Vivek Razdan Birthday: भारत के पूर्व क्रिकेटर और कमेंटेटर विवेक राजदान आज 25 अगस्त को अपना 56वां जन्मदिन मना रहे हैं। विवेक राजदान का जन्म 25 अगस्त 1969 को हुआ था। विवेक राजदान का डेब्यू सचिन तेंदुलकर के साथ ही हुआ था। सचिन ने जहां 200 टेस्ट मुकाबले खेले। वहीं विवेक राजदान का करियर केवल दो टेस्ट मुकाबले का ही रहा।
इंटरनेशनल क्रिकेट में अपनी छाप नहीं छोड़ पाने वाले विवेक राजदान ने घरेलू क्रिकेट में तहलका मचाया था। क्रिकेट को अलविदा कहने के बाद विवेक राजदान कमेंट्री में अपना हाथ अजमाया। आज वो भारत के सबसे मशहूर कमेंटेटर में से एक हैं। विवेक राजदान ने क्रिकेट से संन्यास के बाद अपने शब्दो से करोड़ों दिलों को जीत लिया।
विवेक राजदान की आवाज और उनकी शब्दों का जादू ऐसा चला कि हिंदी कमेंट्री के भी लोग फैन हो गए। हिंदी कमेंट्री में उनका अंदाज कुछ ऐसा है कि दर्शक अपने आप को सीधे मैदान से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। वो कमेंट्री के दौरान साहित्यिक शब्दों का ज्यादा प्रयोग करते हैं। यहीं कारण है कि वो दूसरे से काफी अलग हैं। उनकी कमेंट्री सिर्फ खेल को बयां नहीं कर रही होती, बल्कि एक कविता, एक कथा और कभी-कभी जीवन-संदेश भी लगती है।
विवेक राजदान ने हाल में खत्म हुई एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी के दौरान अपने आवाज से इस प्रतियोगिता को और शानदार बना दिया। उन्होंने पूरे टेस्ट के दौरान दर्शकों को टीवी पर बांधकर रखा और कई ऐसे मोमेंट्स भी आएं, जिसपर उनकी आवाज ने दिलों को जीत लिया। उन्होंने काव्यात्मक अंदाज से सभी खिलाड़ियों की तारीफ की।
बुमराह के पांच विकेट लेने के बाद विवेक राजदान ने उनके लिए कुछ पंक्तियां कही। उन्होंने कहा कि लाली मेरे लाल की, जित देखूं तित लाल। लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल। हर चीज को अपने रंग में रंग देते हैं बुमराह। राजदान के इन शब्दों से ऐसे लगने लगता है कि बुमराह के सामने बल्लेबाज का रंग-ढंग बदल जाता है।
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जब भारतीय गेंदबाजों ने सीरीज को ड्रॉ कराई तो राजदान ने सिराज और प्रसिद्ध कृष्णा के लिए कहा कि जब भी छाई हो मुश्किल की घड़ी, तो टीम आकर सिराज और कृष्णा के सामने हो जाती है खड़ी। इनके इस लाइन खिलाड़ियों के संघर्ष और जज्बा का पता चलता है।
इस सीरीज के दौरान एक और वाक्या हुआ, जिसमें दर्शकों को एक नया हौसला दिया। पंत जब चोटिल होने के बाद जब बल्लेबाजी करने आएं तो उनसे चला भी नहीं जा रहा था। उस समय राजदान ने सभी दर्शकों के मन में अपनी पंक्तियों से उमंग भर दिया। उन्होंने चार लाइन की पंक्ति की।
“तेरी सोच पर मैं चल नहीं सकता,
तेवर मैं अपना बदल नहीं सकता।।
अरे मोम का पुतला समझ रखा है क्या,
मैं वो लोहा हूं, जो किसी भी लौ से पिघल नहीं सकता।।
यह है ऋषभ पंत…।”
विवेक राजदान ने अपने कमेंट्री के दौरान कई ऐसे पल दिए। जो सुनने वाले को आज भी याद है। गाबा का मुकाबला जीतने के बाद भारतीय टीम के लिए उन्होंने कहा था, टूटा है गाबा का घमंड, जीत गई है टीम इंडिया। इसके अलावा कई ऐसे लम्हे आए और कई ऐसे पल आए, जब राजदान ने अपने आवाज से सुनने वालों का हौसला नहीं टूटने दिया। ऐसी ही विवेक राजदान की क्रिकेट में अहमियत। वो अपने आवाज से लोगों में दिलों में एक विश्वास जगाए रहते हैं। वो अच्छे खिलाड़ी बने हो या नहीं लेकिन अच्छे वक्ता जरूर है। जिन्होंने अपनी शब्दों इस खेल को और रोमांचक बना दिया।
विवेक राजदान का करियर बस कुछ मैचों में ही सिमट कर रह गया। टेस्ट क्रिकेट में विवेक राजदान ने 1889 में डेब्यू और केवल दो मुकाबले ही खेल पाए। उसके बाद वो टीम से बाहर हो गए। दो मुकाबले में राजदान ने 5 विकेट लिए। वहीं उन्होंने तीन वनडे मुकाबले खेले। तीन वनडे मुकाबले में उन्होंने केवल एक विकेट ही अपने नाम किया। उनका इंटरनेशनल करियर केवल पांच मैचों का ही रहा। उन्होंने 29 फर्स्ट क्लास मैच भी खेले।