम ने जिलाधिकारी मनीष कुमार वर्मा को सख्त लहजे में अपनी प्राथमिकताएं सुधारने की चेतावनी दी।
डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य सोमवार को संगम नगरी में माघ मेले की व्यवस्थाओं का जायजा लेने पहुंचे थे। जब वे संगम नोज पहुंचे, तो वहां का नजारा देखकर उनकी नाराजगी साफ झलकने लगी। करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र इस स्थान पर अब तक स्नान घाट पूरी तरह तैयार नहीं मिले थे। डिप्टी सीएम ने मौके पर मौजूद पुलिस और मेला अधिकारियों से तीखे सवाल-जवाब किए और जिलाधिकारी व मेला अधिकारी की अनुपस्थिति पर भी सवाल उठाए। इसी बीच आनन-फानन में डीएम मनीष कुमार वर्मा मौके पर पहुंचे, जहां उन्हें डिप्टी सीएम के कड़े रुख का सामना करना पड़ा।
निरीक्षण के बाद अपनी गाड़ी की ओर बढ़ते हुए केशव प्रसाद मौर्य ने डीएम मनीष वर्मा से दो टूक कहा, “सतुआ बाबा की रोटी के चक्कर में मत पड़ो।” उनकी यह टिप्पणी सुनते ही वहां मौजूद लोग अपनी हंसी नहीं रोक पाए, लेकिन यह संदेश काफी गंभीर था। दरअसल, पिछले बुधवार को डीएम का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें वे संतोष दास उर्फ सतुआ बाबा के शिविर में चूल्हे पर रोटी बनाते नजर आए थे। डिप्टी सीएम ने स्पष्ट किया कि किसी एक शिविर या संत पर विशेष ध्यान देने के बजाय, प्रशासन को उन लाखों कल्पवासियों और साधु-संतों की चिंता करनी चाहिए जिन्हें अब तक बिजली, पानी और जमीन जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं मिली हैं।
प्रयागराज डीएम मनीष कुमार वर्मा का माघ मेले में अनोखा अंदाज डीएम मनीष कुमार वर्मा ने संतो के कैंप में चूल्हे पर बनाई रोटी वीडियो में माघ मेला अधिकारी आईएएस ऋषि राज भी मौजूद है @DM_PRAYAGRAJ #MaghMela #PrayagrajMaghMela pic.twitter.com/gJ9IW0soEQ — Gaurav Kumar (@gaurav1307kumar) December 25, 2025
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डिप्टी सीएम ने जोर देकर कहा कि माघ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़ा है, इसलिए इसमें किसी भी प्रकार की लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने अधिकारियों को संकेत दिया कि ऐसी गतिविधियों से ज्यादा जरूरी जमीनी हकीकत को सुधारना है। यह मामला अब सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है, जिसे प्रशासनिक सख्ती के एक बड़े उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है।






