महाकुंभ के हादसों का इतिहास (फोटो- नवभारत डिजाइन)
प्रयागराजः उत्तर प्रदेश के संगमनगरी प्रयागराज में दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम को लेकर लोगों में काफी उत्साह है। रंग-बिरंगी लाइटों के साथ तंबुओ शहर अलौकिक अनुभव कराता है। इस अनुभव को महसूस करने के लिए कड़कड़ाती ठंढ में दुनिया के अलग-अलग कोने से लोग आ रहे हैं। महाकुंभ की छठा देख विदेशी मेहमान खिंचे चले आ रहे हैं। सरकारी अनुमान के मुताबिक इस बार 45 करोड़ लोग हिंदुत्व के मेले में शामिल होंगे।
13 जनवरी से 20 जनवरी तक सरकारी आंकड़े के मुताबिक 8.89 करोड़ लोगों ने संगम में आस्था की डुबकी लगाई है। जबकि अभी तक मुख्य स्नान पर्वों में से सिर्फ एक ही आया है। मकर संक्रांति गंगा या संगम में स्नान के उत्तम तिथि मानी जाती है। इसी दिन से स्नान पर्वों की शुरूआत होती है। वहीं मौनी अमावस्या महाकुंभ का सबसे बड़ा स्नान पर्व माना जाता है, जो 29 फरवरी को है, लेकिन बीते रोज हुए हादसे के बाद अब मौनी अमावस्या के दिन आने वाली भीड़ मन में डर पैदा कर रही है। यदि 29 फरवरी को कुछ हुआ तो संभालना मुश्किल हो जाएगा।
आग की लपटों ने डरा दिया था
बीते रोज जब महाकुंभ में शुरूआती आगजनी की खबर आई तो बड़ी जनहानि की आशंका हुई। जिस तरह से बड़ी-बड़ी आग की लपटें दिख रही थीं। इससे बड़ा नुकसान हो सकता था। हालांकि समय रहते आग पर काबू पा लिया गया। इसमें भले ही किसी प्रकार की जनहानि नहीं हुई, लेकिन आग की भयावह लपटों ने डरा दिया है। क्योंकि कुंभ का हादसों भरा इतिहास रहा है। जिसमें में हजारों लोगों की जानें गई हैं।
1994 के महाकुंभ में हादसा (फोटो- सोशल मीडिया)
नेहरू को देखने के लिए कुंभ में मची भगदड़ से हजारों लोगों की मौत
प्रयागराज महाकुंभ का इतिहास खंगाले तो इसकी शुरूआत ही हादसों से हुई थी। साल 1954 की बात है। आजादी के बाद प्रयागराज में पहली बार महाकुंभ का आयोजन हो रहा था। सरकार तैयारियों में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। उसबार राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद भी 1 माह का कल्पवास कर रहे थे। 3 फरवरी को मौनी अमावस्या का दिन था। लाखों लोग स्नान कर लिए संगम पहुंचे थे। बारिश की वजह से कीचड़ था। खबर आई की प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आ रहे हैं। उन्हें देखने के लिए भीड़ टूट पड़ी। अपनी तरफ भीड़ आती देख नागा संन्यासी तलवार और त्रिशूल लेकर लोगों को मारने दौड़ पड़े। भगदड़ मच गई। जो एक बार गिरा, वो फिर उठ नहीं सका। जान बचाने के लिए लोग बिजली के खंभों से चढ़कर तारों पर लटक गए। भगदड़ में एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए।
यूपी सरकार ने कहा कि कोई हादसा नहीं हुआ, लेकिन एक फोटोग्राफर ने चुपके से तस्वीर खींच ली थी। अगले दिन अखबार में वो तस्वीर छप गई। राजनीतिक हंगामा खड़ा हो गया। संसद में नेहरू को बयान देना पड़ा। 65 साल बाद 2019 में पीएम मोदी ने उस हादसे के लिए नेहरू को जिम्मेदार ठहराया था।
कुंभ 2013 में रेलवे स्टेशन पर हादसा(फोटो- सोशल मीडिया)
2013 में रात भर कफन ढूढ़ते रहे
10 फरवरी 2013 रविवार का दिन था। उसी दिन भी मौनी अमावस्या थी। शाम साढ़े सात-आठ बजे की बात है। इलाहाबाद रेलेव स्टेशन पैर रखने की जगह नहीं थी, लेकिन भीड़ मानने को तैयार नहीं थी। घटना के वक्त प्लेटफार्म नंबर-6 बहुत ज्यादा भीड़ थी। इसी दौरान अनाउंस हुआ की प्लेटफार्म नंबर 6 पर आने वाली ट्रेन अब किसी अन्य प्लेटफार्म पर आएगी। इतना सुनते ही लोग उस प्लेटफॉर्म पर जाने के लिए भागने लगे। फुट ओवर ब्रिज पर तो तिल रखने तक की जगह नहीं थी। लोगों को भागते देख रेलवे पुलिस लाठी भांजने लगी। एक दूसरे के ऊपर लोग गिरने लगे। भगदड़ मच गई। कई लोग तो ओवर ब्रिज से गिर भी गए।’ इस हादसे में 36 लोगों की मौत हो गई।
इस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव थे। कुंभ का प्रभारी आजम खान को बनाया गया था। उन्होंने हादसे की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
महाकुंभ 2025 में हादसा (फोटो- सोशल मीडिया)
2025 का हादसा
सीएम योगी का रविवार को महाकुंभ में विजिट था, इसलिए सब उसी में बिजी थे, लेकिन अचानक गीता प्रेस के तंबुओं से धुएं का गुब्बार उठता हुआ दिखाई दिया। लोग भागते हुए मौके पर पहुंचे। तुरंत चारों तरफ से घेरा गया। आग बुझाने में करीब 20 गाड़ियां इस्तेमाल की गईं। चारों तरफ से घेरकर रेस्क्यू किया गया।
मेले में ही मौजूद से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
सीएम योगी का दौरा था, इसलिए पहले से ही सभी टीमें अलर्ट मोड पर थीं। जैसे ही मेला क्षेत्र में धुआं उठता दिखा, फायर ब्रिगेड से लेकर NDRF तक की टीम एक्टिव हो गईं। आसपास के लोगों के मुताबिक, 10 मिनट के भीतर ही फायर ब्रिगेड पहुंच गईं। 400 टेंटों को चारों तरफ से घेर लिया गया। पुलिस के जवान इससे पहले ही पहुंच चुके थे, जिन्होंने लोगों को आग से दूर किया। इस दौरान 10 मिनट के अंदर पूरे स्पॉट घेर लिया गया। 600 जवानों एंव 32 फायर बिग्रेड ने मिलकर आग बुझा दिया, लेकिन 140 कॉलेज जलकर राख हो गए।