इलाहाबाद हाईकोर्ट। इमेज-सोशल मीडिया
Sar Tan Se Juda: उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि गुस्ताख-ए-नबी की एक सजा, सर तन से जुदा जैसे नारे लगाना कानून के शासन के विरुद्ध और भारत की संप्रभुता-अखंडता के लिए खतरा है। ये नारे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या धार्मिक अधिकार के दायरे में नहीं आते। ये आम लोगों को हिंसा और सशस्त्र विद्रोह के लिए उकसाने के समान हैं। इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकल पीठ ने बरेली में हुए हिंसक प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार आरोपी रिहान की जमानत अर्जी खारिज कर दी।
बरेली के कोतवाली थाना क्षेत्र में 26 सितंबर को हिंसा हुई थी। आरोप है कि बरेली में निषेधाज्ञा लागू होने के बावजूद इत्तेहाद-ए-मिल्लत काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा एवं एक अन्य ने इस्लामिया इंटर कॉलेज में लोगों को एकत्र करने के लिए उकसाया था। भीड़ ने विवादित और भड़काऊ नारे लगाए, पुलिस पर पथराव, पेट्रोल बम से हमला और फायरिंग भी की। कई पुलिसकर्मी घायल हुए। सरकारी-निजी संपत्तियों को भारी नुकसान पहुंचा।
रिहान को अन्य लोगों के साथ मौके से गिरफ्तार किया गया था। उसने हाईकोर्ट में जमानत के लिए अर्जी दायर की थी। याची के अधिवक्ता ने दलील दी कि उसे झूठे मामले में फंसाया गया। अपर महाधिवक्ता अनूप त्रिवेदी ने कहा कि आरोपी भीड़ के साथ नारा लगा रहा था। पुलिस ने हस्तक्षेप की कोशिश की तो भीड़ हिंसक हुई। संविधान सबको स्वतंत्रता देता है, लेकिन इसकी सांविधानिक सीमा है।
कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण सभा का अधिकार देता है, लेकिन इसकी स्पष्ट सांविधानिक सीमाएं हैं। जब भीड़ कानून को हाथ में लेकर किसी व्यक्ति के लिए सिर कलम करने जैसे मृत्युदंड की मांग करती है तो यह कानून के शासन का अपमान है। इस्लाम धर्म के नाम पर लगाए जाने वाले ऐसे हिंसक नारे वास्तव में पैगंबर मोहम्मद के आदर्शों के विपरीत हैं।
हाईकोर्ट के आदेश में कहा गया कि पैगंबर मोहम्मद ने जीवन में अपमान और कष्ट सहने के बावजूद दया, करुणा और क्षमा का मार्ग अपनाया। कोर्ट ने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि पैगंबर मोहम्मद ताइफ शहर गए। वहां उनकी एक गैर-मुस्लिम पड़ोसी रहती थी, जो अक्सर उनके रास्ते में कूड़ा फेंककर परेशान करती थी, लेकिन पैगंबर ने कभी पलटवार नहीं किया।
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हाईकोर्ट ने कहा कि सर तन से जुदा जैसे नारे का उद्भव भारत की सांस्कृतिक, कानूनी या धार्मिक परंपराओं से नहीं जुड़ा है। यह पड़ोसी देश के ईशनिंदा कानूनों और वहां हुई हिंसक घटनाओं से प्रभावित है। हाईकोर्ट ने नारा-ए-तकबीर या जय श्रीराम जैसे धार्मिक जयकारों और हिंसा को उकसाने वाले नारों के बीच स्पष्ट अंतर बताया और कहा कि जब तक धार्मिक नारे दुर्भावनापूर्ण तरीके से दूसरों को डराने या हिंसा भड़काने के लिए इस्तेमाल न किए जाएं, तब तक वे अपराध की श्रेणी में नहीं आते। अपराध की गंभीरता, उपलब्ध साक्ष्यों और मामले की परिस्थितियों को देखते हुए हाईकोर्ट ने आरोपी को राहत देने से इन्कार करते हुए जमानत अर्जी खारिज कर दी।