अखिलेश यादव, योगी आदित्यनाथ (फोटो- सोशल मीडिया)
UP News: उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फरमान जारी किया है कि अब से सूबे में कोई भी जातीय सम्मेलन या जाति आधारित राजनीतिक कार्यक्रम नहीं होंगे। ऐसा करना अब से दंडनीय अपराध होगा। यूपी सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से जारी एक आदेश के बाद यह फरमान जारी किया है। योगी सरकार का जातीय सम्मेलन, जातिगत रैलियों पर रोक सियासी रूप से समाजवादी पार्टी के लिए नुकसान देह है। अब इसी मामले पर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की प्रतिक्रिया आई है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यूपी सरकार को आदेश दिया था कि पुलिस रिकॉर्ड और सार्वजनिक स्थलों पर लोगों के नाम के साथ जाति के उल्लेख पर रोक लगाई जाए। इसके बाद योगी सरकार ने राज्य में जाति आधारित किसी भी कार्यक्रम पर रोक लगाने का आदेश जारी किया है। यूपी के कार्यवाहक मुख्य सचिव दीपक कुमार ने यूपी के सभी आला अधिकारियों को जाति आधारित कार्यक्रमों पर रोक लगाने के निर्देश दिए हैं।
सरकार का आदेश सार्वजनिक होने के बाद अखिलेश यादव ने बिना नाम लिए सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि “…और 5000 सालों से मन में बसे जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए क्या किया जाएगा? और और किसी का घर धुलवाने की जातिगत भेदभाव की सोच का अंत करने के लिए क्या उपाय किया जाएगा?” पूर्व सीएम अखिलेश यादव का इशारा मुख्यमंत्री आवास को गंगा जल से धुलवाए जाने की राजनीतिक घटना की तरफ था। 2017 में सपा की सरकार जाने के बाद अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री आवास खाली करना पड़ा था। इसके बाद कथित तौर पर अखिलेश यादव के आवास को गंगा जल से धुलवाया गया था।
…और 5000 सालों से मन में बसे जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए क्या किया जाएगा? और वस्त्र, वेशभूषा और प्रतीक चिन्हों के माध्यम से जाति-प्रदर्शन से उपजे जातिगत भेदभाव को मिटाने के लिए क्या किया जाएगा? और किसी के मिलने पर नाम से पहले ‘जाति’ पूछने की जातिगत भेदभाव की मानसिकता को… — Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) September 22, 2025
ये भी पढ़ें-‘तू डाल-डाल..मैं पात-पात’, अखिलेश ने शुरू किया गुर्जर सम्मेलन तो योगी ने जातीय सम्मेलनों पर लगाई रोक
ऐसा कहा जाता है कि समाजवादी पार्टी पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व करती है। उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी आबादी ओबीसी की है। इस कटैगरी में करीब 50 जातियां आती हैं। ऐसे में इन्हीं जातियों को साधने के लिए अखिलेश यादव भागीदारी के फॉर्मूले पर चलकर अलग-अलग जातियों को साधने की तैयारी में थे। इसकी शुरूआत गुर्जर सम्मेलन से हुई है। हालांकि सरकार के जातीय सम्मेलनों पर बैन लगाने बाद सपा को झटका लगा है।