आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ( सौजन्य : सोशल मीडिया )
मिलान : आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस टेक्नोलॉजी का पूरी दुनिया में व्यापक तरीके से विस्तार हो रहा है। एआई तकनीक काफी तेजी से उन्नत हो रही है। ‘लार्ज लेंग्वेज मॉडल’ के साथ चैटजीपीटी जैसे एआई टूल की मदद से तकनीकी कामों में इंसानों की बराबरी या उससे भी बेहतर प्रदर्शन किया जा सकता है।
हालांकि, जैसे-जैसे एआई और जटिल होता जा रहा है, कुछ बुनियादी समस्या भी उभर रही है जैसे कि हमें इसके काम करने के तरीके के बारे में पता नहीं है। जानकारी का यही अभाव शोधकर्ताओं, डेवलपर्स और बड़े पैमाने पर समाज के लिए एक बड़ी चुनौती बन रहा है।
जैसा कि मैथ्यू हटसन ने हाल ही में ‘नेचर’ लेख में उल्लेख किया है कि एआई की अस्पष्टता उनकी विश्वसनीयता और उनके व्यापक उपयोग के नैतिक निहितार्थों के बारे में चिंताएं पैदा करती है। डगलस हेवेन ने ‘एमआईटी टेक्नोलॉजी’ की पड़ताल में इसी तरह के विचार को दोहराया कि “एलएलएम चौंका देने वाले काम करते हैं लेकिन जानकारी के अभाव में कोई नहीं जानता कि ऐसा क्यों होता है।”
एआई की कार्यप्रणाली को समझने की तेजी से बढ़ती जरूरत के लिए शोधकर्ताओं ने ‘साइकोमैटिक्स’ नामक एक बहुविषयक ढांचा लाने का सुझाव दिया है। विभिन्न यूरोपीय और अमेरिकी शोधकर्ताओं द्वारा हाल ही में एक प्रस्ताव पेश किया गया जो कि ह्यूमेन टेक्नोलॉजी लैब द्वारा समन्वित है। इसका उद्देश्य संज्ञानात्मक विज्ञान, भाषा विज्ञान और कंप्यूटर विज्ञान की समझ के साथ कृत्रिम और इंसानी मेधा के बीच की खाई को पाटना है।
‘साइकोमैटिक्स’ शब्द “मनोविज्ञान” और “सूचना विज्ञान” से मिलाकर बना है और यह तुलनात्मक कार्यप्रणाली प्रस्तुत करता है कि एलएलएम किस प्रकार जानकारी प्राप्त करते हैं, सीखते हैं, याद रखते हैं और अंतिम परिणाम तैयार करने के लिए उसका उपयोग करते हैं।
एआई प्रणाली और इंसानी दिमाग के बीच समानताओं के जरिए यह ढांचा उनकी संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं में समानता और अंतर की गहरी समझ प्रदान करना चाहता है। ‘साइकोमैटिक्स’ में सबसे मुख्य सवाल यह है कि “क्या मानव और एलएलएम में भाषा के विकास और उसके इस्तेमाल की प्रक्रिया अलग-अलग होती है।”
इस जरूरी सवाल के जवाब की पड़ताल करके, शोधकर्ताओं को भाषा, बोध और कृत्रिम तथा इंसानी मेधा की प्रकृति के बारे में मूल्यवान जानकारी प्राप्त करने की उम्मीद है। ‘साइकोमैटिक्स’ नजरिए ने पहले ही एलएलएम और मानव संज्ञान जैसी एआई प्रणालियों के बीच के अंतर को समझने में मदद की है।
मनुष्य बचपन से शुरू होने वाली सामाजिक, भावनात्मक और भाषाई अंतःक्रियाओं की क्रमिक प्रक्रिया के माध्यम से भाषा सीखता है और जीवन भर चलते रहता है। इसके विपरीत, एलएलएम को अपेक्षाकृत कम समय सीमा में विशाल, पहले से मौजूद डेटासेट पर प्रशिक्षित किया जाता है। सीखने की प्रक्रिया में यह मूलभूत अंतर इस बात पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है कि प्रत्येक प्रणाली भाषा को कैसे समझती है और उसका उपयोग करती है।
( एजेंसी इनपुट के साथ )