बीसीबी (सौजन्यः सोशल मीडिया)
ढाका: बांग्लादेश की राजनीति में तख्तापलट होने की वजह से कई तरह का बवाल मचा हुआ है। जिसके बाद से ही माहौल काफी खराब हो गया है। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपने पद छोड़ने के बाद से ही वहां सेना ने सत्ता संभाल रखा है। जिसके बाद से ही अब यह सवाल बना हुआ है कि बांग्लादेश में महिला टी20 वर्ल्ड कप 2024 सुरक्षित तरीके से हो सकता है या नहीं? ऐसे में अब बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड (बीसीबी) ने भी देश के सेवा प्रमुख से आईसीसी टी20 विश्व कप के आयोजन के लिए सुरक्षा का आश्वासन मांगा है।
दरअसल, बांग्लादेश में महिला टी20 वर्ल्ड कप 2024 का आयोजन तीन अक्टूबर से 20 अक्टूबर के बीच होने वाला है। यह टूर्नामेंट बांग्लादेश के दो शहरों सिलहट और मीरपुर में आयोजित किया जाएगा। हालांकि टूर्नामेंट के अभ्यास मैच 27 सितंबर से शुरू हो जाएंगे। ऐसे में क्रिकबज के अनुसार, बीसीबी ने बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वेकर उज़ ज़मान को पत्र लिखकर टूर्नामेंट के आयोजन के लिए सुरक्षा आश्वासन मांगा है।
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अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) भी बांग्लादेश की स्थिति पर नजर रखे हुए है जहां सरकार के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शनों में सैकड़ो लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी और शेख हसीना को अपना पद छोड़ना पड़ा। आईसीसी समान समय क्षेत्र में इस टूर्नामेंट का आयोजन कर सकता है तथा ऐसे में उसके पास भारत, संयुक्त अरब अमीरात और श्रीलंका विकल्प होंगे।
बीसीबी अंपायरिंग कमेटी के अध्यक्ष इफ्तिखार अहमद मिठू ने कहा, ‘‘हम टूर्नामेंट की मेजबानी करने की कोशिश कर रहे हैं। हमने आईसीसी महिला टी20 विश्व कप की सुरक्षा को लेकर आश्वासन मांगने के संबंध में गुरुवार को सेना प्रमुख को एक पत्र भेजा है क्योंकि हमारे पास अब केवल दो महीने का समय बचा है।”
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जानकारी के लिए बता दें कि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका के अलावा थाईलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, नेपाल और मलेशिया की टीम भी इस टूर्नामेंट में हिस्सा लेंगी। जिन्हें टीमों को दो ग्रुप में बांटा गया है। भारत, पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात और नेपाल को ग्रुप ए में, जबकि बांग्लादेश, श्रीलंका, मलेशिया और थाईलैंड को ग्रुप बी में रखा गया है।
बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने मंगलवार को संसद भंग की दी और नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख नियुक्त किया। बता दें कि बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के खिलाफ देश के छात्र जुलाई महीने से ही राजधानी ढाका में आंदोलन कर रहे थे। धीरे-धीरे आंदोलन ने व्यापक रूप ले ली। देखते ही देखते आंदोलन काफी उग्र और हिंसक हो गया था।