क्लाउड सीडिंग से दूर होगा दिल्ली का प्रदूषण ( सौ. सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण की स्थिति निरंतर बद से बदतर होती जा रही है, सांस लेना मुश्किल हो गया है।इसलिए दिल्ली में 28 अक्टूबर को क्लाउड सीडिंग ट्रायल्स आयोजित किए गए।क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम वर्षा एक ऐसी टेक्नोलॉजी है, जिसमें वैज्ञानिक बादलों के अंदर रासायनिक तत्वों को छोड़ते हैं ताकि बारिश कराई जा सके।दिल्ली सरकार ने आईआईटी कानपुर के सहयोग से बुराड़ी, उत्तरी करोलबाग, मयूर विहार, बादली सहित दिल्ली के कुछ हिस्सों में यह ट्रायल किए।आईआईटी-कानपुर ने दूसरे ट्रायल के बाद कहा कि 15 मिनट से 4 घंटे के भीतर कृत्रिम वर्षा हो जाएगी, लेकिन हुई नहीं।
सवाल यह है कि क्या क्लाउड सीडिंग से वायु प्रदूषण की समस्या का समाधान निकाला जा सकता है? विपक्षी आम आदमी पार्टी ने इस कोशिश का मजाक उड़ाते हुए कहा है कि यह ‘इंद्र देवता के श्रेय को चुराने का प्रयास है.’ सत्तारूढ़ बीजेपी ने क्लाउड सीडिंग की तारीफ करते हुए कहा है कि इससे प्रदूषण संकट का हल निकल आएगा।दुनियाभर में हुए प्रयोग पहले ही स्थापित कर चुके हैं कि क्लाउड सीडिंग वायु प्रदूषण को पराजित नहीं कर सकता।जो कुछ दिल्ली सरकार कर रही है।वह मात्र राजनीतिक नाटक है।अतः आवश्यक है कि मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता सियासी ड्रामे पर विराम लगाएं और वायु प्रदूषण क्यों बढ़ रहा है, उसके मूल कारणों को समझकर उनका समाधान करें।
दिल्ली सरकार ने स्मॉग (धुंए भरा कोहरा) सीजन के आने से पहले जून 2025 में एक 25 सूत्रीय वायु प्रदूषण शमन योजना गठित की थी, जिसमें पहला आइटम आईआईटी-कानपुर के माध्यम से क्लाउड सीडिंग का पायलट प्रोजेक्ट था।सूखे के दौरान बारिश कराने के लिए इसका इस्तेमाल भारत ने भी 1950 के दशक के शुरू में किया था और तब से इस पर निरंतर शोध हो रहे हैं।हाल ही में एक प्रयोग इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटरोलॉजी ने पश्चिमी घाटों के वर्षा-छाया क्षेत्रों पर किया था।थाईलैंड में तो कृत्रिम बारिश कराने का बाकायदा एक विभाग है।दर्जनों देश क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन केवल बारिश के मौसम में सूखा राहत के लिए।क्लाउड सीडिंग उस समय काम करती है जब बादल मौजूद हों, लेकिन अपने तौर पर पर्याप्त बारिश उत्पन्न न कर पाते हों।इसलिए क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल बारिश के मौसम में किया जाता है, न कि सूखे जाड़ों में।
अक्सर ऐसा भी हुआ है कि अनुकूल स्थितियां प्रतीत होने के बावजूद क्लाउड सीडिंग से बारिश नहीं हुई है।क्लाउड सीडिंग से वायु गुणवत्ता बेहतर करने के अधिकतर प्रयोग असफल रहे हैं, ज्यादातर मामलों में वर्षा हुई ही नहीं।क्लाउड सीडिंग वायु प्रदूषण को पराजित करने का अच्छा तरीका नहीं है।2024 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने संसद को बताया था कि दिल्ली की वायु गुणवत्ता को बेहतर करने के लिए क्लाउड सीडिंग आपात स्थिति में भी कारगर नहीं है।मंत्रालय ने यह तर्क दिये थे उत्तर भारत पर जाड़ों में जो बादल छाते हैं, वह बहुत कम समय के लिए रहते हैं और उनसे केवल प्राकृतिक बारिश होती है, जिससे क्लाउड सीडिंग अनावश्यक हो जाती है, जो बादल 5-6 किमी की ऊंचाई पर होते हैं उन्हें हवाई जहाज की सीमाओं के कारण सीड नहीं किया जा सकता।
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प्रभावी सीडिंग के लिए बादलों की विशिष्ट स्थिति की जरूरत होती है, जो कि दिल्ली की ठंड व सूखे मौसम में संभव नहीं है।बादलों के नीचे की सूखी हवा उसके जमीन पर पहुंचने से पहले उसका वाष्पीकरण कर देती है।क्लाउड सीडिंग के लिए जो रसायन इस्तेमाल किए जाते हैं, उनको लेकर भी चिंताएं बरकरार हैं कि वह कितने प्रभावी होते हैं और उनसे क्या नुकसान पहुंच सकता है।जब केंद्र सरकार क्लाउड सीडिंग के बारे में इतना कुछ स्पष्ट कह चुकी है तो तो फिर दिल्ली सरकार यह कवायद क्यों कर रही है?
प्रभावी सीडिंग के लिए बादलों की विशिष्ट स्थिति की जरूरत होती है, जो कि दिल्ली की ठंड व सूखे मौसम में संभव नहीं है।बादलों के नीचे की सूखी हवा उसके जमीन पर पहुंचने से पहले उसका वाष्पीकरण कर देती है।क्लाउड सीडिंग के लिए जो रसायन इस्तेमाल किए जाते हैं, उनको लेकर भी चिंताएं बरकरार हैं कि वह कितने प्रभावी होते हैं और उनसे क्या नुकसान पहुंच सकता है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा