दीपा मलिक (सौजन्यः सोशल मीडिया)
नवभारत स्पोर्ट्स डेस्क: इकबाल साजिद का एक शेर है कि प्यासे रहो न दश्त में बारिश के मुंतजिर, मारों जमीं पे पांव कि पानी निकल पड़े। यह शेर बिल्कुल सटीक बैठता है खेल जगत की उस हस्ती पर जो आज यानी सोमवार को अपना 54वां जन्मदिन मना रहा है। जो न जाने कितनों का हौसला रह चुका है और न जाने कितनों को प्रेरित करेगा।
1970 में हरियाणा के सोनीपत में जन्मी दीपा मलिक के पिता बाल कृष्ण नागपाल भारतीय सेना में थे। उनके भाई विक्रम नागपाल भी ब्रिगेडियर थे। दीपा के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब 1999 में उन्हें स्पाइनल ट्यूमर हुआ, जिसके कारण उनके शरीर के निचले हिस्से ने काम करना बंद कर दिया और उन्हें व्हीलचेयर पर निर्भर रहना पड़ा। हालांकि, उन्होंने हार नहीं मानी और अपने जीवन के नए अध्याय पर ध्यान केंद्रित किया।
दीपा न केवल खेलों में आगे हैं, बल्कि लेखन के साथ-साथ वह सामाजिक कार्य भी करती हैं। वह गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए अभियान चलाती हैं और सामाजिक संगठनों के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। शॉट पुटर होने के अलावा दीपा तैराक, बाइकर, भाला और डिस्कस थ्रोअर भी हैं। रियो पैरालंपिक खेलों में रजत पदक जीतकर वह पैरालंपिक खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं।
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2012 में उन्हें ‘अर्जुन पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है। दीपा मलिक के नाम भाला फेंक में एशियाई रिकॉर्ड दर्ज है, जबकि उन्होंने 2011 विश्व चैंपियनशिप में शॉटपुट और डिस्कस थ्रो में रजत पदक जीते थे। 2019 में उन्हें खेल रत्न पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। दीपा मलिक का संघर्ष, कड़ी मेहनत और समर्पण उनके प्रेरणादायक जीवन की कहानी को उजागर करता है।
2016 रियो पैरालिंपिक खेलों में शॉटपुट में रजत पदक जीतकर इतिहास रचने वाली भारत की दीपा मलिक को लेकर 2019 में एक खबर आई थी कि उनपर बायोपिक भी बनने वाली है। दीपा मलिक की बायोपिक में सोनाक्षी सिन्हा मुख्य भूमिका निभा सकती हैं। लेकिन उसका क्या हुआ आज तक कुछ पता नहीं चला है।
सोनीपत की दीपा मलिक पैरालिंपिक खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट हैं। पैरालिंपिक पदक विजेता दीपा मलिक ट्यूमर जैसी बीमारी से जूझ रही थीं और घर पर बिस्तर पर थीं। वहीं, उनके पति कर्नल विक्रम सिंह कारगिल में देश के लिए लड़ रहे थे। उस दौरान दीपा की स्पाइनल ट्यूमर की सर्जरी हुई थी और उन्हें 183 टांके लगे थे।